Faisal Anurag
जोसेफ रोबिनेटे बाइडेन की जीत मध्यमार्गी राजनीतिक की वापसी का संकेत है. दुनिया में बढ़ रही निरंकुशता और सता केंद्रीकरण की राजनीति का भी यह एक संदेश है. भारत के लिए बाइडेन की जीत के क्या मायने हैं. डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत अमेरिका के ज्यादा करीब आया. बाइडेन ने ही मनमोहन सिंह के कार्यकाल में परमाणु समझौते की रणनीति को कामयाब किया था. अमेरिका के लिए भारत का खासा महत्व है. दक्षिण एशिया में संतुलन के लिए अमेरिका भारत के महत्व को समझता है. बावजूद इसके बाइडेन और कमला हैरिस कश्मीर,धार्मिक स्वतंत्रता और सीएए जैसे संवेदनशील सवालों पर ट्रंप से अलग रूख प्रकट करते रहे हैं. कमला हैरिस तो खास तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार के लिए परेशानी पैदा करती रही हैं.
नरेंद्र मोदी के हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप कार्यकमों को लेकर अंदेशा प्रकट किया जा रहा है. हालांकि यह तथ्य है कि अमेरिका के लिए भारत एक महत्वपूर्ण एशियाई साझेदार है. लेकिन चीन,पाकिस्तान और अफगानिस्तान को लेकर बाइडेन के रूख ही तय करेंगे कि अमेरिका और भारत के बीच ट्रंप के कार्यकाल से भिन्न क्या होगा. वैसे बाइडेन का कार्यकाल अमेरिका में भारतीयों सहित तमाम प्रवासियों के अमेरिकी नागरिक बनने की प्रक्रिया में ढील का कार्यकाल हो सकता है.
ट्रंप ने माइग्रेट के सवाल को लेकर जो कड़ा रूख अपनाया था, उसमें नरमी आना तय है. अमेरिका में बेहतर भविष्य का सपना देखने वाले भारतीयों के लिए यह बेहतर संकेत है.
2020 के चुनाव में 68 प्रतिशत अमेरिकी भारतीय नागरिेकों ने बाइडेन के पक्ष में वोट दिया है. इसका मतलब स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी के अबकी बार फिर ट्रंप सरकार के नारे का उनपर कोई असर नहीं हुआ. नरेंद्र मोदी ने मान्य परंपराओं को दरकिनाकर कर जिस तरह अमेरिकी चुनावों में ट्रंप का पक्ष लिया, उसकी अमेरिकी भारतीयों ने भी आलोचना किया था. किसी भी देश के आंतरिक मामलों में इस तरह के राजनैतिक हस्तक्षेप को आज की दुनिया संदेह से देखती है. ट्रंप के 2016 में चुनाव में जीत के बाद से ही रूस और चीन के आंतरिक मामलों में दखल देने का सवाल अमेरिका में उठता रहा है. ट्रंप ने 2020 के चुनाव प्रचार में भी बाइडेन को बाहरी सहयोग का आरोप लगाया था.
हालांकि उसे गंभीरता से नहीं लिया गया. ट्रंप भी मानवाधिकारों के सवाल पर डेमोक्रेटों से भिन्न रहे हैं. कश्मीर के सवाल पर उन्होंने मध्यस्थता की बात जरूर की थी, लेकिन बाइडेन और हैरिस की तरह भारत की आलोचना कभी नहीं किया. इसी तरह भारत में नागरिकता के सवाल का मामला हो या धार्मिक स्वतंत्रता का ट्रंप की नीति मोदी के साथ रही. लेकिन सिनेटर के तौर पर इन सवालों पर कमला हैरिस के तल्ख विचार रहे हैं.
कोविड-19 के सवाल पर भी ट्रंप और मोदी की नीतियों में समानता रही है. कोरोना संक्रमित मरीजों के नजरिये से दुनियाभर में अमेरिका पहले और भारत दूसरे स्थान पर है. दुनिया में किसी भी देश की संप्रभुता का उल्लंघन करने वालों को सम्मान के नजर से नहीं देख जाता है. पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि जिस तरह सत्ता निरंकुशता का दौर बढ़ रहा है,आम लोगों का प्रतिरोध भी मुखर हो रहा है. ट्रंप के शासनकाल में बोलिबिया में जनता की चुनी इवो मारोलेस सरकार को अमेरिकी मदद से अपदस्थ किया गया.
इसका व्यापक असर दुनियाभर में महसूस किया गया. हाल ही में वहां हुए चुनाव में अमेरिका को भारी हार का सामना तब करना पड़ा, जब चुनावों में मारोलेस की पार्टी की वापसी हो गयी. दुनिया के आधे दर्जन से भी ज्यादा देशों में निरंकुशता और तानाशाही के खिलाफ जनप्रतिरोध चरम पर है. ऐसे में बाइडेन की जीत उन तमाम शासकों के लिए चुनौती है जिन्होंने मध्यमार्ग का रास्ता त्याग कर अपनी लोकप्रियता को आधार बना दक्षिणपंथी कठोरता की राह पर चल रहे हैं.
बाइडेन की जीत का एशिया में क्या प्रभाव होगा, यह इस पर निर्भर करता है कि बाइडेन ट्रंप के काल की अफगानिस्तान,पाकिस्तान और चीन नीतियों पर क्या रूख अपनाते हैं. तालिबान से बातचीत और अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर बाइडेन का रूख ही बतायेगा कि वह दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन के किस पहलू को महत्व दे रहे हैं. भारत के लिए भी अफगानिस्तान का सवाल महत्वपूर्ण है. अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत की बड़ी भूमिका रही है.
नरेंद्र मोदी ने बाइडेन को जीत की बधाई देकर भारत चीन संबंधों को और बेहतर होने की उम्मीद जतायी है. बराक ओबामा के समय में बाइडेन ने ही भारत अमेरिका परमाणु समझौते की रणनीति को अमली जामा पहनाया था.
उपराष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने यह भी कहा था कि 2020 तक वे भारत अमेरिका के प्रगाढ रिश्तों का सपना देखते हैं. अमेरिका के लिए भारत का महत्व है. अमेरिका के लिबरल तत्वों के लिए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि ट्रंप दुनिया के तमाम लोकतंत्रविरोधी प्रवृतियों के हिमायती के तौर पर उभरते नजर आये. जलवायु परिवर्तन का सवाल हो या मानवाधिकार का. ट्रंप के लिए ये सवाल महत्वहीन रहे हैं. जलवायु परिवर्तन का सवाल विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण है. यूरोप के कई देशों सहित दुनिया के अनेक हिस्सों की राजनीति इससे प्रभावित है.
अमेरिकी चुनाव का भारत के नेताओं के लिए भी यह संदेश है कि चुनाव जैसे संवेदनशील सवाल पर उन्हें किसी देश में दखल नहीं देना चाहिए. अमेरिकी भारतीय नागरिकों ने जिस तरह चुनावों में परिपक्वता का परिचय दिया है, वह हाउडी मोदी और नमस्ते मोदी का स्पष्ट नकार है.