MumbaI : पद्म भूषण, पद्म विभूषण, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजे गये हिन्दी सिनेमा के महान कलाकार दिलीप कुमार ने बुधवार सुबह 98 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. दिलीप कुमार का दुनिया से अलविदा कहना हिंदी सिनेमा के लिए बड़ी क्षति है. दिलीप कुमार को भारतीय सिनेमा के महानतम एक्टर्स में से एक माना जाता था. उनके नाम एक भारतीय एक्टर के रूप में सबसे ज्यादा अवॉर्ड्स जीतने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड है.
अपने पांच दशकों के करियर में दिलीप साहब ने कई अवॉर्ड्स जीते थे. इसमें 8 फिल्मफेयर अवॉर्ड्स (बेस्ट एक्टर), एक फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, नेशनल फिल्म अवॉर्ड, पद्मभूषण, पद्म विभूषण, दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड और पाकिस्तान सरकार द्वारा दिया सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशां-ए-पकिस्तान शामिल हैं. दिलीप कुमार साहब जैसा सितारा ना कभी किसी फिल्म इंडस्ट्री में था और ना होगा.
बता दें कि फिल्म इंडस्ट्री में कम ही ऐसे लोग आये है जिन्हें सदियों तक दर्शकों के दिलों पर राज करने का मौका मिला हो. दिलीप कुमार ऐसे ही कलाकारों में से थे, जो ना सिर्फ फिल्मी पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी लोगों के हीरो बने और उनके दिल में बस गये. दिलीप के नाम और काम को लेकर फैन्स में ऐसी दीवानगी थी कि लोग उनकी कोई फिल्म देखना मिस नहीं करते थे. देश की लड़कियां तो उनके प्यार में पागल थी हीं, बॉलीवुड की कई एक्ट्रेसेज के मन में दिलीप बसते थे. उन्हीं में से एक उनकी पत्नी सायरा बानो भी थीं.
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दिलीप कुमार का जन्म पेशावर में हुआ था
दिलीप कुमार का जन्म ब्रिटिश इंडिया के पेशावर स्थित किस्सा खावानी बाजार एरिया की हवेली में 11 दिसंबर को हुआ था. उनका असली नाम मोहम्मद युसूफ खान था. उनकी मां आयशा बेगम और पिता लाला गुलाम सर्वर खान थे. दिलीप के 12 बहन-भाई थे. दिलीप कुमार ने नासिक के देओली स्थित बार्नेस स्कूल से अपनी पढ़ाई की थी. सुपरस्टार राज कपूर उनके बचपन के दोस्त थे. दोनों ने एक ही मोहल्ले में अपना बचपन बिताया था. आगे चलकर दोनों फिल्मी सितारे और साथी बने.
बताया जाता है कि 1940 के दशक में दिलीप कुमार की अपने पिता से बहस हो गयी थी, जिसके बाद उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था और पुणे आ गये थे. यहां एक पारसी कैफे ओनर और वृद्ध एंग्लो इंडियन कपल की मदद से उन्होंने अपना सैंडविच स्टॉल खड़ा किया था. उन्हें उनके ज्ञान और अच्छी अंग्रेजी बोलने की वजह से यह कॉन्ट्रैक्ट मिला था. कॉन्ट्रैक्ट के खत्म होने पर दिलीप कुमार ने 5000 रुपये बचाये थे और मुंबई में अपने घर वापस लौटे थे.
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देविका रानी ने मोहम्मद युसूफ खान से दिलीप कुमार नाम रखने के लिए कहा
साल 1943 में पिता की घर में मदद करने के लिए दिलीप कुमार ने काम की तलाश की और बॉम्बे टॉकीज पहुंचे थे. शुरुआत में दिलीप साहब अपनी उर्दू भाषा पर पकड़ होने की वजह से स्टोरी राइटिंग और स्क्रिप्टिंग का काम किया करते थे. उस समय बॉम्बे टॉकीज की मालकिन रहीं एक्ट्रेस देविका रानी ने दिलीप को उनका नाम मोहम्मद युसूफ खान से दिलीप कुमार रखने के लिए कहा था. इसके बाद देविका ने उन्हें फिल्म ज्वार भाटा में कास्ट किया, जो 1944 में रिलीज हुई थी. हालांकि इस फिल्म पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.
