Ranchi : सरकार रघुवर दास की हो या हेमंत सोरेन की, मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी (IFS) को कई फर्क नहीं पड़ता. सरकार ने उनके लिए सारे नियम और कायदे ताक पर रख दिये हैं. उनके कार्यकाल में एक दर्जन से ज्यादा घपले और घोटाले हुए. उन पर आरोप लगा. लेकिन विभाग या सरकार की तरफ से उनके खिलाफ जांच नहीं हुई. वह IFS रहते हुए IAS कैडर की कुर्सी पर लगभग पांच साल से काबिज हैं. केंद्र से आधा दर्जन बार उनके खिलाफ जांच के लिए लिखा जा चुका है. ये पत्र राज्य के वन विभाग के प्रधान सचिव और दो बार मुख्य सचिव को भी लिखे गये हैं. इन पत्रों पर कोई एक्शन होने की सूचना नहीं है.
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एनजीओ ने लगाये हैं संगीन आरोप
रांची के एक एनजीओ ने त्रिपाठी पर वन विभाग से जुड़े कुछ संगीन आरोप लगाये. एनजीओ ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (cvc) को जांच करने को लिखा. सीवीसी ने केंद्रीय वन मंत्रालय को संज्ञान लेने को कहा. वहां से झारखंड के वन विभाग के प्रधान सचिव को 20 मार्च 2019, 16 सितंबर 2019, 08 जनवरी 2020 और 03 जून 2020 को जांच के लिए लिखा गया. लेकिन विभाग ने सिद्धार्थ त्रिपाठी के खिलाफ जांच शुरू नहीं की.
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वन विभाग से कार्रवाई नहीं होती देख केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य के मुख्य सचिव को लिखा. दिल्ली से 06 नवंबर 2020 को और 08 फरवरी 2021 को मुख्य सचिव को जांच के लिए लिखा गया. अभी तक मुख्य सचिव के स्तर से भी किसी कार्रवाई की सूचना नहीं है. मुख्य सचिव को लिखी चिट्ठी में भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साफ लिखा है कि सिद्धार्थ त्रिपाठी पर गंभीर आरोप हैं. अच्छे तरीके से जांच करायी जाये. साथ ही कार्रवाई की जानकारी मंत्रालय को दी जाये.
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5 साल से मनरेगा आयुक्त के पद पर हैं IFS सिद्धार्थ त्रिपाठी
2015 से लेकर अभी तक सचिवालय में शायद ही ऐसा कोई अफसर होगा, जिसका तबादला नहीं हुआ हो. लेकिन सिद्धार्थ त्रिपाठी अपवाद हैं. झारखंड में आईएएस अधिकारियों के लिए 117 पद चिन्हित हैं. इनमें से एक पद मनरेगा आयुक्त का भी है. 14 नवंबर 2015 से आईएफएस सिद्धार्थ त्रिपाठी इस पद पर हैं. केंद्र सरकार के नियम के अनुसार त्रिपाठी इस पद पर तीन महीने से ज्यादा नहीं रह सकते. यानी 14 फरवरी 2016 तक इस पद पर बने रह सकते थे. छह महीने के विस्तार के लिए केंद्र सरकार से अनुमति ली जानी थी, जो नहीं ली गयी. छह महीने के बाद सिद्धार्थ त्रिपाठी को इस पद पर रखने के लिए केंद्र सरकार को यूपीएससी से अनुमति लेनी चाहिए थी. वह भी नहीं ली गयी.