उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन के एक अधिकारी ने राज्य की टीम के कोच वसीम जाफर पर गंभीर आरोप लगाये. वसीम जाफर ने इसका सिलसिलेवार जवाब दिया. क्रिकेटर अनिल कुंबले के अलावा देश के किसी वर्तमान या पूर्व खिलाड़ी ने वसीम जाफर के पक्ष में आवाज नहीं उठायी. अंग्रेजी दैनिक The Telegraph में मुकुल केशवन का लेख छपा है. Sushil Jey ने इसका हिन्दी अनुवाद किया है. आप भी पढ़ें. – संपादक
भारतीय क्रिकेट इस हफ्ते लगभग मर ही चुका है. वो हिमालय की तलहटी में आये भूस्खलन में दबा हुआ है. वह अब भी वहीं पड़ा है, गंभीर हालत में. क्योंकि सैकड़ों भारतीय खिलाड़ी जो उस पर पड़ी मिट्टी को हटा कर उसे बचा सकते थे, उन्होंने तय किया है कि उन्हें दूसरी तरफ ही देखना है.
उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन के एक अधिकारी ने राज्य की टीम के कोच वसीम जाफर पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाया. जाफर मुसलमान हैं और उन पर आरोप लगाया गया कि वो मुसलमान खिलाड़ियों को हिंदू खिलाड़ियों की जगह तरज़ीह देते हैं. भारत के अतीत और अजीबोगरीब हो चले वर्तमान को देखते हुए ये ऐसा आरोप है जिससे किसी का कैरियर तबाह हो सकता है.
जाफर का कैरियर कोई मामूली कैरियर नहीं है. बयालीस साल के जाफर हाल ही में फर्स्ट क्लास क्रिकेट से रिटायर हुए हैं. जहां वो बीस साल से अधिक समय तक ओपनिंग बैट्समैन के तौर पर खेल चुके हैं. अपने कैरियर में जाफर ने भारत के लिए 31 टेस्ट मैच खेले, मुंबई के लिए आठ रणजी ट्राफी जीती और फिर विदर्भ की तरफ से खेले. जहां उन्होंने कमज़ोर मानी जाने वाली विदर्भ की टीम को दो रणजी ट्राफी जीतने में मदद की. भारत के फर्स्ट क्लास क्रिकेट के इतिहास में जाफर सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ हैं. उन्होंने रणजी ट्राफी, दलीप ट्राफी और ईरानी कप में किसी भी बल्लेबाज से अधिक रन बनाए हैं.
भारतीय टीम में जाफर जब खेल रहे थे, तो टीम में भारत के कई जाने माने खिलाड़ी थे. जाफर ने भारतीय टीम मे सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंदर सहवाग, अनिल कुंबले और सौरव गांगुली के साथ बल्लेबाज़ी की है. गांगुली जो इस समय बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट के अध्यक्ष हैं. जाफर पर गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद दो दिन बाद इन दिग्गज खिलाड़ियों में से सिर्फ अनिल कुंबले ने जाफर के समर्थन में बयान दिया है और उसके साथ खड़े हुए हैं.
कुंबले ने जाफर पर लगे आरोपों का ज़िक्र नहीं किया है. उन्होंने जाफर की तारीफ करते हुए उन्हें अपना समर्थन दिया है और कहा है कि जाफर ने जो किया सही किया है. (जाफर ने उत्तराखंड टीम के कोच के पद से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया है कि टीम चयन के मुद्दे पर हस्तक्षेप किया जा रहा था). समर्थन का यह छोटा सा संदेश भी भारतीय क्रिकेट के आधुनिक भगवानों की दीर्घा में बैठे बाकी सदस्यों की चुप्पी पर करारे तमाचे से कम नहीं है. जहां सारे के सारे दिग्गज खिलाड़ी मोम के पुतले बने हुए हैं.
