Ranchi : CSE के 2020 के आकड़ों के अनुसार हमारे देश में 3159 कचरे के पहाड़ खड़े हैं. झारखंड की राजधानी रांची के निकट झीरी में कचरे का पहाड़ बना दिया गया है. जिसमें लगभग 800 MT कचरा सड़ रहा है. यह आसपास की मिट्टी, पानी और हवा के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है. यह हाल कमोबेश सभी शहरों का है. कूड़े के पहाड़ों से मीथेन गैस का भारी मात्रा में उत्सर्जन हो रहा है. जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ वायु प्रदूषण समस्या को और बढ़ा रहे हैं. इन डंपिंग ग्राउंड्स में लगने वाली आग और धुएं से पर्यावरण को अपूरणीय क्षति हो रही है. गली, मुहल्लों, खाली प्लॉट्स और जल स्रोतों में फेका जाने वाला कचरा भी स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है.
आज अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर हम एक ऐसे मुद्दे की बात करने जा रहे हैं, जिसका हम और आप प्रतिदिन सामना तो करते हैं, लेकिन कहीं नाक सिकोड़कर निकल जाते हैं या कहीं मेरा काम नहीं है… कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं. आज हम बात करेंगे घरों और शहरों से निकलने वाले कचरे और उसके प्रबंधन की. जैसे जैसे हमारे देश में शहरों का विस्तार तेजी से होने लगा है, वैसे वैसे कचरा प्रबंधन एक समस्या के रूप में उभरने लगा है आज क्या गांव, क्या शहर, हर जगह कूड़े का उचित प्रबंधन एक समस्या बन चुका है. महानगरों और बड़े शहरों में यह अब विकराल समस्या का रूप ले चुका है. यह हमारे पर्यावरण और जैव विविधता के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है.
बेहतर प्रबंधन (recycle) से हम इसे उपयोगी बना सकते हैं
कचरा मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होता है, जिसे रोका नहीं जा सकता है. लेकिन इसका बेहतर प्रबंधन (recycle) कर हम इसे उपयोगी बना सकते हैं. इसका प्रयोग ग्रामीण जीवन में बेहतर तरीके से किया जाता है. वहां यह कभी समस्या का रूप नहीं लेता है. ग्रामीण जीवन में कूड़ा मुख्य रूप से 2 जगहों से निकलता है. पहला घर से और दूसरा खेतों से. खेतों से निकलने वाला कचरा घास, फसलों के हरे और सूखे अवशेष घरेलू जानवरों के भोजन का मुख्य स्रोत बन जाते हैं. साथ ही घरों से निकलने वाले गंदे पानी का उपयोग kitchen गार्डन में कर लिया जाता है. गांवों में कचरा प्रबंधन एक तरह से हो जाता है.
बढ़ते शहरीकरण से पीछे छूट गया कचरा प्रबंधन
पिछले कुछ वर्षों में कचरे के प्रति हमारे दृष्टिकोण में भारी बदलाव हुआ है. पहला बढ़ते शहरीकरण के कारण रीसाइक्लिंग के सहयोगी कहीं पीछे छूट गये, चाहे वो छोटे-बड़े जानवर हों या कम्पोस्ट के गड्ढे. दूसरा मेरा कचरा मेरी जिम्मेवारी का भाव हमारे अन्दर ख़त्म होने लगा. कचरे के प्रति हमारा कर्तव्य सिर्फ उसे अपने दरवाजे के बाहर कर देने तक ही सीमित हो गया . तीसरा घरों और शहरों से निकलने वाले कचरों में प्लास्टिक नामक नया पदार्थ जुड़ गया, जिसके प्रबंधन के लिए विशिष्ट दक्षता की जरूरत थी. वैसी स्थिति में स्थानीय निकायों ने घरों और मुहल्ले से कचरा उठा कर शहर के बाहरी इलाकों में कूड़े का पहाड़ खड़ा करना चालू दिया.
अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस 22 मई
आज अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर यदि हम अपने कूड़े के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए, इसके निष्पादन में सक्रिय भूमिका निभाना शुरू करें तो पर्यावरण संरक्षण में बड़ा योगदान कर सकेंगे. यदि हम अपने घर से निकलने वाले कचरे पर एक नजर डाले तो पायेंगे कि कुल कचरे का 50-70 प्रतिशत तक रसोई से निकलने वाला गीला कचरा होता है, जिसे बड़ी आसानी से घर पर ही खाद में बदला जा सकता है. खाद KHANCHI या दूसरे composter bin का प्रयोग कर प्रतिदिन निकलने वाले गीले कचरे (बचा हुआ खाना, सब्जी और फल के छिलके आदि और सूखे पत्ते) को cocopeat/ sawdust की मदद से सैंडविच की तरह लेयर बनाते जायें. 2-3 दिन में एक डंडे की सहायता से कूड़े को चला दें, ताकि अन्दर हवा का संचार हो सके. अगले 40 दिनों में प्रकृति अपने पूरी क्षमता के साथ composter bin के अन्दर काम करती है और आपको उच्च गुणवत्ता की खाद प्राप्त हो जायेगी. यह जैविक कचरे को निष्पादित करने का सबसे आसान और पर्यावरण अनुकूल तरीका है
चार सदस्यों का परिवार प्रतिमाह लगभग 10 kg कम्पोस्ट प्राप्त कर सकता है
खाद- KHANCHI के प्रयोग से एक 4 लोगो का परिवार प्रतिमाह लगभग 10 kg कम्पोस्ट और 1-1.5 लीटर तरल खाद प्राप्त कर सकता है. परिवार इस खाद का इस्तेमाल अपने गमलों में फुल और सब्जी आदि के उत्पादन के लिए कर सकता है. इसके अलावा खाद आसपास के गांवों में किसानो को भी दे सकते हैं या आसपास की मिटटी में बिखेर सकते हैं. इससे न सिर्फ मिटटी की गुणवत्ता बढ़ेगी बल्कि आसपास हरियाली भी बढ़ेगी. बचा प्लास्टिक, कूट, बोतल जैसे recycle किये जा सकने वाले कूड़े को अलग से बोरे में रखें और कूड़ा बीनने वालों को दे दें. इससे रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया न सिर्फ ज्यादा बेहतर होगी बल्कि कूड़ा बीनने वालों को साफ सुथरे तरीके के अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो पायेगी. कूड़ा प्रबंधन में यह छोटी सी भागीदारी पर्यावरण और जैव विविधता संरक्षण के दृष्टिकोण से मील का पत्थर साबित होगी. इससे हम अपनी आने वाली पीढ़ी को हरा भरा और बेहतर कल दे पायेंगे.
Binod kumar
लेखक कूड़ा प्रबंधन और terrace फार्मिंग से जुड़ी रांची based startup अर्बन- kheti से जुड़े हैं पिछले 2 सालों से अपने रसोई से निकलने वाले जैविक कचरे को खाद में तब्दील कर रहे हैं. तकरीबन 70 परिवारों के सहयोग से अपने waste का प्रबंधन खुद से कर रहे हैं.