एक्ट्रेस नूरजहां संग फिल्म जुगनू में काम किया
कुछ फ्लॉप्स देने के बाद दिलीप कुमार ने एक्ट्रेस नूरजहां संग फिल्म जुगनू में काम किया. ये उनकी पहली हिट फिल्म थी. इसके बाद उन्होंने शहीद और मेला जैसी हिट दीं. फिर उन्होंने नरगिस और दोस्त राज कपूर के साथ फिल्म शबनम में काम किया. यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर हिट रही. 1950 का समय दिलीप कुमार का था. यह वो समय था जब उन्होंने एक के बाद एक हिट फिल्म दी.
बॉलीवुड के ट्रेजेडी किंग का नाम मिला
यह वो दौर था जब दिलीप कुमार ने बहुत सारे गंभीर रोल निभाये, जिसकी वजह से उन्हें बॉलीवुड के ट्रेजेडी किंग का नाम मिला. अपने ट्रैजिक किरदार को निभाते हुए वह कुछ समय तक डिप्रेशन की समस्या से भी जूझे थे. इसके बाद अपने मनोचिकित्सक की सलाह पर उन्होंने खुशमिजाज किरदारों को करना शुरू किया. मेहबूब खान की फिल्म आन में उन्होंने अपना पहला लाइट किरदार निभाया था. ट्रैजिक रोल्स के साथ-साथ दर्शकों को दिलीप कुमार का हल्का फुल्का, हंसता हुआ अंदाज भी पसंद आया और वह हिट पर हिट देते गये.
फिल्म मुगल-ए-आजम में शहजादे सलीम का किरदार निभाया
1960 में दिलीप कुमार ने फिल्म मुगल-ए-आजम में शहजादे सलीम का किरदार निभाया था. यह बॉलीवुड के इतिहास की सबसे ज्यादा कमाई करने वाल फिल्म बनी और 11 साल तक टॉप पर बनी रही. 1961 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म गंगा जमुना को प्रोड्यूस किया था और बतौर प्रोड्यूसर यह उनकी इकलौती फिल्म थी. 1970 का समय वो समय था जब दिलीप कुमार ने अपने करियर में नाकामी का सामना किया. उनकी बहुत सी फिल्में फ्लॉप हुईं और बहुत सी फिल्मों में उनके बजाय राजेश खन्ना और संजीव कुमार को काम दिया गया. ऐसे में उन्होंने 5 साल का ब्रेक लिया था.
1981 में दिलीप साहब ने फिल्म क्रांति से कमबैक किया था, जो उस साल की सबसे बड़ी हिट रही थी. 1991 में आयी फिल्म सौदागर उनकी बॉक्स ऑफिस पर आखिरी सफल फिल्म थी. उन्हें आखिरी बार 1998 में आयी फिल्म किला में देखा गया था, जो फ्लॉप हुई थी.
लगभग 60 फिल्मों में काम किया
दिलीप कुमार ने पांच दशक के करियर में लगभग 60 फिल्में कीं. उनके बारे में एक बात और कही जाती है कि उन्होंने अपने करियर में कई फिल्मों को ठुकरा दिया था, क्योंकि उनका मानना था कि फिल्में कम हो लेकिन बेहतर होंय कई लोग बताते हैं कि उन्हें इस बात का मलाल रहा था कि वे प्यासा और दीवार में काम नहीं कर पाये.
दिलीप कुमार को पद्म भूषण और पद्म विभूषण अवॉर्ड से नवाजा गया
1991: पद्म भूषण
1994: दादासाहेब फाल्के
2015: पद्म विभूषण
10 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते
1954: बेस्ट एक्टर (दाग)
1956: बेस्ट एक्टर (अंदाज)
1957: बेस्ट एक्टर (देवदास)
1958: बेस्ट एक्टर (नया दौर)
1961: बेस्ट एक्टर (कोहिनूर)
1965: बेस्ट एक्टर (लीडर)
1968: बेस्ट एक्टर (राम और श्याम)
1983: बेस्ट एक्टर (शक्ति)
1994: लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड
2005: स्पेशल अवार्ड