Soumitra Roy
आउटलुक मैगज़ीन के प्रधान संपादक रुबेन बनर्जी 11 अगस्त, 2021 को एक महीने की छुट्टी पर चले गये. वे आज तक नहीं लौटे. उनके इस कदम को ग्रुप से बाहर हो जाने के तौर पर देखा जा रहा है. उनको छुट्टी पर जाने के लिए नहीं कहा गया, लेकिन पिछले कुछ वक्त से उनकी मैनेजमेंट द्वारा अवमानना की जा रही थी.
सोचिए क्यों? क्या हुआ होगा? जवाब जानने में दिलचस्पी है तो जानने के लिए आउटलुक के 13 मई के अंक का कवर देखिये. इसे मैग्ज़ीन के ऑनलाइन एडिशन से बाद में हटा दिया गया था. मैगज़ीन के कवर इमेज द्वारा सरकार के कोरोना कुप्रबंधन पर तंज के माध्यम से करारा प्रहार किया गया था.
कवर इमेज पर आगे लिखा था- नाम: भारत सरकार; उम्र: 7 साल; सूचित करें: भारत के नागरिकों को.
तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने इस कवर इमेज और मैगज़ीन के ऑनलाइन संस्करण में अंतर दिखाया.
इस घटना से आप समझ सकते हैं कि भारत में मीडिया का क्या हाल बना दिया गया है. आखिर वो कौन लोग हैं, जो पत्रकारिता का सेंसर बोर्ड बने हुए हैं. वो कौन लोग हैं, जो सत्ता से सवाल करने वाले संपादकों, अखबारों और टीवी चैनलों को घुटने के बल लेटने के लिये मजबूर कर रहे हैं. और कुछ नहीं तो मालिक को डरा-धमका करके संपादक-पत्रकार को ही रास्ते से हटने को मजबूर कर रहे हैं. नाम जानना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है.
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ये वही हैं, जिनके नाम की फिल्म बनते हैं. और वो फिल्में थियेटर में नहीं, बल्कि न्यूज चैनलों पर दिखता है और अखबारों में एडवरटोरियल के रूप में पढ़ा जाता है. 16 सितंबर को भी एक टीवी चैनल पर एक ऐसा ही फिल्म दिखाया जायेगा.
और इस सबके बाद भी आप यह सोचते हैं कि भारत में लोकतंत्र है. प्रेस आजाद है. तो यही कहा जा सकता है कि – कितने भोले हैं आप, या फिर शातिर! तभी तो आपका यह हाल है. ग़ुलाम जैसा.
Disclaimer- ये लेखक के निजी विचार हैं.