भारत की ओर से चार टेस्ट मैच खेल चुके और कर्नाटक की तरफ से खेलने वाले डोडा गणेश ने जाफर का खुल कर समर्थन किया है. उनके ट्वीट को यहां पूर्ण रूप से उद्धत करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि पता चले कि असल में एक भाई, दूसरे भाई के लिए कैसे खड़ा होता है – “डियर वसीम जाफर, आप क्रिकेट के एक महान अंबेसडर रहे हैं और आपने भारत का प्रतिनिधित्व गर्व के साथ किया है. यह भरोसा करना मुश्किल है कि जो आपके साथ हुआ, ऐसा कुछ हो सकता है. आप न केवल बेहतरीन क्रिकेटर हो बल्कि आप एक कमाल के इंसान हो, भाई हो. क्रिकेट की दुनिया आपको और आपकी प्रतिबद्धता को जानती है.”
डोडा गणेश के ट्वीट की एक मासूमियत आपको रोने पर मजबूर कर सकती है. वो ये कि क्रिकेट की दुनिया सच में जाफर को नहीं जानती है. उसे जाफर की कोई फिक्र नहीं है. अगर उन्हें जाफर की प्रतिबद्धता की एक पैसे की भी चिंता होती हो तो सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण, सहवाग और गांगुली कम से कम 280 अक्षरों का ट्वीट कर देते जाफर के सपोर्ट में जैसा कि कुंबले ने किया.
उनकी चुप्पी के बारे में सबसे चकित करने वाला और सबसे निराशाजनक ये है कि क्या वो इतना भी नहीं कर सकते जो कुंबले ने किया. एक टैक्टफुल ट्वीट जो उनके पुराने साथी से यह कह सके कि वो अकेला नहीं है, अलंकारों में ही सही, वो उसके साथ खड़े हैं.
या फिर वो जाफर के साथ खड़े ही नहीं हैं. जो कि अब पूरी तरह साफ है. वो उस मैनेजर के साथ हैं जिसने जाफर पर गंभीर आरोप लगाए और एसोसिएशन के उस सेक्रेटरी के साथ हैं जिसने मैनेजर का समर्थन किया है. इन महान मिथकीय क्रिकेटरों की दृष्टि में वो लोग स्थानीय नेतारूपी भगवान हैं जो अब भारतीय क्रिकेट को अपनी जेब में रखते हैं और उनके रास्तों को काटा नहीं जा सकता है.
यह आपको सोचने पर विवश करता है. क्या मतलब है क्रिकेट में अमर हो जाने का अगर आप अपने टीम के एक साथी के साथ खड़े नहीं हो सकते. जिस पर एक दो कौड़ी का अधिकारी घटिया आरोप लगा देता है. क्या कीमत है आपके भारत रत्न की अगर आप जनतंत्र की मूल भावना, भाईचारे का पालन नहीं कर सकते हैं. कम से कम अपने खेल क्रिकेट की सीमाओं में ही. कैसे आपके उस भाषण के बेहतरीन वाक्यों को गंभीरता से लिया जाए जो आपने ब्रैडमेन के सम्मान में पढ़े थे. जब आप अपने उस साथी के लिए एक दर्जन शब्द कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं, जिसने कभी आपके साथ ड्रेसिंग रूम शेयर किया था. क्या फायदा है आपके बीसीसीआई अध्यक्ष बनने का अगर आपकी नाक के नीचे अपने प्रोफेशनलिज्म और प्रतिबद्धता के लिए के लिए जाने जाने वाले एक क्रिकेटर को आपके टुटपूंजिये अधिकारी बदनाम करते फिरें.
इस बदनामी से खुद को बचाने के लिए जाफर को इस्तीफा देने की ज़रूरत नहीं थी. ज़रूरत ये थी कि क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के उन अधिकारियों को जिन्होंने जाफर पर ऐसे घटिया आरोप लगाए, उन्हें निलंबित किया जाता. क्रिकेट को बदनाम करने के आरोप में और उनसे बाबुओं वाली उटपटांग भाषा में- चूंकि वो वही भाषा समझते हैं- कारण बताओ नोटिस दिया जाता.
