Lagatardesk : झारखंड-बिहार का माहौल छठमय हो गया है. चार दिवसीय महापर्व छठ की शुरुआत नहाय-खाय से हुई थी. मंगलवार यानी 9 नवंबर को खरना था. इस दिन रात में व्रती ने खीर का प्रसाद ग्रहण किया. जिसके बाद वो 36 घंटे का निर्जला उपवास में हैं. आज (10 नवंबर) को छठ का पहला अर्घ्य है. पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है. इस दिन सूर्याेदय 6 बजकर 03 मिनट पर और सूर्यास्त 5 बजकर 03 मिनट पर होगा.
अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य
पहला अर्घ्य के दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रती दिन भर निर्जला व्रत रखती है और शाम में किसी तालाब, नदी या जलकुंभ में जाकर सूर्य की उपासना करती है. जिसके बाद डूबते हुए सूर्य को दूध और पानी से अर्घ्य देती है. सूर्य देवता को अर्घ्य देने के लिए तांबे का लोटा का प्रयोग करना चाहिए. लोटे में दूध और गंगा जल मिलाकर सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए.
केवल छठ में होती है डूबते सूर्य की उपासना
अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य की उपासना केवल छठ पूजा में ही होता है. ऐसा माना जाता है कि इस समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसीलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य दिया जाता है. शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है. अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने से हर तरह की परेशानी दूर होती है.
दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को दिया जाता अर्घ्य
छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को होता है. इस दिन सूर्योदय के समय उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 04 मिनट पर और सूर्यास्त 5 बजकर 03 मिनट पर होगा. अर्घ्य देने के बाद व्रती पारण कर निर्जला उपवास को पूरा करती हैं. परंपरा के अनुसार, छठ के दूसरे दिन सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य देकर धन, धान्य और आरोग्य की कामना की जाती है.