Soumitra Roy
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों से बात करने के लिए दिल्ली से 1200 किलोमीटर दूर कच्छ जाना पड़ा. क्यों?
क्योंकि दिल्ली की सीमाओं को चारों तरफ से घेरे आंदोलनकारी किसानों से आंख मिलाकर सच बोलना नहीं चाहते. वे कच्छ गये और 245 किसानों के सामने आदतन एक बार फिर कुछ वादे किये.
कल मेन स्ट्रीम मीडिया का एक एंकर गला फाड़कर रिपोर्टर से पूछ रहा था कि किसानों के लिए मोदी ने क्या संदेश दिया है? लेकिन न तो उस रिपोर्टर और न ही मीडिया में से किसी ने भी यह जानने की जहमत उठायी कि वे 245 किसान कौन थे?
इंडियन एक्सप्रेस ने कल ही छाप दिया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने कच्छ में जिन 245 सिख किसानों को इकट्ठा किया है, उनकी जमीनों के रिकॉर्ड गुजरात सरकार ने बीते 10 साल से दबा रखे हैं.
गुजरात सरकार का कहना है कि ये किसान राज्य में बाहर से आकर खेती कर रहे हैं, जिसकी अनुमति नहीं है.
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को किसानों के जमीन के रिकॉर्ड वापस करने को कहा है. लेकिन सरकार ने इस आदेश के खिलाफ अपील दायर कर रखी है. मेन स्ट्रीम मीडिया ने चतुराई से इस खबर को दबा दिया.
नैरेटिव यह सेट किया गया कि आंदोलनकारी किसानों से बातचीत की कमान अब मोदी ने संभाल ली है.
सोशल मीडिया ने मोदी के बयान का पंचनामा किया, लेकिन वे भी सच नहीं पकड़ पाये.
सच यही है कि जो शख्स सीएम रहते हुए 245 सिख किसानों के साथ इंसाफ नहीं कर सका, वह अब पीएम बनकर लाखों किसानों के साथ इंसाफ क्या करेगा? ऐसा इसलिए भी क्योंकि तीनों किसान कानूनों को लाने के पीछे कॉर्पोरेट के लिए बहुत सारा पैसा और मुनाफा है. इसे छोड़ा कैसे जा सकता है?
हिस्सेदारी बड़ी चीज है, फिर चाहे वह चौकीदार हो या वफादार.
इसलिए जरुरी यह है कि मोदी जी इस तरह के इवेंट से बाहर निकले और जमीन पर आयें. तभी उन्हें जमीनी हकीकत का पता चल पायेगा.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.