Faisal Anurag
पहले कब्र से निकाल कर रेप की धमकी और अब अब्बाजान के बहाने उत्तर प्रदेश के चुनाव को सांप्रदायिक बनाने की राजनीति. उत्तर प्रदेश के ही पिछले विधान सभा चुनाव में कब्रिस्तान बनाम श्मसान या फिर ईद बनाम दीवाली के बहाने ध्रुवीकरण का खुला खेल. झारखंड विधानसभा के चुनाव के दौरान कपड़ों से पहचानने की बात हो या फिर बंगाल के चुनाव में बेगम ममता के बहाने चुनाव को पूरी तरह सांप्रदायिक बनाने का सवाल. सड़क छाप टिप्पणियां तो अलग ही कहानी कहती हैं. इन सारी बातों को प्रधानमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए संविधान के नाम पर ली गयी शपथ का खुलेआम उल्लंघन करते हैं. इस ध्रुवीकरण के लिए गुजरात में ”मियां मुशर्रफ” या फिर पाकिस्तान का हवाला देने का इतिहास तो 21 साल पुराना हो चुका है. यूपी के मुख्यमंत्री का बयान न केवल एक समुदाय को नीचा दिखाना है बल्कि वह हेट स्पीच से कम नहीं हैं. तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुबा मोइत्रा ने इसे हेट स्पीच बताया हे. नरेंद्र मोदी की समर्थक प्रत्रकार तवलीन सिंह की भी नींद खुली है और वे अब कह रही हैं कि यह एक गंभीर किस्म का हेट स्पीच है.
कोविड में शव वाहिनी गंगा बने यूपी में इस समय भाजपा के लिए चुनावी हालात अनुकूल नहीं हैं. खास कर किसान आंदोलन ने तो भाजपा की परेशानी तक बढ़ा दी है. किसानों का असर और ताकत केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी राकेश टिकैत की सभाओं में किसानों की भारी भीड़ दिखने लगी है. इंडियन एक्सप्रेस में कवर विज्ञापन में तस्वीरों के सहारे विकास की चकाचौंध की पोल खुल चुकी है और योगी सरकार की किरकिरी चारों ओर हो रही है. इंडियन एक्सप्रेस को इस संदर्भ में माफी मांगनी पड़ी है. यही नहीं पूरे यूपी में अज्ञात बुखार से बड़ी संख्या में मौत की खबरें स्थानीय अखबरों में छपने से यूपी सरकार की चुनावी संभावना प्रभावित होने के अंदेशे ये भी आदित्यनाथ की बेचेनी की चर्चा सार्वजनिक है. बच्चों की मौत एक बार फिर चार सालों पहले के गोरखपुर की उस घटना की याद दिलाता है जिसमें मेडिकल कालेज में आक्सीजन के अभाव में बड़े पैमाने पर बच्चे मरे थे.
ऐसे संजीदा नाकामयाबियों के बीच अब्बजान का जुमला उछाला गया है. योगी इस संदर्भ में शायद भूल गए कि वे जिन लोगों पर गरीबों का राशन चुरा लने की बात कर रहे हैं उनमें बंगालादेश अब भारत को टेक्सटाइल के क्षेत्र में पीछे छोड़ कर एशिया लीडर बनने की होड़ में हैं. योगी आदित्यनाथ इस तथ्य को भी छुपाने का प्रयास करते दिख रहे हैं कि आखिर 130 करोड़ की आबादी वाले देश में 80 करोड़ लोग राशन खरीद कर खाने की हालत में क्यों नहीं हैं. 2015 में देश में गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों की संख्या करीब 35 करोड़ थी. सिर्फ पिछले 1 साल में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए. सरकार 80 करोड़ को मुफ्त राशन देने का दावा करती है. इस आंकड़े में यूपी तो बेहद नीचे है. आखिर किन लोगों के नेतृत्व में 130 करोड़ में से 80 करोड़ की जिंदगी को इन हालातों में पहुंचा दिया गया है. यूपी में पिछले पांच सालों तो योगी आदित्यनाथ की ही सरकार है.
आमतौर पर आदर के लिए पिता के लिए अब्बा हुजूर कहने का रिवाज है. लेकिन यूपी में भाजपा की पूरी कोशिश है कि वह सरकार के खिलाफ उभरे भारी असंतोष को सांप्रदायिक आधार पर अपने पक्ष में इस्तेमाल कर ले. मुजफ्फरनगर के किसानों के महापंचायत में तो किसान नेताओं ने जिस बुलंदी के साथ एक ही ””हरहर महादेव और अल्लाह हू अकबर”” का नारा लगा कर भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को बेनकाब कर दिया. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद ही यूपी का चुनावी माहौल भाजपा के लिए अनुकूल हो गया था. इस दंगे के आरोपियों के खिलाफ यूपी सरकार बड़े पैमाने पर मुकदमें वापस ले रही है. भाजपा की राजनीति एक ओर ओबीसी और दलितों के साथ महिलाओं की भागीदारी के बहाने इन तबकों को भी आकर्षित करने का है तो दूसरी ओर सांद्रदायिक ध्रुवीकरण तो उसका सबसे आजमाया हुआ हथियार है.
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के भाषाणों में ही ध्रुवीकरण के तमाम सूत्र मुहैया कराए जा रहे हैं. यह लोकतंत्र के दोर में यह एक संजीदा मामला है. नागरिकों को सरकारों के कार्यकाल के प्रदर्शन के आधार पर निर्णय करने के लिए प्ररित करने के बजाय उस नासूर को बनाए रखने की कोशिश है, जिसकी कीमत अंतत: आमलोंगो को ही चुकानी पड़ती है.