Shyam Kishore Choubey
झारखंड विधानसभा के तीसरे आम चुनाव के बाद 23 दिसंबर, 2014 को जो परिणाम आया, वह कई मायने में दिलचस्प था. इसमें निर्दलीय साफ हो गये. 17 महीने पहले कांग्रेस ने झामुमो के साथ जो गठजोड़ किया था, लोकसभा चुनाव में उसका फायदा कतई न मिला. कांग्रेस का पत्ता सिरे से साफ हो जाने के बाद विधानसभा चुनाव में वह गठजोड़ धराशायी हो गया. कांग्रेस 2009 में जीती 13 सीटों के सापेक्ष इस बार घटकर हाफ से भी एक कम छह पर आकर तीसरे नंबर की पार्टी हो गयी. हालांकि बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम की सीटों में भी गुणात्मक कमी दिखी और वह 2009 की 11 सीटों के सापेक्ष आठ पर सिमट गया. लेकिन दूसरे नंबर के राजनीतिक दल का खिताब उसके ही नाम गया. आजसू की भी एक सीट की गिरावट हुई, वह पांच सीटें ही पा सकी. भाजपा दोगुने से एक कम 37 सीटें हासिल की. इस चुनाव में भाजपा और आजसू का एनडीए के बैनर तले गठजोड़ था. इस प्रकार गठबंधन के नाम 42 सीटें दर्ज हुईं. राज्य में पहली बार कोई गठबंधन बहुमत पाने का गर्व कर सका था. फलतः बहुत तामझाम और हर्षोल्लास के माहौल में 28 दिसंबर 2014 को एनडीए सरकार के मुखिया के बतौर रघुवर दास ने आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी सहित भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा, सीपी सिंह और लोइस मरांडी को मंत्री नामित करते हुए उनके संग पद एवं गोपनीयता की शपथ ली. कैबिनेट के न्यूनतम कोरम चार सदस्यों से एक ज्यादा की सरकार अपने तेवर में चलने लगी. इस विषय पर प्रतिपक्ष की घेराबंदी के बावजूद रघुवर सरकार ने सदन में विश्वासमत प्राप्त किया. सच यह भी है कि मंत्री पद के लिए एनडीए विधायक मचलते रहे लेकिन किसी को कुछ कहने का साहस न था. एक तो रघुवर खुद ही ‘हां, हां देखेंगे’ कह बहुत भाव न देते थे. उनको मोदी-शाह की जोड़ी का वरदहस्त प्राप्त था, दूसरे अंदर ही अंदर अलग किस्म की खिचड़ी पक रही थी.
यह बात भी सपष्ट हो जानी चाहिए कि 23 दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद झामुमो खेमा भी सरकार बनाने का गुणा-भाग कर रहा था. झामुमो को पिछले चुनाव के मुकाबले कोई नुकसान होने के बजाय एक सीट का फायदा ही हुआ था. वह 19 सीटों पर जीत कर आया था. बाबूलाल चूंकि भाजपा विरोधी खेमे में थे, इसलिए झामुमो उनकी संगति करने को उत्सुक था. असल चक्कर आजसू को पटाने का था और 2012 के राज्यसभा चुनाव के समय उसके द्वारा झारखंडी दल के साथ चलने की बात याद दिलाने की थी. चूंकि जेवीएम प्रमुख बाबूलाल और आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो चुनाव हार चुके थे, इसलिए झामुमो थोड़ी राहत में था. वरिष्ठता का कोई मसला ही नहीं था. जय भारत समानता पार्टी की गीता कोड़ा, बसपा के शिवपूजन कुशवाहा, नौजवान संघर्ष मोर्चा के भानु प्रताप शाही आदि को इस पाले में लाने में कोई परेशानी न थी. कांग्रेस तो जैसी भी थी, अपनी ही थी. जैसा कि बताया जाता है, इस विषय पर हुई बैठक में शामिल जेवीएम के एक सदस्य ने रघुवर के कान में इस खेमे की रणनीति फुसक दी. इससे भाजपा खेमे में हलचल बढ़ गयी और आजसू के चंद्रप्रकाश को कैबिनेट में शामिल करते हुए सरकार गठन की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी कर ली गयी. हेमंत का जमाया जा रहा कुनबा इस कारण भी बात की बात में ध्वस्त हो गया कि बैठक में जैसे ही कहा गया कि झामुमो, जेवीएम, कांग्रेस, आजसू आदि-आदि दलों के सभी विधायक बहुमत के दावा पत्र पर हस्ताक्षर करें, झामुमो और कांग्रेस को छोड़ बाकी सभी कन्नी काटने लगे. चूंकि उस बैठक में मौके के मित्र दलों के सभी विधायक उपस्थित न थे, इसलिए संबंधित दलों द्वारा उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर हस्ताक्षर लेना एक बहाना बन गया. इसके बावजूद हेमंत राजभवन गये थे, लेकिन उससे न तो बात बननी थी, न बनी.
