Ranchi : सूबे में समाजिक सुरक्षा के कई योजनाएं चल रही हैं. जिसमें राशन, पेंशन, आवास जैसी सुविधाओं से गरीबों और जरूरतमंदों की पहुंच से आज भी दूर है. वहीं सूबे में 13 से 49 आयु वर्ग की महिलाओं की 66 फीसद आबादी एनीमिया की चपेट में है. राज्य में 47.8 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. इनमें से भी 47.8 फीसद बच्चे गंभीर कुपोषित हैं. सूबे में चल रही समाजिक सुरक्षा की योजनाओं के बाद यह हाल है.
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केस स्टडी
ऐसा ही कुछ हाल देखने को मिला आदिवासी महिला कुंति नगेसिया का जो महुआडांड़ प्रखंड मुख्यालय के महज एक किलोमीटर दूर दया पर आश्रित रह कर अपने बच्चों के साथ रह रही हैं.
महुआडांड़ प्रखंड मुख्यालय से महज 1 किमी की दूरी पर अम्बाकोना गांव, गुड़गूटोली में अपने 13 वर्षीय बेटे के साथ दूसरे के घर में एक कमरे में रहती हैं. विधवा आदिवासी महिला कुंति नगेसिया के पति का निधन करीब 6 वर्ष पहले हो गया था. तब उनकी बड़ी बेटी रीना नगेसिया की उम्र लगभग 11 साल की रही होगी. कुंति नगेसिया शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद कमजोर हैं. पिछले वर्ष अप्रैल में टीबी बीमारी ने जकड़ लिया था. 8 माह तक रांची (इटकी) में इलाज कराने के बाद घर आकर रह रही हैं.
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गांव के लोगों की दया पर आश्रित हैं कुंति नगेसिया
कुंति नगेसिया की मानसिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वह किसी न किसी की दया पर ही आश्रित हैं. उनका अपना घर जर्जर होकर खंडहर में तब्दील हो चुका है. उनकी बेटी को 12 साल पहले गांव के ही कोई बैंककर्मी घरेलू काम के लिए ले गया था, फिर आज तक वापस मां ने अपनी बेटी का चेहरा नहीं देखा. गरीबी के कारण उनके दोनों बेटे बेटियां स्कूल की दहलीज तक कभी नहीं पहुंच पाए.
झारखंड गठन के 20 साल बाद भी 50 प्रतिशत बच्चे नियमित स्कूल से दूर
समाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज कहते हैं कि एक अध्ययन के अनुसार सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के 50 फीसदी परिवार अपने बच्चों को आर्थिक दशा खराब होने की वजह से स्कूल नहीं भेजते हैं. ठीक इसी तरह सुदूर क्षेत्रों के 58 प्रतिशत बच्चे आंगनबाड़ी केन्द्रों से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित हैं. यही कारण है कि राज्य में 47.8 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. इनमें से भी 47.8 फीसद बच्चे गंभीर कुपोषित हैं. इनमें मौत का खतरा नौ से बीस गुना अधिक रहता है. ऐसे बच्चों की संख्या 5.8 लाख है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक राज्य की किशोरियों समेत 13 से 49 आयु वर्ग की महिलाओं की 66 फीसदी आबादी एनीमिया की चपेट में हैं.
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प्रवासी मजदूरों के आंकड़े में ट्रैफिकिंग के शिकार लोगों का संख्या नहीं है शामिल
वैश्विक त्रासदी कोविड 19 के दौरान जिस भयावहता से अप्रवासी मजदूरों का हुजूम मेट्रो शहरों से झारखण्ड की ओर निकल पड़ा था. झारखंड सरकार ने प्रवासी मजदूरों की जो आंकड़े इकट्ठे किये वह बारह लाख के आस-पास है. लेकिन इसमें उन लड़कियों और महिलाओं की संख्या शामिल नहीं है जो विभिन्न महानगरों में घरेलू कार्यों के लिए पलायन की हुई हैं. या बहला फुसलाकर दलालों के द्वारा ट्रैफिकिंग कराया गया है. इसके साथ ही ईंट भट्ठों और मौसमी पलायन करने वाले श्रमिकों की संख्या शामिल नहीं है.