भारतीय टीम के दिग्गजों की चुप्पी की आलोचना जितनी की जाए कम है. लेकिन उससे भी बड़ा विश्वासघात जाफर और भारतीय क्रिकेट के साथ किया है. मुंबई क्रिकेट ने जो अपने एक पुराने खिलाड़ी के साथ खड़ा होने में असफल रहा है. साठ और सत्तर के दशक में बड़े हुए भारतीय क्रिकेट फैन्स के लिए मुंबई सिर्फ भारतीय क्रिकेट का एक क्षेत्रीय पावरहाउस ही नहीं है, बल्कि क्रिकेट की संस्कृति का एक ध्वजवाहक भी है.
मुंबई क्रिकेट लीग ने भारत के कई महान क्रिकेटरों को पाला पोसा है.
मुंबई स्कूल के बल्लेबाज़ों में विजय मर्चेंट से लेकर विजय मांजरेकर, दिलीप सरदेसाई, सुनील गावस्कर, दिलीप वेंगसरकर और सचिन तेंदुलकर तक हैं. जो पारंपरिक बल्लेबाज़ी से लेकर अपनी जिद और टेस्ट मैच में लंबे गेम्स खेलने की अपनी कूव्वत के लिए जाने जाते हैं. क्रिकेट के खेल में जबर्दस्त दबाव के बीच भी मुंबई के क्रिकेटरों का अपने साथियों के प्रति लगाव और निष्ठा मिथकीय रही है और टीम के चयन में उनकी बदमाशियां भी.
वो निष्ठा, वो लगाव अब कहां है. जाफर मुंबई स्कूल ऑफ बैटिंग के प्रतीक हैं. उन्होंने मुंबई के लिए लगभग बीस साल तक बैटिंग की और लगातार बढ़िया प्रदर्शन किया है. मुंबई के क्रिकेटरों का भारतीय क्रिकेट प्रतिष्ठानों में आज भी दबदबा है. सुनील गावस्कर और संजय मांजरेकर टीवी के कमेंट्री बॉक्स में हमेशा दिखाई देते हैं. तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट का चेहरा हैं. रवि शास्त्री भारतीय टीम के मैनेजर हैं. रोहित शर्मा भारतीय वनडे टीम के उपकप्तान हैं और अजिंक्य रहाणे भारतीय टेस्ट टीम के उपकप्तान. इनमें से किसी ने भी जाफर के समर्थन में एक शब्द नहीं कहा है.
इंग्लैंड के साथ दूसरे टेस्ट की पूर्व संध्या पर अजिंक्य रहाणे से जाफर के मुद्दे पर जब सवाल पूछा गया तो उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया. उनका कहना था, “मुझे इस मामले की जानकारी नहीं है…” रहाणे मुंबई की टीम में कई साल तक जाफर के साथ खेल चुके हैं. यह कहना सही होगा कि वो जाफर को जानते हैं. और इस बात पर भरोसा करना मुश्किल है कि उन्हें ये नहीं पता हो कि जाफर पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाया गया है. रहाणे को हो सकता है कि हर बात पता न हो लेकिन उनकी अक्ल पर पत्थर नहीं पड़े हुए हैं.
एक हफ्ते पहले ही रहाणे, शर्मा, कोहली, शास्त्री और तेंदुलकर, सत्ता के कहने पर उस कोरस की हां में हां मिलाते हुए ट्वीट कर रहे थे. जो विदेश से आलोचना करने वालों को ललकार रहा था. किसानों के आंदोलन के मुद्दे पर. रहाणे के ट्वीट का हैशटैग था #indiatogether. कोई मुंबई के इस बल्लेबाज को बताए कि एकता घर से शुरू होती है.
