Ranchi: झारखंड बीजेपी से निष्कासित कार्यकर्ता अमृतेश सिंह चौहान ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर रिश्वत लेकर काम ना करने का आरोप लगाया था. इसी आरोप को उत्तराखंड के एक पत्रकार उमेश कुमार सिंह ने कोर्ट तक पहुंचाया. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मामले की सीबीआइ जांच कराने का आदेश दिया. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ओर से हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है. लेकिन ऐसा नहीं है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को मामले से बरी कर दिया गया है. इस बीच बीजेपी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जीत की तरह देखा जा रही है, तो वहीं विपक्ष की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तोड़-मड़ोर कर पेश करने का आरोप लगाया जा रहा है.
क्या है सुप्रीम कोर्ट के आदेश में
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को समझने से पहले उत्तराखंड के हाईकोर्ट के फैसले को समझने की जरूरत है. पत्रकार उमेश कुमार सिंह की दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सीबीआइ के एसपी देहरादून दो दिनों के अंदर मामले में एफआइआर दर्ज करें. साथ ही अदालत में जमा किये सारे कागजात ईमेल और हस्त लिखित दस्तावेज दो दिन के अंदर सीबीआइ को दे दी जाये.

इसके अलावा प्रार्थी के अधिवक्ता को निर्देश दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्री में सारे कागजात जमा किये जायें. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इन्हीं तीन आदेशों पर रोक लगायी गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चार हफ्ते के अंदर शिकायतकर्ता पत्रकार उमेश कुमार सिंह मामले में हल्फनामा दायर करें. शिकायतकर्ता की तरफ से हल्फनामा दायर होने के बाद दो हफ्ते के अंदर त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरफ से हल्फनामे का जवाब दिया जाये. इस लिहाज से समझा जा सकता है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत पर लगे आरोपों को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से खारिज नहीं किया गया है. बल्कि मामले को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया अपनायी गयी. प्रक्रिया पूरी होने तक सीबीआइ एफआइआर नहीं कर सकती.
झारखंड के अमृतेश चौहान अहम भूमिका में
इस हाइफाइल केस के केंद्र में झारखंड बीजेपी से निष्कासित अमृतेश सिंह चौहान केंद्र में हैं. अमृतेश सिंह चौहान ने ही सोशल मीडिया पर त्रिवेंद्र सिंह रावत पर रिश्वत लेकर भी काम ना करने का आरोप लगाया था. जिसके आधार पर उत्तराखंड के पत्रकार उमेश ने मामले को कोर्ट तक पहुंचाया.
अमृतेश सिंह ने सोशल मीडिया पर दावा किया था कि उन्होंने त्रिवेंद्र सिंह रावत की बहन के पति हरेंद्र सिंह रावत के खाते में करीब सात लाख रुपये जमा कराये थे. साथ ही कुछ पैसे दूसरे तरीके से उत्तराखंड पहुंचाये थे. अब शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों के लिए झारखंड अमृतेश सिंह अहम कड़ी माने जा रहे हैं.
दूसरी तरफ मामले को लेकर झारखंड बीजेपी ने चुप्पी साध ली है. पार्टी की तरफ से किसी तरह का कोई बयान जारी नहीं किया जा रहा है.
उत्तराखंड सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का झारखंड कनेक्शन
बात 2014-2016 की है. पार्टी में रहते हुए अमृतेश सिंह चौहान उस वक्त के झारखंड प्रभारी और मौजूदा उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, तत्कालीन झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र राय और तत्कालीन संगठन महामंत्री राजेंद्र सिंह से काफी करीब हो गये. इतने करीब की उत्तराखंड से लेकर झारखंड तक ये किसी भी बीजेपी नेता के आवास पर बेधड़क आया-जाया करते थे.
2016 नवंबर-दिसंबर में उत्तराखंड में चुनाव हो रहा था. 2017 के दिसंबर-जनवरी से अमृतेश सिंह चौहान ने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट से सभी को चौंकाना शुरू किया. उन्होंने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर घूस लेने का आरोप लगाया. आरोप लगाया गया कि गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष बनाने के एवज में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अमृतेश सिंह चौहान से रिश्वत ली. ये रकम अमृतेश सिंह चौहान ने एक सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र रावत की पत्नी के बैंक खाते में डाली.
सोशल मीडिया पर बात आते ही उत्तराखंड के एक पत्रकार उमेश शर्मा ने मामले को कोर्ट तक पहुंचा दिया. इधर फेसबुक पर बार-बार पार्टी विरोधी बयानबाजी करने की सूरत में अमृतेश सिंह रावत को पार्टी से बाहर कर दिया गया.