इस राजनीतिक धमाचौकड़ी के बाद 43 सीटों के साथ एनडीए सरकार हालांकि कंफर्ट जोन में थी लेकिन आजसू के छिटक जाने या अधिक मंत्री पद और अधिक महत्व वाले विभाग मांगने की आशंका तो बनी ही हुई थी. उधर जेवीएम प्रमुख बाबूलाल मरांडी को 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में साथ देने के लिए भाजपा ने न्योत रखा था लेकिन बात बन नहीं पायी थी. सो, एक बड़े दांव के तहत चुनाव परिणाम के बाद भी उनको ससम्मान दिल्ली बुलाया गया. वहां जैसा कि बताया गया अमित शाह के साथ हुई बैठक में बात जमी नहीं. दिल्ली से लौटकर बाबूलाल और उनके राजनीतिक सलाहकार सुनील तिवारी ने एक होटल में विधायक दल की बैठक में सारा कुछ ब्रीफ किया. उसके तत्काल बाद शाम को खबर आयी कि जेवीएम के प्रदीप यादव की रघुवर दास से मुलाकात हुई. फिर पता चला कि रघुवर ने नवीन जायसवाल को तलब कर बड़ा टास्क सौंपा. इसी तीन तिकड़म के बाद फरवरी की आठवीं तारीख को जेवीएम के छह विधायक नवीन जायसवाल, गणेश गंझू, अमर कुमार बाउरी, आलोक कुमार चौरसिया, रणधीर कुमार सिंह और जानकी यादव अपना ‘विलय’ करते हुए भाजपा में शामिल हो गये. अगले दिन बाबूलाल ने एंटी डिफेक्शन एक्ट के तहत इन विधायकों की सदस्यता समाप्त करने की अर्जी स्पीकर न्यायाधिकरण में दाखिल की. इसके पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद रवींद्र कुमार राय और उक्त छह विधायकों ने स्पीकर को पत्र देकर उनके विलयन की मंजूरी देने और ट्रेजरी बेंच में सीटें उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था. स्पीकर प्रो. दिनेश उरांव ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और जेवीएम के उक्त छह विधायकों की दलील को मानते हुए भाजपा में उनके विलयन की प्रोविजनल मंजूरी 12 फरवरी को दे दी. इतना ही नहीं, 20 फरवरी को उन्होंने इन विधायकों के भाजपा में विलयन की संपुष्टि करते हुए बाबूलाल के पीटिशन को रिजेक्ट कर दिया. जैसा कि उस समय राजनीतिक गलियारे में यह बात खूब चर्चित हुई थी और बाद में बाबूलाल मरांडी ने भी खुलासा किया था, उक्त विधायकों को भाजपा में कथित विलयन के लिए दो-दो करोड़ रुपये नकद दिये गये थे, इस वायदे के साथ कि बाकी भविष्य में दिये जायेंगे. बाबूलाल ने भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय द्वारा लेन-देन का यह ब्यौरा तत्कालीन भाजपा प्रमुख अमित शाह को प्रदेश प्रभारी त्रिवेंद्र सिंह रावत की मार्फत 19 जनवरी 2015 को प्रेषित एक पत्र को आधार बनाकर कही थी, जिसे रवींद्र राय ने फर्जी बताया था. इस राजनीतिक परिघटना ने बताया कि सदन में या सरकार की संरचना में स्पीकर पद कितना पावरफुल होता है. अंग्रेजी की एक राजनीतिक उक्ति ‘स्पीकर इज ही, हू स्पीक्स लेस’ का इंदर सिंह नामधारी आसन से बार-बार उल्लेख करते थे लेकिन दिनोंदिन बदलती फिजां में यह भी कहा जा सकता है, स्पीकर इज ही, इन हाउस हू इज मच मोर पावरफुल दैन जज एंड ऑन द नेम ऑफ कंस्टीच्यूशन ही कैन टेक एनी डिसीजन.
खैर, इस तीन-तिकड़म कर भाजपा के खुद के 45 विधायक हो गये. गठबंधन पार्टनर आजसू के पांच थे ही. इस प्रकार 50 विधायकों की इस गठबंधन सरकार का पहला विस्तार 51 दिनों बाद 19 फरवरी 2015 को किया गया. इस दिन बतौर मंत्री सरयू राय, चुनाव पूर्व राजद से छिटककर आये रामचंद्र चंद्रवंशी, राज पलिवार, राजद की बड़ी नेत्री अन्नपूर्णा यादव को हरा कर आयी नीरा यादव और जेवीएम के बागी अमर कुमार बाउरी तथा रणधीर कुमार सिंह को शपथ दिलायी गयी. इसके बावजूद मंत्री का एक पद ‘अंगूर’ की नाईं लटकाकर रखा गया, जिसे देख-देखकर बाकी सत्ताधारी विधायकों के मुंह में अगले पांच वर्षों तक पानी आता रहा. (जारी)
(नोटः यह श्रृंखला लेखक के संस्मरणों पर आधारित है. इसमें छपी बातों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है.)
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