Nishikant Thakur
आखिरकार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी गुजरात की अपनी चुनावी सभा और रैलियों को संबोधित कर आए. दक्षिण भारत से उत्तर की ओर बढ़ने में गुजरात और हिमाचल कहीं नहीं आता है. कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की अपनी 3,570 किलोमीटर की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ जैसी महत्वपूर्ण और दुर्लभ पदयात्रा को बीच में छोड़कर राहुल गांधी की सूरत और राजकोट में रैली अपने महत्व को दर्शाता है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच जो चुनावी माहौल है, वह यह भी बताता है कि गृहमंत्री और प्रधानमंत्री तक अपनी चुनावी सभाओं और रैलियों में राहुल गांधी पर जरूर तंज कसते हैं. यह इस बात की ओर इशारा है कि 27 वर्ष से राज्य की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा किस प्रकार अपनी नाकामियों के कारण उस पार्टी से डरी हुई है, जिसके अस्तित्व को ही कुछ दिन पहले तक उसने नकार दिया था. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजनीतिक सत्ता में कोई अमृत पीकर नहीं आया है. यह तो विश्व का हर लोकतांत्रिक देश में होता आया है. हां, यह बात अलग है कि ऐसा तानाशाही देशों में नहीं होता है और विशेषकर भारत में नहीं हो सकता, क्योंकि भारतीय संविधान को तो बाबासाहब भीमराव अंबेडकर की टीम ने उद्भट विद्वान डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में बनाया है, जो विश्व का सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्र माना गया है.
पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुजरात के चुनाव अभियान से अनुपस्थित रहने के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा था. उन्होंने कहा कि गुजरात में कांग्रेस के पास कुछ भी नहीं है, इसलिए ’राहुल बाबा’ प्रचार के लिए यहां नहीं आ रहे हैं और अन्य स्थानों पर घूम रहे हैं. वहीं, प्रधानमंत्री ने गुजरात के अमरेली जिले के लोगों से अपील की कि वे अगले महीने होने वाले चुनाव में अपना वोट कांग्रेस पर बर्बाद न करें, क्योंकि उनके पास विकास की कोई रूपरेखा नहीं है. प्रधानमंत्री ने सुरेंद्रनगर की एक सभा में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर तंज कसते हुए कहा कि जिन लोगों को सत्ता से बेदखल कर दिया है, वे अब सत्ता में आने के लिए यात्रा निकाल रहे हैं. दूसरी ओर राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से लेकर अपनी गुजरात के चुनावी सभाओं तथा रैलियों में इस बात को बार-बार दोहरा रहे हैं कि भारत दो भागों में बांट दिया गया है. उनका आरोप है कि वर्तमान केंद्र सरकार ने कुछ अरबपति मित्रों के लाखों-करोड़ों के कर्ज को महज दोस्ती निभाने में माफ कर दिए, लेकिन किसानों का कर्ज माफ नहीं किया जाता. इसके कारण भारत दो भागों में बंट गया है- एक अरबपतियों का भारत, तो दूसरा गरीब, मजदूर, किसान का भारत, जिसे इस पदयात्रा के द्वारा जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.
कन्याकुमारी से श्रीनगर की अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’को छोड़कर पहली बार गुजरात पहुंचे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने सूरत जिले के महुवा में आदिवासियों की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आदिवासी इस देश के पहले मालिक हैं, लेकिन वर्तमान सरकार उन्हें ‘वनवासी’ बताकर उनके अधिकार छीन रही है. वह नहीं चाहती कि उनका बच्चा इंजीनियर-डॉक्टर बने, विमान उड़ाए और अंग्रेजी में बात करे. राहुल ने यह भी वर्तमान सरकार पर आरोप लगाया कि आदिवासियों को उनके रहने की जगह की कौन कहे, उनकी जमीन से भी बेदखल किया जा रहा है और बच्चों की शिक्षा-स्वास्थ्य की कौन कहे, आपको नौकरी भी नहीं मिलेगी. राहुल गांधी ने बहुत ही गंभीर आरोप सरकार पर यह भी लगाया कि गुजरात करप्शन और कमीशन का गढ़ बन गया है. इसलिए उनका सामना उसे इस विधानसभा चुनाव में करना होगा. राजस्थान के मुख्यमंत्री और गुजरात कांग्रेस के प्रभारी अशोक गहलोत ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गुजरात में नियमित दौरा चुनाव के घोषणा का बाद हो रहा है. इसके बावजूद उन्हें डर है कि उनके राज्य में उनकी पार्टी का सफाया हो जाएगा. गहलोत ने यह भी कहा कि इन दोनों नेताओं को गुजरात में शिविर लगा लेना चाहिए. कुछ दिन पहले तक गुजरात विधानसभा के इस चुनाव को भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई मान रहे थे, लेकिन इस बीच आम आदमी पार्टी दमखम के साथ मैदान में उतरने का दावा कर रही है. ऐसे में इसे कुछ विश्लेषक त्रिकोणीय मुकाबला भी बता रहे हैं. आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो गुजरात में सरकार बनाने का भी दावा कर चुके हैं.
