Deepak Ambastha
ब्रिटेन,रूस, अमेरिका के बाद क्या अफगानिस्तान चीन के हाथों में जाएगा, क्या अफगानिस्तान में चीनी ताकत की कब्र बनेगी यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन हालात तो यही बताते हैं कि दो प्रमुख कारणों की वज़ह से चीन अफगानिस्तान में जरूर टांग फंसाएगा. पहला कारण चीन का डर है तो दूसरा कारण चीन की लालच. पहले चर्चा करें चीनी डर का, अफगानिस्तान के घटनाक्रम को उसी नजरिए से देखा जाए, जिसमें एक घटना किसी के लिए “आपदा” तो वही घटना किसी के लिए “अवसर” बन जाती है, अफगानिस्तान अगर अमेरिका और उसके साथी देशों के लिए आपदा है तो चीन इसे अपने लिए अवसर मान रहा है. लेकिन उसे इतिहास से सबक लेना चाहिए क्योंकि यही अफगानिस्तान जब सोवियत संघ के लिए आपदा बना था तो अमेरिका ने इसे अपने लिए अवसर मान कर अपनी टांग अफगानिस्तान में फंसायी और बीस वर्षों तक बेहिसाब दौलत और अमेरिकी सैनिकों की जान लुटा कर बेआबरु हो कर वहां से निकला और उसकी साख,उसका भरोसा उसके महाशक्ति होने का दंभ सब धूलधूसरित हो रहे हैं. अफगानिस्तान में अमेरिका पर आई आपदा को चीन अपने लिए अवसर मान रहा है. चीन दो उद्देश्य से अफगानिस्तान की ओर बढ़ रहा है जिसमें पाकिस्तान उसका सहयोगी है. चीन का अशांत सीमा प्रांत शिंजियांग अफगानिस्तान की सीमा से लगता है जहां विगर मुसलमानों की बड़ी आबादी रहती जिसने चीनी अत्याचारों के आगे फिलहाल घुटने नहीं टेके हैं.
क्योंकि अफगानिस्तान की धरती से चीन विरोधी आतंकवादी संगठन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट विगर मुसलमानों की लड़ाई लड़ रहा है, तमाम कोशिशों के बावजूद चीन इस संगठन पर कभी नियंत्रण नहीं कर पाया, चीन पाकिस्तान की मदद से अमेरिका के खिलाफ मुक्ति संघर्ष में तालिबानियों की भरपूर सहायता की और बदले में अफगानिस्तान जीतने पर तालिबान से यह भरोसा पाया कि तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के आतंकी चीन के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल नहीं कर सकें, फिलहाल तालिबान ने चीन को आश्वस्त किया है कि आतंकी संगठन को बता दिया गया है कि वे या तो अफगानिस्तान छोड़ दें या फिर चीन के खिलाफ गतिविधियां बंद करें, चीन को भरोसा है कि तालिबान अपने वादे पर कायम रहेगा. इसके लिए चीन बदहाल अफगानिस्तान को भारी आर्थिक मदद दे रहा है.
समय बताएगा कि चीन और तालिबान कितने समय तक साथ चलेंगे, देर-सबेर पाकिस्तान के मंसूबे चीनी हित साधन में बाधक हो सकते हैं तब देखना दिलचस्प होगा कि चीन पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सामंजस्य कैसे बिठाता है? चीन की कोशिश है कि वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों पर सवारी करे तो पाकिस्तान की हसरत है कि अफ़ग़ानिस्तान में उसके हित सुरक्षित रहें,यह बात ही दोनों के मतभेद का कारण बन सकती है.
चीन जिसने पहले अफगानिस्तान में सोवियत संघ के दखल और फिर शुरूआत के दिनों अमेरिकी दखल से अपने को दूर रखा,अब अफगानिस्तान में हाथ आजमाना चाहता है. चीन की नजर अफगानिस्तान की खनिज संपदा पर होने के साथ अपनी रोड एंड बेल्ट परियोजना पर भी है, चीन चाहता है कि इस परियोजना में अफगानिस्तान को शामिल कर उस देश पर स्थायी पकड़ बना ले.
रूस और अमेरिका से अलग चीन अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति चाहता है, चीन अफगानिस्तान का दोहन एक उपनिवेश की तरह करेगा इसमें कोई शक नहीं है, क्या तालिबान इस पकड़ से निकल सकेगा,या फिर अपना अस्तित्व बचाने के लिए चीन के खिलाफ खड़ा होगा, यदि ऐसा हुआ तो दो महा शक्तियों की तरह तीसरी की भी वहां से विदाई होगी, लेकिन इसकी कीमत दुनिया क्या और कैसे चुकाएगी इस प्रश्न का उत्तर भी समय ही देगा. चीन अपनी योजना के अनुरूप अफगानिस्तान में दाखिल हो रहा है, लेकिन वहां उसकी हर गतिविधि पर दुनिया की नज़र होगी.