Anand Kumar सारागढ़ी की लड़ाई याद होगी आपको. मात्र मुट्ठी भर सिख सिपाही मोरचे पर थे, और सामने थी 10 हजार ओक़ज़ई लड़ाकों की सेना. सारागढ़ी के रक्षक अदम्य साहस और वीरता से लड़े, 600 अफगानों को ढेर कर दिया. वे किला हार गये, लेकिन बहादुरी की चर्चा आज भी होती है. मंगलवार को भारत की मुख्यभूमि से 7809 किलोमीटर दूर एक और लड़ाई लड़ी गयी. खेल के मैदान पर. इस बार 11 भारतीय जांबाज मोर्चे पर थे और सामने थी एक ऐसी जमीन जिसे 32 साल से कोई फतह नहीं कर सका था. लेकिन जांबाजी के ऐसे ही कारनामे ही तो इतिहास में दर्ज होते हैं.

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36 रन का स्कोर और एडीलेड की वह शर्मनाक पराजय
बात हो रही है ऑस्ट्रेलिया में खेली गयी 4 टेस्ट मैचों की सिरीज की. पहले टेस्ट मैच में भारत को शर्मनाक पराजय मिली. एडीलेड में खेले गये दिन-रात के इस मैच में मैच भारत 8 विकेट से हारा और टेस्ट इतिहास के अपने सबसे न्यूनतम स्कोर स्कोर 36 पर ढेर हुआ. गुलाबी गेंद से खेले गये इस टेस्ट की शर्मनाक पराजय से मुंह काला कराने के बाद कप्तान किंग कोहली अपनी गर्भवती पत्नी की देखरेख करने के लिए पितृत्व अवकाश लेकर भारत लौट गये. भारत के प्रमुख तेज गेंदबाज मो शमी एक बाउंसर पर चोटिल हुए और सिरीज से बाहर हो गये.
मेलबर्न में जीत कर टेस्ट सिरीज बराबर की
अगला टेस्ट मेलबर्न में था. कप्तानी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे अजिंक्य रहाणे. भारत ने ऑस्ट्रेलिया को इस टेस्ट मैच में 8 विकेट से हरा दिया. इसके साथ ही उसने 4 मैच की सीरीज में 1-1 की बराबरी हासिल की. रहाणे ने शतक जड़ा, तो अपना टेस्ट डेब्यू कर रहे ओपनर शुभमन गिल ने भी अपनी ठोस बल्लेबाजी से प्रभावित किया. सिडनी में खेला गया तीसरा टेस्ट ड्रा रहा. भारत को जीत के लिए 407 रन का टारगेट मिला था. लेकिन भारत की दूसरी पारी ऋषभ पंत के ताबड़तोड़ 97 रनों के साथ हनुमा विहारी और रविचंद्रन अश्विन की जुझारू बल्लेबाजी के लिए याद रखी जायेगी. दोनों ने छठे विकेट के लिए 259 गेंदों में 62 रनों की नाबाद साझेदारी कर मैच को ड्रॉ करा दिया.
सभी प्रमुख भारतीय गेंदबाज चोटिल होकर बाहर बैठे
अब सिरीज 1-1 से ड्रॉ थी और भारत को ब्रिसबेन में खेलना था, जहां कंगारू 32 साल से कोई मैच नहीं हारे थे. गाबा के इस मैदान में भारत अपने पिछले 6 टेस्ट मैचों में एक भी जीतने में नाकाम रहा था, वहीं ऑस्ट्रेलिया ने पिछले सातों टेस्ट जीते थे. मैच के पहले ही भारत के सभी प्रमुख गेंदबाज चोटिल होकर बाहर बैठ चुके थे. बेंच पर बैठनेवाले और नेट प्रैक्टिस के लिए रखे गये गेंदबाजों पर ऑस्ट्रेलिया के 20 विकेट चटकाने की जिम्मेदारी थी. हर क्रिकेट प्रेमी के मन में सवाल था कि मो. शमी, जसप्रीत बुमराह, उमेश यादव, नवदीप सैनी, रवींद्र जडेजा और आर अश्विन के बिना नौसिखिया भारतीय गेंदबाजी भला क्या कर पायेगी. सिराज ने अपनी गेंदबाजी से प्रभावित तो किया था, लेकिन अब तक कुल जमा दो टेस्ट खेले इस पेसर को ही भारतीय गेंदबाजी का भार ढोना था. उनका साथ देनेवाले थे नेट गेंदबाजी के लिए रखे गये टी नटराजन और वाशिंगटन सुंदर. लेकिन प्रतिभा को बस एक अवसर चाहिए होता है. और उन्होंने एक इस अवसर को जीत में बदलकर मौके को बखूबी भुनाया.
