Faisal Anurag
”हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों और चल रहे किसान आंदोलन के शहीदों से प्रेरणा लेते हुए हम केंद्र सरकार द्वारा पारित किये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर के किसानों का समर्थन तब तक जारी रखेंगे, जब तक वे निरस्त नहीं कर दिए जाते. हम प्रतिज्ञा लेते हैं कि हम किसानों, खेती और गांवों को कॉरपोरेट के हाथों से बचाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखेंगे और देश की खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को बचाएंगे. हम तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने और सी2 + 50 प्रतिशत न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सभी कृषि उत्पाद की गारंटीकृत खरीद के लिए कानून को लागू करवाने के लिए हर बलिदान के लिए तैयार हैं. हम मानते हैं कि जब तक भारत का किसान बचा रहेगा, तभी तक ही भारत भी बचा रहेगा और मजबूत बनेगा”, किसानों ने इसी संकल्प के साथ नए साल का आगाज किया.
यह संकल्प बताता है कि किसानों की निर्णायक लड़ाई 4 जनवरी के बाद और तेज होगी. किसानों ने देशभर के तमाम किसानों, मजदूरों, युवाओं, महिलाओं, आदिवासी, अल्पसंख्यक, दलित व बहुजन संगठनों, साथ ही सभी लोगों तथा नागरिक अधिकारों पर आधारित जन संगठनों और नागरिकों से अपील की है कि वो देशभर में चल रहे किसान आंदोलन का समर्थन करें.
किसानों का आह्वान केंद्र के लिए मुसीबत से कम नहीं है. छठे छोर की बातचीत के बाद दो मुद्दों पर सहमति बनने के बाद उम्मीद जतायी जा रही है कि केंद्र सरकार तीनों कानूनों को निरस्त करने और एमएसपी के लिए कानून बनाने की मांगों पर नजरिया साफ कर देगा.
हालांकि प्रधानमंत्री सहित केंद्र के तमाम मंत्री पहले से ही कहते आ रहे हैं कि तीनों कानून किसानों के हित में हैं और उन्हें निरस्त नहीं किया जा सकता. एमएसपी के सवाल पर भी केंद्र अलग से कानून बनाने के लिए अब तक तैयार नहीं है, लेकिन केंद्र ने किसानों से कहा है कि वह एक समिति बना सकती है जो एमएसपी के सवाल पर हल निकाले. लेकिन किसानों ने कहा है कि वे किसी समिति के लिए सहमत नहीं हैं, वे एमएसपी की गारंटी के लिए कानून चाहते हैं.
क्या केंद्र और किसानों के बीच इन दोनों मुद्दों पर कोई सहमित बन पाएगी. अब तक के सरकार के रूख इस बाबत कोई सकारात्मक उम्मीद नहीं दिखा पा रहे हैं. इस बीच केरल सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी प्रस्ताव विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित कराया है. सरकार के प्रस्ताव को भाजपा के इकलौते विधायक ने भी समर्थन दिया है. यह समर्थन मायने रखता है क्योंकि अब तक भारतीय जनता पार्टी कानूनों के समर्थन में अभियान चला रही है.
माना जा रहा है कि केरल भाजपा के विरोध के बावजूद विधायक का यह समर्थन उस जनसमर्थन का ही परिणाम है, जो किसानों के पक्ष को मजबूत बनाता है. केरल तीसरा राज्य है, जिसने केंद्र के कानून को निरस्त करने संबंधी प्रस्ताव को पारित किया है. इसके पहले पंजाब और दिल्ली की विधानसभाओं में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया जा चुका है. पंजाब की विधानसभा ने तो एक नया कानून भी बनाया है, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद को अपराध करार दिया गया है, उसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है.
कृषि कानूनों पर केंद्र और राज्यों के संबंध में इस तरह का अंतरविरोध भी किसानों की एक बड़ी ताकत है. देश के पिछले पांच दशकों में मशहूर फोटोग्राफर रघु राय ने उन तमाम बड़ी घटनाओं को तस्वीरों में कैद किया है. साल के अंत में 82 साल के राय टिकरी बॉर्डर भी पहुंच गए. उन्होंने द टेलिग्राफ से बात करते हुए इस आंदोलन को ऐतिहासिक बताया है और कहा है कि इस आंदोलन ने ग्लोबलाइजेशन के 1991 की परिघटना के बाद पहली बार संस्कृति और पहचान के सवाल को रेखांकित किया है. रघु राय ने यह भी कहा है कि भारत के आंदोलनों के इतिहास में किसानों का यह संघर्ष सबसे अलग है. राय के शब्दों में यह केवल विरोध नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक इतिहास का पुनर्लेखन भी है.
किसान आंदोलन के नेता 4 जनवरी की वार्ता को लेकर नयी रणनीति बना रहे हैं. किसान नेता लंबी वार्ताओं के संजाल में फंसना नहीं चाहते हैं. उनकी मंशा है कि 4 की बैठक निर्णायक होनी चाहिए. उनके रूख का अभिप्राय यह है कि यदि 4 को भी कोई फैसला नहीं होता या सहमति नहीं बनती तो एक और डेडलॉक की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
राजस्थान दिल्ली बॉर्डर पर किसानों की भीड़ बढ़ती जा रही है. चेक नाकों को तोड़कर किसानों का काफिला शाहजहांपुर पहुंचने में कामयाब हो रहा है. 2021 में किसान नया इतिहास बनाने के लिए प्रतिबद्ध दिख रहे हैं.