हाल की घटना ने बहुत कुछ साफ कर दिया है कि किस वक्त पर ट्वीट करवाया जा सकता है और कब वो मौत की चुप्पी धारण कर सकते हैं. जब मोहम्मद सिराज को ऑस्ट्रेलिया के नस्लभेदी दर्शकों ने परेशान किया था तो भारतीय टीम के कप्तान और मैनेजरों का गुस्सा और सिराज के लिए उनका समर्थन लबालब भरा हुआ था. एक महीने बाद जब जाफर के खिलाफ आरोप लगे तो जाफर ने तुरंत प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर इन आरोपों का सिलसिलेवार रूप से खंडन किया. इस खंडन के बावजूद उनके समर्थन में उनके दोस्तों का कोई ट्वीट नहीं आया. अब क्या बदल गया है.
इसका जवाब यह नहीं हो सकता है कि भारत में जब किसी क्रिकेटर पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगे और वो क्रिकेटर मुसलमान हो तो बाकी समय साहस दिखाने वाले क्रिकेटर कुछ न कहें.. इसका ये मतलब होगा कि भारतीय क्रिकेट, जो हाल तक उत्तराखंड में आए भूस्खलन के अंदर दबा सांस ले रहा था, वो पूरी तरह मर चुका है. हम सभी को ये उम्मीद करनी चाहिए कि अगले कुछ दिनों में, जाफर के साथ अतीत में और हाल तक खेल चुके क्रिकेटर उनके लिए आगे बढ़कर बोलेंगे.
इसकी शुरुआत वो मुंबई के खिलाड़ी चंद्रकांत पंडित का जाफर को दिया गया समर्थन पढ़ कर कर सकते हैं. चंद्रकांत पंडित जो कुछ समय के लिए भारतीय टीम में विकेटकीपर बैटसमैन रहे, उन्होंने लिखा है : “यह चौंकाने वाला है कि वसीम जाफर ने धर्म के नाम पर किसी खिलाड़ी को प्रभावित करने की कोशिश की. मैं वसीम को बहुत बहुत बहुत समय से जानता हूं और उसके साथ विदर्भ में जब हम थे तो बहुत मिलजुलकर काम किया है. वो जाति और धर्म से इतर हर युवा खिलाड़ी के लिए एक आदर्श से कम नहीं हैं. वो सिर्फ और सिर्फ प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की ही बात करते थे जिनके बारे में उसे लगता था कि टीम को फायदा होगा. वो बिल्कुल टीम के फायदे के हिसाब से चलने वाला आदमी है. अगर किसी खिलाड़ी को टीम में होना चाहिए तो जाफर उसके लिए बोलेगा. इसका धर्म से कभी कोई लेना देना नहीं रहा है. “
मुंबई की ओर से दसेक साल तक बैटिंग कर चुके शिशिर हट्टगंड़ी ने भी पंडित की तरह ही जाफर में अपना भरोसा व्यक्त किया है. अगर और क्रिकेटर भी कुंबले, गणेश, मनोज तिवारी, पंडित और हट्टगंड़ी को देखकर कुछ सीखें तो संभव है कि उत्तराखंड में आए इस भूस्खलन में दब कर अंतिम सांसे लेते भारतीय क्रिकेट को बचा पाएं.
अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो हम सबको समझ लेना चाहिए कि भारतीय क्रिकेट मर चुका है. एक टीम जो कि एक देश का प्रतिनिधित्व करती है. उसमें ऐसे नागरिकों को ही होना चाहिए. जो एक दूसरे के लिए खेलें न कि ऐसे लोग जो सत्ता के कहने पर किसी कंपनी की तरह सत्ता को सुविधा मुहैया कराने लग जाएं.
नोट- मोहम्मद कैफ का भी एक लेख आया है इंडियन एक्सप्रेस में जाफर के समर्थन में. यह सिर्फ इसलिए बता रहा हूं क्योंकि केशवन के लेख में कैफ का जिक्र नहीं था. ऐसा शायद इसलिए हुआ हो कि दोनों लेख एक ही दिन छपे हैं अलग-अलग अखबारों में.
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