युवा खिलाड़ियों ने मौकों को बखूबी भुनाया
युवा ओपनर शुभमन गिल ने सुनील गावस्कर का रिकॉर्ड तोड़ कर उम्मीदें जगायी हैं. चौथे टेस्ट में 91 रन की शानदारी पारी खेल कर वह चौथी पारी में फिफ्टी लगानेवाला सबसे युवा भारतीय ओपनर बन गया है. ऐसा कर उसने पूर्व भारतीय ओपनर सुनील गावस्कर का 50 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया. शुभमन की उम्र 21 साल और 133 दिन है और गावस्कर ने 21 साल और 243 दिन की उम्र में यह उपलब्धि हासिल की थी. युवा विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत की चर्चा के बिना यह लेख अधूरा रहेगा. तीसरे टेस्ट को उसने दूसरी पारी में 97 रन की पारी की बदौलत जीतने की कगार पर पहुंचा दिया था. और चौथे टेस्ट की चौथी पारी में उसके 89 रनों की बदौलत ही भारत सिरीज अपने नाम करने में कामयाब रहा
जीत में रहाणे की कप्तानी की बड़ी भूमिका रही
अब बात कप्तान की. जिस टीम के सभी प्रमुख तेज गेंदबाज और दोनों स्पिनर घायल होकर बाहर बैठे हों, और जिस टीम के आधे खिलाड़ी दो से ज्यादा टेस्ट मैच नहीं खेले हों, उसने एक अपराजेय मैदान पर चौथी पारी में 328 रनों का पीछा कर मजबूत ऑस्ट्रलिया को धो डाला है, तो इसका श्रेय कप्तान को ही जाता है. शांत लेकिन चतुर कप्तान रहाणे ने अपनी नयी और अनुभवहीन सेना में वह जज्बा और जोश पैदा किया कि इसने असंभव को भी संभव बना दिया. बाकी कहानी तो स्कोर कार्ड पर दर्ज है, लेकिन मंगलवार को गाबा के मैदान में खुशी से झूमती भारतीय टीम का जोश और विजयी रन बनानेवाले ऋषभ पंत की आंखों से बहते आंसू बहुत कुछ कह रहे थे.
इस सिरीज में दो बार लक्ष्य का पीछा किया भारत ने
अपमानजनक हार से शुरू हुई यह यात्रा ऐतिहासिक विजय के साथ खत्म हुई तो इसमें रहाणे की कप्तानी की बड़ी भूमिका रही. उन्होंने नये खिलाड़ियों से उनका बेस्ट निकलवाया और गेंदबाजी में चतुराई से बदलाव किये. सबसे बड़ी बात कि रहाणे ने खिलाड़ियों का भरोसा और सम्मान जीता है. दुनिया में माइक ब्रेयरली जैसे कुछ ऐसे खिलाड़ी हुए हैं, जिन्होंने अपने खेल से अधिक कप्तानी से ख्याति अर्जित की है. रहाणे भी इसी राह पर हैं. इस जीत के साथ भारत ने लगातार दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया को उसके ही घर में टेस्ट सीरीज में पटखनी दी. भारतीय टीम ने बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी लगातार तीसरी बार अपने नाम कर जीत की हैट्रिक भी लगायी. साथ ही ऑस्ट्रेलिया में अपना सबसे बड़ा 328 रन का टारगेट चेज किया. गाबा का मैदान पहली बार 300 से अधिक रनों का पीछा किये जाने का गवाह बना. और यह शायद पहली ऐसी विदेशी सिरीज है, जिसमें भारत ने दो बार लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत हासिल की है.
लगन, समर्पण और त्याग की मिसाल बने नटराजन और सिराज
जिस टीम की बल्लेबाजी की रीढ़ और दुनिया के महान बल्लेबाजों में शामिल कप्तान हार के बाद पीठ दिखा जाता है, उसी टीम में एक ऐसा भी खिलाड़ी है जिसने अपनी संतान को उसके जन्म से बाद से ही नहीं देखा है. वह है टी नटराजन. नटराजन को आइपीएल के बाद ऑस्ट्रेलिया दौरे की तैयारी में लगा दिया गया. अब जब नटराजन पहली बार अपने बच्चे का चेहरा देखेगा, तो वह तीन माह का हो चुका होगा. इसी टीम में मो सिराज भी है, जिसने सिरीज की शुरुआत में अपने पिता को खो दिया. उसके पास देश लौटने का मौका था, लेकिन उसने अपने पिता को मिट्टी देने से ज्यादा अहमियत अपने वतन की मिट्टी की लाज बचाने को दी. यह वही सिराज है जिसे ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों ने मंकी, डॉग और ग्रब (कीड़ा) कहा. और उसने अपनी गेंद से जवाब दिया. यह वही सिराज है जो अपने पिता की मौत को जी कड़ा कर बर्दाश्त कर जाता है, लेकिन अपने देश का राष्ट्रगान सुनकर उसकी आंख में आंसू आ जाते हैं. वही सिराज, जो सिरीज में 3 टेस्ट खेला और 13 विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिया में डेब्यू कर टेस्ट सीरीज में सबसे ज्यादा विकेट लेनेवाला भारतीय बॉलर है. एक अपने वतन और खेल भावना के लिए पिता का गम अपने सीने में ज़ज्ब लेता है और दूसरा अपनी पहली औलाद की खुशी कुर्बान कर देता है. उनके इस त्याग के लिए हम बस यही कह सकते हैं, शाबाश सिराज.. वाह नटराजन..!
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