Deepak Ambastha
कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत देश में नहीं हुई, ऐसा सरकारी आंकड़े कहते हैं और ऐसा ही बयान संसद (राज्य सभा) में स्वस्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार का भी है.
सरकार का बयान तकनीकी हो सकता है और यह भी कि तकनीकी रूप से सरकार सही भी है कि किसी भी राज्य सरकार ने कोविड 19 की दूसरी लहर के दौरान या इसके बाद केंद्र सरकार या केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को यह रिपोर्ट नहीं दी है कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत हुई है. इस तकनीकी खेल के पीछे केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की ठहाके लगाती बेशर्म हंसी सुनाई देती है, ईमानदारी नहीं. स्वस्थ्य राज्य मंत्री प्रवीण पवार सच्चाई को छिपा कर तकनीकी खेल खेल रहे हैं.
ऑक्सीजन की कमी से तो सैकड़ों में नहीं, हजारों में मौतें हुईं. हां लचर व्यवस्था की पोल न खुल जाए, इस वजह से जहां भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य सरकारों ने मौत की रिपोर्ट केंद्र को नहीं दी तो गैर भाजपाई राज्य सरकारों ने भी इस खेल में खूब साथ दिया और राजनीति का दोहरा चरित्र यह कि विपक्ष संसद में सरकारी बयान पर हंगामा कर रहा है, यह बताने की कोशिश कर रहा है कि वह जनता के दुःख-तकलीफ का सच्चा साथी है, लेकिन क्या यह सच है, कहना कहां गलत है कि राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं.
मामले का अगर तकनीकी पक्ष ही देखें और सवाल खड़े करें कि जब मेडिकल ऑक्सीजन की कोई समस्या थी ही नहीं, सभी कुछ चकाचक था तो फिर देश-विदेश से एयरलिफ्ट कर ऑक्सीजन कंटेनर क्यों लाये जा रहे थे, ऑक्सीजन प्लांट लगाने की ऐसी इमरजेंसी क्यों थी, क्या यह सब आने वाली पीढ़ी के लिए था ?
सरकारें आंकड़ों पर चलती हैं, चाहे वह केन्द्र की हो या राज्यों की आंकड़ों और तकनीक के माध्यम से अपने को सही और आम जनता को मूर्ख साबित करती रहती हैं लेकिन यह मानवता के प्रति अपराध से कम नहीं है
यह भी मान लिया जाए कि दूसरी लहर के दौरान केन्द्र और राज्य सरकारों ने सभी इंतजाम पहले से कर रखे थे तो फिर मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए सरकारें बेचैन क्यों हो उठी थीं, और जब तक इंतजाम हुए तब तक किसी कोविड संक्रमित ने ऑक्सीजन का इंतजार ही किया मरने वालों ने तो सरकारी ऑक्सीजन का मजा लेकर ही दम तोड़ा ?
सरकारें आंकड़ों पर चलती हैं, चाहे वह केन्द्र की हो या राज्यों की आंकड़ों और तकनीक के माध्यम से अपने को सही और आम जनता को मूर्ख साबित करती रहती हैं लेकिन यह मानवता के प्रति अपराध से कम नहीं है. हजारों परिवार इसके गवाह होंगे कि कैसे उनका कोई अपना आक्सीजन के अभाव में दुनिया छोड़ गया, लेकिन न ऐसे लोग तकनीकी आधार पर यह साबित कर सकते हैं कि उनके किसी परिजन की मौत ऑक्सीजन के अभाव में तड़प कर हुई और न सरकार मानेगी.
सरकारी आंकड़े ही सरकारों के बयान की चुगली करते हैं. अप्रैल और मई का महीना अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी से हाहाकार का महीना था. मीडिया रिपोर्ट और सरकार में मची अफरातफरी इसके गवाह हैं. कोई ऐसा राज्य शायद ही रहा हो, जहां ऑक्सीजन की कमी नहीं थी और इसके अभाव में लोग मरे न हों.
अभी संसद का सत्र चल रहा है तो मुद्दा गर्म है लोग भी ध्यान दे रहे हैं. कल सत्र खत्म हुआ और मामला भी खत्म हो जाएगा, यह लोकतंत्र है समस्या समाधान तो होंगे, लेकिन सरकार की सुविधा से जनता की नहीं, सरकार अपनी सुविधा से जवाब देगी. विपक्ष अपनी सुविधा से मुद्दे उछालेगा, इस सब के बीच जनता कहीं नहीं है, पर रुक कर सोचिए सरकार यह बेशर्मी है या नहीं ?