London : धरती पर पानी कहां से आया. यह राज अब खुलनेवाला है. ब्रिटेन के शहर विंचकोम्बे (Winchcombe) में 2021 में एक घर के सामने गिरा प्राचीन उल्कापिंड (Meteorite) यह रहस्य उजागर करेगा. धरती पर गिरा उल्कापिंड लगभग 460 करोड़ साल पुराना था.खबरों के अनुसार इस उल्कापिंड में पानी था. यह पानी पृथ्वी पर पाये जाने वाले पानी की रासायनिक संरचना से काफी मिलता-जुलता था. वैज्ञानिकों के अनुसार इस उल्कापिंड से यह रहस्य सुलझ सकता है कि पृथ्वी पर पानी कहां से आया होगा.
The rock is 4.6 billion years old, meaning it was around at the beginning of the solar system ⬇️https://t.co/X9knb4dEIP pic.twitter.com/EEy5RiPd7w
— SPACE.com (@SPACEdotcom) November 19, 2022
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पृथ्वी बंजर बन गयी, जिसपर जीवन का होना असंभव था
वैज्ञानिकों का मानना है जब सूरज के पास गैस के गर्म बादल और धूल ने आपस में मिलकर युवा सौर मंडल के चट्टानी ग्रह बनाये, तो वे सूरज के इतने पास थे कि उनपर महासागर नहीं बन सके. असल में, फ्रॉस्ट लाइन नाम के एक पॉइंट के बाद, कोई भी बर्फ वाष्पीकृत होने से बच नहीं सकती थी, इससे युवा पृथ्वी बंजर बन गयी. जिसपर जीवन का होना असंभव हो गया. वैज्ञानिकों के अनुसार जब बाहरी सौर मंडल से बर्फीले क्षुद्रग्रहों के ज़रिए हमारे ग्रह पर जमा हुआ पानी आया, तब पृथ्वी ठंडी हुई और यहां की स्थिति बदली. हाल ही में हुए एक शोध में इसी थ्योरी को महत्व मिला है.
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यह शोध Science Advancesजर्नल में प्रकाशित हुआ
यह शोध साइंस एडवांसेज (Science Advances) जर्नल में प्रकाशित हुआ है, जिसमें विंचकोम्ब उल्कापिंड का एक नया विश्लेषण दिया गया है. ग्लासगो यूनीवर्सिटी में प्लैनेटरी जियोसाइंस के लेक्चरर और शोध के सह लेखक ल्यूक डेले (Luke Daly) के अनुसार विंचकोम्बे उल्कापिंड के विश्लेषण से हमें इस बात की जानकारी मिलती हैं कि पृथ्वी पर पानी कैसे आया. कहा गया है कि शोधकर्ता इस पर काम करना जारी रखेंगे, और हमारे सौर मंडल को और रहस्यों को उजागर करेंगे.
लंदन में नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के रिसर्च फेलो और शोध के लेखक Ashley King के अनुसार स्पेस रॉक के ज़मीन पर गिरने के कुछ ही घंटों में, उसपर से कार्बन का एक दुर्लभ प्रकार carbonaceous chondrite को जमा किया गया. यह उल्कापिंड सौर मंडल की मूल संरचना के रहस्य खोलता है.
यह उल्कापिंड बृहस्पति की कक्षा में चक्कर लगाने वाले एस्टेरॉएड से आया था
सूत्रों के अनुसार चट्टान के अंदर खनिजों और तत्वों का विश्लेषण करने के लिए, शोधकर्ताओं ने इसे पॉलिश किया, गर्म किया और इसपर एक्स-रे और लेजर किरणें डालीं. जांच से खुलासा हुआ कि यह उल्कापिंड बृहस्पति की कक्षा में चक्कर लगाने वाले एस्टेरॉएड से आया था और उस उल्कापिंड के द्रव्यमान का 11% हिस्सा पानी था. एस्टेरॉएड पर मौजूद पानी में हाइड्रोजन दो रूपों में था- सामान्य हाइड्रोजन और हाइड्रोजन आइसोटोप जिसे ड्यूटेरियम कहा जाता है. इससे भारी पानी बनता है.
वैज्ञानिकों ने पाया कि हाइड्रोजन से ड्यूटेरियम का अनुपात, पृथ्वी के पानी में पाये जाने वाले अनुपात से मेल खाता है. इसका मतलब यह निकाला गया कि इस उल्कापिंड का पानी और हमारे ग्रह के पानी का उद्गम एक ही है.