Faisal Anurag
कश्मीर सिंह कोई सेलिब्रिटी नहीं हैं. सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या पर हो हंगामा करने वाला मीडिया कश्मीर सिंह की आत्महत्या की चर्चा तक नहीं कर रहा है. सेलिब्रटी और किसान का फर्क मीडिया में साफ दिखता है. कश्मीर सिंह किसान हैं, जिन्होंने गाजीपुर बार्डर पर सुसाइड कर लिया. किसान आंदोलन में आत्महत्या करने वाले वे तीसरे किसान हैं. अब तक दिल्ली जाने वाले राजमार्गों पर जमे पैंतीस किसानों की मौत हो चुकी है. बावजूद इसके इन मौतों पर मीडिया खामोश है.
सूचना देने के अपने कर्तव्य का भी ठीक से वह निर्वाह नहीं कर पा रहा है. हर एक को याद है कि सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या देखते-देखते राष्ट्रीय मीडिया की खबर बन गया. उसे हत्या साबित करने के लिए मीडिया ने सारे नार्म तोड़ दिये. लेकिन सीबीआई ने माना की सुशांत की मौत हत्या ही है. अन्नदाता माने जाने वाले किसानों की मौत पर ओढ़ी गयी खामोशी कुछ और ही कहानी बता रही है.
जिन किसानों ने आंदोलन स्थल पर आत्महत्या किया है, उन्होंने इसके लिए सीधे केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री को कारण बताया है. कश्मीर सिंह ने भी अपने पंजाबी में लिखे सुसाइड नोट में कहा कि आखिर इस सर्दी में किसान कब तक बैठे रहेंगे. सरकार सुन नहीं रही है, इसलिए वे अपनी जान दे रहे हैं. सुसाइड नोट में यह भी लिखा है कि उनका बेटा और पोता भी आंदोलन में सेवा कर रहे हैं.
उनका अंतिम संस्कार यहीं दिल्ली-यूपी बार्डर पर होना चाहिए. अन्नदाताओं के तल्ख तेवर को जिस तरह नजरअंदाज किया जा रहा है, उसके परिणाम आने वाले दिनों में और भी भयानक हो सकते हैं.
मीडिया ने उन मृत किसानों की भी चर्चा नहीं किया है जो टिकरी,गाजीपुर या सिंघु बोर्डर पर मरे. शून्य के आसपास के तापमान में किसानों के सामने और कोई राह भी नहीं है. केंद्र सरकार छह दौर की बातचीत किसान नेताओं के साथ कर चुकी है, लेकिन किसानों के दो प्रमुख मांगों पर उसका रूख नकारात्मक ही है. कश्मीर सिंह की उम्र लगभग 75 वर्ष थी. टिकरी बॉर्डर पर किसान अमरजीत सिंह ने जहर पीकर आतमहत्या कर लिया था और इसके लिए जिम्मेदार प्रधानमंत्री को ही बताया था. सिंघु बॉर्डर पर बाबा राम सिंह की आत्महत्या के बाद हल्की हलचल देखी गयी थी, लेकिन प्रोपेगेंडा के शोर में मीडिया ने अंधेरे में दफन कर दिया. 39 दिनों में 35 किसानों की मौत बताती है कि वे अपनी मांग के प्रति कितने दृढ हैं. इसके पहले पंजाब से दिल्ली आने के क्रम में 20 अन्य किसानों की जान जा चुकी है.
किसान आंदोलन के नेता इन मौतों को शहादत बता रहे हैं. 1 जनवरी को आजादी के शहीदों के साथ इन किसानों की शहादत को संकल्प में बदलते हुए किसानों ने केंद्र को चेतावनी दिया है कि यदि 4 जनवरी की वार्ता में कोई फैसला नहीं होगा, तो वे बॉर्डर से दिल्ली के लिए कूच करेंगे और देशभर में कॉरपारेट को बंद कराने का आह्वान करेंगे. अंबानी अडाणी के उत्पादों के बहिष्कार के किसानों के आह्वान का असर होने लगा है.
पंजाब हरियाणा में जियो के टावर तोड़े गये हैं. इससे कंपनियां भी परेशान हैं. कॉरपारेट के खिलाफ इस तरह की सीधी लड़ाई को भारत पहली बार देख रहा है. इसके पहले एनरान मित्तल जैसी कंपनियों के खिलाफ किसानों का क्षेत्रीय असर वाले आंदोलन हुए थे. लेकिन देशव्यापी असर पहली बार देखा जा रहा है.
पंजाब,हरियाणा, राजस्थान,छत्तीसगढ़,बिहार, उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली कूच की तैयारी में हैं. 4 जनवरी को यदि केंद्र और किसानों के बीच समझौता होगा तो इन राज्यों के किसान भी दिल्ली आयेंगे. गुजरात में तो किसानों को रोकने के लिए गांवों को पुलिस पहरा और निगरानी में रखा गया है. बावजूद इसके 3000 किसान दिल्ली के लिए निकल चुके हैं. अब तक कहा जाता रहा है कि यह केवल पंजाब और हरियाणा का आंदोलन है, लेकिन केंद्र भी महसूस कर रहा है कि इस प्रोपेगेंडा के सहारे अन्य राज्यों के किसानों को रोका नहीं जा सकता है.