Shyam Kishore Choubey
नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने 2014 में अपार बहुमत के साथ अपने नेतृत्व में पहली बार केंद्र में सरकार बनाने के बाद कहा था कि वे हर समय चुनाव के लिए तत्पर-तैयार रहते हैं. सरकार बनने के तत्काल बाद वे अगले चुनाव की रणनीति पर काम करने लगते हैं. विगत सात जनवरी को चाईबासा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जनसभा उसी रणनीति का एक हिस्सा है. शाह को केंद्रीय कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा तो प्राप्त है ही, भाजपा में उनको मोदी के ठीक बाद का महत्व मिलता है. उनको मोदी का हनुमान कहा जाता है और लगे हाथ भाजपा के चाणक्य का खिताब भी हासिल है. चुनावी रणनीति के लिहाज से देखा गया है कि क्षेत्र में पायलट इंजन के माफिक पहले जाकर शाह नब्ज टटोलते हैं, कील-कांटे दुरुस्त करते हैं, फिर भाजपा का ऑपरेशन इलेक्शन शुरू हो जाता है. अमित शाह भाजपा अध्यक्ष रहते और बाद में केंद्रीय मंत्री बनाये जाने पर भी कई बार झारखंड आ चुके हैं.
लेकिन राज्य में 2019 के चुनाव में बहुप्रचारित डबल इंजन की सरकार के पतन के बाद वे सात जनवरी को पहली मर्तबा पधारे. पधारे भी तो पंचसितारा होटल में रात गुजारी और ‘अपने’वाहन का ही इस्तेमाल किया. उनका मंजिल था कोल्हान, जहां की दो संसदीय सीटों में से भाजपा के हाथ एक ही लगी और कुल जमा 14 विधानसभा सीटों के नाम उसके पाले में बिग जीरो है.
राजनीतिक चलन के मुताबिक चाईबासा की विजय संकल्प महारैली में अमित शाह ने राज्य की महागठबंधन सरकार को निशाने पर लिया. पूर्ववर्ती डबल इंजन सरकार की बड़ाई की. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को उन्होंने बहुत ही शाहाना अंदाज में हेमंत भाई कहकर संबोधित किया, लेकिन हेमंत सरकार की नीतियों और गतिविधियों की धज्जियां भी उड़ाईं. लगभग दो महीने पहले 11 नवंबर को विधानसभा के विशेष सत्र के मार्फत हेमंत सरकार ने जिस 1932 की खतियान आधारित स्थानीय और नियोजन नीति तथा ओबीसी एवं एससी-एसटी के आरक्षण में बढ़ोतरी का विधेयक पारित कराया, उसका हश्र जगजाहिर है. इन दोनों विधेयकों में ही लिखा है कि इन्हें केंद्र सरकार पारित कर संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करेगी, तब ये लागू होंगे. महागठबंधन के इन ड्रीम विधेयकों का भविष्य अमित शाह ने यह कहकर बांच दिया कि ‘32 का खतियान विधेयक झारखंड को बांटनेवाला है.
उन्होंने कोल्हान में जमीन का अंतिम सर्वे 1964 में होने की बात कह अपने मंतव्य को पुख्ता किया. यही बात कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष सांसद गीता कोड़ा और मुख्यमंत्री रह चुके उनके पति मधु कोड़ा ने उसी समय कही थी, जब बड़े हौसले से हेमंत और उनके दल झामुमो ने इस पर चर्चा-परिचर्चा प्रारंभ की थी. कोड़ा दंपती की जुबान अमित शाह के मुंह से निकलने के कारण ही एक राजनीतिक चर्चा सरगर्म होने लगी है कि यह दंपती भी भाजपा का रुख करनेवाला है. कहा यह भी जा रहा है कि शाह का अगला दौरा उस साहिबगंज का होगा, जो खनन घोटाले को लेकर अभी चर्चा में है और लोकसभा में उस इलाके का प्रतिनिधित्व झामुमो के एकमात्र सांसद विजय हांसदा कर रहे हैं. शेष 12 सीटों पर तो फिलहाल कमल और केला की जोड़ी विराजमान है ही. झारखंड सहित पूरे देश में लोकसभा का अगला चुनाव सवा साल बाद होनेवाला है, जबकि राज्य विधानसभा का चुनाव उसके पांच-छह महीने बाद होगा, बशर्ते कोई इतर संवैधानिक परिस्थितियां उत्पन्न न हों.
उक्त दोनों विधेयकों को अपने तईं अंजाम तक पहुंचाने के पूर्व से ही हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन के नेताओं ने राज्य का दौरा प्रारंभ कर दिया था. पहले ‘आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार’का सिलसिला चला और अब खतियानी जोहार यात्रा जारी है. उधर कन्याकुमारी से कश्मीर तक की राहुल गांधी की यात्रा को परिपूर्णता दिलाने के नाम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने भी सभी 24 जिलों की यात्रा की. प्रदेश भाजपा ने भी अपने ढंग से जवाबी कार्यक्रम चलाया. ‘जनसेवा’ के ये दौर पहले से ही चुनावी मेवा के लिए बताये जा रहे थे, लेकिन अमित शाह के दौरे के बाद तो हर समझदार को चैतन्य होना पड़ेगा.
अमित शाह ने ‘बांटनेवाले विधेयक’की खिंचाई करते हुए गौर करने लायक एक सवाल उछाला कि इस हाल में लोगों को नौकरी कैसे मिलेगी? स्वतः जवाब दिया कि अगर हेमंत सरकार को नौकरी देने की हिम्मत नहीं है तो कुर्सी खाली कर दे. भाजपा झारखंड में नौकरियां देगी. इस सवाल पर एक सवाल तो बनता है अमित भाई, 22 साल के झारखंड में 13 साल भाजपा का शासन रहा और पिछले करीब नौ वर्षों से अखिल भारत की सत्ता पर अखंड रूप से भाजपा ही काबिज है. कायदे से इस दौर में हुई बहालियों का भी हिसाब चाहिए. लेकिन सत्ता से सवाल करने का चलन खत्म हो चुका है. अब सियासी तौर पर भावनाओं का दौर है. नये दौर की भाजपा इसकी मास्टर है और हेमंत उसके ही नक्शेकदम पर चल रहे हैं.
अमित शाह हों कि हेमंत सोरेन या कोई अन्य राजनेता, इनकी रगों में राजनीति है और बेशक ये लोग राजनीति की ही बात करते हैं. करनी भी चाहिए. जनता जर्नादन जैसा समझे, वैसा करे. चलते-चलते राजनीति की एक गूढ़ बात. अमित शाह से आजसू प्रमुख सुदेश महतो भी मिले. सवाल, मुलाकात हुई, क्या बात हुई? जवाब, रामगढ़ उपचुनाव के मुहाने पर खड़ा है. भाजपा ने बतौर एनडीए प्रत्याशी आजसू प्रतिनिधि को सम्मान दे दिया, तो 2024 में 2019 के विधानसभा चुनाव का इतिहास दोहराया नहीं जाएगा. भाजपा और आजसू एक थाली में खाना खाएंगे, मौका मिला तो राज भी करेंगे.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.