Faisal Anurag
इंग्लैंड और इटली तमाम फुटबॉल विशेषज्ञों के अनुमानों को नकारते हुए यूरो कप के फाइनल में पहुंच गए हैं. यूरो कप फाइनल 11 जुलाई को लंदन में होगा. इंग्लैंड वैसे तो फुटबॉल की बड़ी ताकत माना जाता रहा है. लेकिन 55 साल के यूरो के इतिहास में वह पहली बार फाइनल में पहुंचा है. इंग्लैंड विश्वकप में भी केवल एक बार 1966 में चैंपियन हुआ था. प्रशंसकों के मन में यह सवाल है कि क्या पहली बार यूरो कप के फाइनल में पहुंचनेवाला इंग्लैंड ट्रॉफी उठाने में कामयाब हो पायेगा. दूसरी ओर लैटिन अमेरिका के कोपा अमेरिका कप में ब्राजील फाइनल में अपने खिताब के बचाव के लिए अर्जेंटीना से मुकाबला करेगा. श्रेष्ठता के मुकाबले में मेसी और नेमार का जादुई कौशल एक बार फिर देखने को मिलेगा.
यूरो के फाइनल में इंग्लैंड के सामने इटली है, जो फुटबॉल जगत की बड़ी ताकत माना जाता है. इटली चार बार विश्वकप जीत चुका है, वहीं एक बार 1966 में यूरो का विजेता रहा है, उसी साल, जब इंग्लैंड ने विश्वकप जीता था. यूरो कप में इटली दो बार रनरअप भी रहा है. इस लिहाज से इटली का पलड़ा भारी लगती है. हालांकि इंग्लैंड के आंकड़े उसकी वास्तविक ताकत की गवाही नहीं देते. लेकिन वह बड़ी फुटबॉल ताकतों में शुमार किया जाता रहा है. इंग्लैंड के तीन क्लबों और इंग्लिश प्रीमियर लीग की स्टार वैल्यू सबसे ज्यादा रही है.
यूरो कप की शुरुआत में इटली और इंग्लैंड को फेवरिट टीमों में शुमार नहीं किया गया था. हालांकि दोनों को अंडरडॉग जरूर माना जा रहा था. यूरो फाइनल तक पहुंचने के पहले जहां इटली 32 मैचों से अपराजेय टीम थी. वहीं इंग्लैंड का प्रदर्शन भी कहीं से कमतर नहीं था. लेकिन टूर्नामेंट में तो विश्व चैंपियन फ्रांस, विश्व की नंबर एक टीम बेल्जियम और स्पेन को ही फेवरिट माना जा रहा था. इटली की टीम चार साल पहले यूरो के लिए क्वालिफाइ भी नहीं कर सकी थी, लेकिन इस बार फाइनल में है. फाइनल में पहुंची दोनों टीमों के खेल में एक ओर जहां आक्रामकता है, वहीं गति भी. डिफेंस तो हमेशा से इटली का मजबूत पहलू रहा है. इंग्लैंड के पास भी कई युवा खिलाड़ी हैं, जो अपनी फुर्ती,कौशल और आक्रमण से विपक्षी टीमों की व्यूह रचना को भेद देते हैं. दोनों ही टीमों की समानता यह है कि उनके पास बड़े स्टार नहीं हैं.
इंग्लैंड के हैरीकेन ने एक ऐसी टीम का नेतृत्व किया है, जो अंतिम दम तक मुकाबला और हिम्मत नहीं हारती है. डेनमार्क के साथ हुए सेमीफाइल में इस टीम का तालमेल और मौकों को भुनाने की दक्षता ही उसके फाइनल तक पहुंचने का राह बना सकी. डेनमार्क एक कड़ा प्रतिद्वंद्वी है और कई बार तो उसकी टीम चैंपियन की तरह खेलती नजर आयी. लेकिन हैरीकेन के व्यूह को वह भेद नहीं सकी और एक के मुकाबले दो गोलों से हार गयी.
यूरो कप जर्मनी, फ्रांस और स्पेन के लिए त्रासद साबित हुआ है. बेहतरीन खेल के बावजूद बेल्जियम बड़े मुकाबलों के दबाव को झेलने में कामयाब नहीं हो सका. 2018 के विश्वकप में भी उसकी यह कमजोरी सामने आयी थी, जब वह सेमीफाइनल में एक अत्यंत कड़ा और रोमांचक मुकाबला खेलने के बावजूद फ्रांस से हार गया था. आखिर उसने इंग्लैंड को हरा कर तीसरा स्थान हासिल किया था. लेकिन रोबोर्टो मेसिनी के कोच बनने के बाद से इतालवी फुटबॉल के पतन का दौर खत्म हो गया है. इटली की मौजूदा टीम का संगठन, उसके खिलाड़ियों का सामूहिक प्रयास और तालमेल उसे पहले की टीमों से खास बनाता है.
कोपा अमेरिका के फाइनल में इस बार दो परंपरागत प्रतिद्वंद्वी ब्राजील और अर्जेंटीना का मुकाबला भी 11 जुलाई को ही होगा. फुटबॉल प्रेमियों के लिए मेसी और नेमार के बीच की प्रतिस्पर्द्धा और कौशल को देखना ही इस मैच का बड़ा आकर्षण होगा. इसके साथ ही उन्हें मैदान पर वह लातिनी अमेरिकी जादू भी देखने को मिलेगा, जो अब फुटबॉल की दुनिया से खत्म होने के कगार पर है. लेकिन मेसी भी ऑलटाइम ग्रेट होने के बावजूद विश्वकप से महरूम हैं. यह मलाल उन्हें जरूर सालता होगा. अर्जेटीना को तो माराडोना ने अकेले ही विश्वकप दिला दिया था.
वहीं दूसरी ओर ब्राजील की टीम पिछले तीन सालों से बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है. नेमार के रूप में उसके पास एक ऐसा खिलाड़ी है, जो न केवल खेल में केंद्रीय भूमिका निभाता है, बल्कि खूबसूरत पास, तीखे आक्रमण और गोल बनाने में भी माहिर माना जाता है. हालांकि मेसी से नेमार की तुलना बेमानी है. मेसी तो श्रेष्ठतम की श्रेणी में शुमार हैं. अर्जेंटीना अब तक 14 बार कोपा अमेरिका जीत कर दूसरे स्थान पर है, वहीं ब्राजील 9 जीत के साथ तीसरे स्थान पर है. उरुग्वे ने सबसे ज्यादा 15 बार कोपा अमेरिका जीता है. बहरहाल फुटबॉल प्रेमियों के लिए 11 जुलाई का दिन यादगार साबित होनेवाला है.