गुजरात विधानसभा चुनाव में सभी पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन मतदाताओं के मूड को भांपने का कोई पैमाना आज तक विकसित नहीं हुआ है, इसलिए आजकल तथाकथित सर्वे द्वारा इसके पैमाने को मापने का प्रयास किया जाता है. सच तो यह है कि इस तरह के सर्वे के जरिये मतदाताओं को भ्रमित किया जाता है. वैसा अभी भी गुजरात और हिमाचल प्रदेश के लिए जो भविष्यवाणी की जा रही है, वह केवल तथाकथित सर्वे द्वारा आमलोगों को भ्रमित ही किया जा रहा है. सच तो यह है कि अब शिक्षित मतदाता अपने मन की बात किसी से कहता नहीं है, क्योंकि वह अपने अधिकार को समझने लगा है और प्रचारक के बरगलाने को भी पहचान लेता है. इसलिए चुनाव के परिणाम के बारे में केवल आकलन ही किया जा सकता है. वैसे, जनता के लिए देखने वाली बात यह भी है कि 27 वर्षों के अपने कार्यकाल में भाजपा ने उनके लिए क्या किया और पिछले साढ़े आठ वर्ष में तो प्रदेश के लिए डबल इंजन की सरकार काम करती रही, जिसके कारण विश्वभर में गुजरात मॉडल का प्रचार किया गया, लेकिन एक मोरबी पुल हादसे ने सभी झूठे प्रचार की कलई खोल दी है. गुजरात की जागरूक जनता अब भाजपा कार्यकर्ताओं और प्रधानमंत्री से पूछने लगे हैं कि अब और कितने जुमले दोगे. गुजरात के लिए सुखद यह है कि आज देश के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री इसी प्रदेश से आते हैं. इतना मजबूत प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं के बावजूद सत्तारूढ़ दल के किसी ने यह नहीं कहा कि उसकी सरकार ने 27 वर्ष में प्रदेश के विकास के लिए क्या-क्या किया.
हां, राहुल गांधी की गुजरात यात्रा के बाद सच में कुछ माहौल तो बदला है, क्योंकि राहुल गांधी का कद ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से बढ़ा है. साथ ही चूंकि चुनाव में आजकल एक परंपरा यह बन गई है कि चाहे कुछ भी कहना या करना पड़े, हम कहेंगे और करेंगे. ऐसा इसलिए, क्योंकि चुनाव तो हमें जीतना ही जीतना है, इसलिए जिसके मन में जो बात आती है, उसे चुनावी मंच से उगल दिया जाता है. जिसे बाद में ’चुनावी जुमला’ भी कह दिया जाता है. मतदाताओं को लुभाना आज के व्यवसायिक काल में बड़ी बात हो गई है. भारतीय लोकतंत्र की कई विशेषताओं के बावजूद दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यहां आजादी के इतने साल बाद भी यही हो रहा है. लेकिन, गुजरात में जो कुछ हो रहा है, वह भाजपा के लिए बड़ी समस्या बन गई है. एक तो पहले से ही लंबे समय तक सरकार में रहने के कारण सरकार विरोधी लहर तथा जो कुछ बाकी थी, वह पार्टी के आंतरिक कलह के कारण उत्पन्न हो गई है. ऐसा इसलिए भी हुआ बताया जा रहा, क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए टिकट का जो बंटवारा हुआ है, वह उन्हें नहीं दिया गया जो वर्षों से पार्टी से जुड़े थे, बल्कि उन्हें दिया गया, जो कांग्रेस छोड़कर अभी-अभी पार्टी में शामिल हुए थे. अब इसका लाभ भी कांग्रेस को मिल रहा है, लेकिन सच तो यह है कि मतदाता को जो कुछ करना होता है, उसे वह अपने अंदर ही छुपाकर रखता है. इसलिए सच्चाई तो 8 दिसंबर को मतगणना के बाद ही सामने आएगी, जब यह निर्णय उनके द्वारा सार्वजनिक होगा कि 27 वर्ष शासन करने वाले के सिर पर विजय का सेहरा सजेगा अथवा 27 वर्ष से जो सत्ता से बाहर रहे हैं, उनके नाम विजयश्री होगी! बस, इंतजार कीजिए.
डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं, ये इनके निजी विचार हैं.

