Deepak Ambastha
देश की राजनीति में क्या ममता बनर्जी कांग्रेस का विकल्प बनेंगी, फिलहाल राष्ट्रीय राजनीति में यह सवाल उठ रहा है. ममता बनर्जी का बंगाल विजय के बाद की सक्रियता और लस्त-पस्त कांग्रेस की दशा ऐसे सवालों को उठने का भरपूर मौका भी दे रहे हैं. लेकिन और आगे की बात से पहले यह स्पष्ट करना उचित होगा, लोकसभा चुनाव 2024 में प्रस्तावित हैं. अभी ढेरों राजनीतिक समीकरण बनने बिगड़ने हैं. बावजूद इसके यह मान लेना कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विकल्प बन जाएगी, अपरिपक्व सोच ही कही जा सकती है.
ममता बनर्जी सक्रिय हैं और कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने के बाद वह महाराष्ट्र के दौरे पर निकल रही हैं, जहां उनकी मुलाकात एनसीपी के शरद पवार के अलावा शिवसेना प्रधान और राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी होगी. ममता ने कांग्रेस से दूरी बना रखी है, जिससे यह संकेत मिलता है वह कांग्रेस के विकल्प के तौर पर अपने को देख रही हैं. भविष्य क्या होगा कहना कठिन है पर साल दो साल में तृणमूल के लिए कांग्रेस का विकल्प बनाना संभव प्रतीत नहीं होता है. लेकिन राजनीति है और देश की जनता का मूड इसे तो सही समय पर ही भांपा जा सकता है.
ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा देश में विपक्ष की राजनीति को नया उबाल दे रहा है, कयास लग रहे हैं कि क्या ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश कर रही हैं.
बंगाल में तीसरी दफा सत्ता में आने से उत्साहित ममता बनर्जी के तेवर बहुत कुछ कह रहे हैं, बंगाल चुनाव के ठीक बाद जयपुर में बहुत ही अप्रत्याशित रूप से भाजपा को रौंदकर सत्ता में आई थी तो उन्होंने सबसे पहले कहा था कि अब उनका अगला लक्ष्य भाजपा मुक्त भारत बनाना है, इस बयान के बाद जब वह पहली दफा दिल्ली पर आई थीं तो उन्होंने सोनिया गांधी समेत सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश की थी. लेकिन उन्हें राजनीति का ठंडा रिस्पॉन्स मिला था. लेकिन तब से लेकर अब तक देश की राजनीति में जो हालात बने, जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है लोग महंगाई से त्रस्त हैं, चाह कर भी भारतीय जनता पार्टी पर उस तरह से विश्वास भी नहीं जता पा रहे हैं, जो बंगाल चुनाव से पहले था. आम आदमी की मानसिकता ममता बनर्जी जैसे नेताओं का उत्साह बढ़ा रही है, ममता बनर्जी ने अपने बल पर एक बात तो साबित ही कर दी है कि नरेंद्र मोदी को पराजित किया जा सकता है. भाजपा को पराजित किया जा सकता है और वह इस विचार को पूरे देश में फैलाने की कोशिश में लगी हुई है और इस कोशिश में उनका पहला निशान भाजपा की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ही नजर आती है. जिसे तोड़कर खत्म कर ममता भाजपा का राष्ट्रीय विकल्प बनने की कोशिश में जुटी हुई है.
हाल के दिनों में गोवा हो, बंगाल हो या फिर मेघालय जैसे प्रदेश ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी का विस्तार करने की कोशिश की है और कुछ हद तक कामयाबी नजर आती है, ममता की कोशिशों का परिणाम क्या होगा, यह तो समय तय करेगा. लेकिन एक बात जरूर स्थापित हो रही है कि ममता बनर्जी जैसा राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को टक्कर देने वाला कोई नहीं.
ममता बनर्जी का अभी हाल का दिल्ली दौरा प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात और फिर उनका यह बयान कि हर बार दिल्ली आने पर सोनिया गांधी से मिलना जरूरी है क्या, कांग्रेस को बेचैन कर रहा है. मुर्शिदाबाद के सांसद अधीर रंजन चौधरी का एक बयान यह बताने के लिए पर्याप्त है कि ममता के बढ़ते कदम से कांग्रेस की बेचैनी का आलम क्या है, सोनिया गांधी से नहीं मिलने के सवाल पर ममता बनर्जी के जवाब में अधीर रंजन कहते हैं, ममता बनर्जी मोदी के डर से सोनिया गांधी से नहीं मिली अधीर रंजन का यह कहना ही पर्याप्त है, यह संदेश देने के लिए कि कांग्रेस तृणमूल के बढ़ते कद से चिंतित है.
हाल के दिनों में तृणमूल कांग्रेस ने जिस तरह से कांग्रेस को तोड़ना शुरू किया है, अलग-अलग राज्यों में पार्टी के लिए चिंता का विषय है. निश्चित रूप से ही होगा यही कारण है कि पार्टी के विभिन्न नेताओं से तृणमूल के खिलाफ ममता बनर्जी के खिलाफ बयान आने शुरू हो गए हैं.
ममता बनर्जी मिशन 2024 को ध्यान में रखकर अपनी पार्टी के आक्रामक विस्तार में लग गई हैं, इस क्रम में उन्होंने मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा को तो पार्टी में शामिल किया है, साथ में वहां के 12 कांग्रेस विधायकों को भी पार्टी में शामिल कर लिया है, मेघालय में कांग्रेसी विधायकों की संख्या 17 थी, जो अब केवल 5 रह गई है.
भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अभी दिल्ली में ममता बनर्जी से मुलाकात की और उनकी शान में कसीदे पढ़े तो नरेंद्र मोदी और भाजपा की जमकर आलोचना की कहा जा रहा है, स्वामी ममता के साथ जा सकते हैं यदि ऐसा होता है तो यह एक बड़ा संकेत होगा ममता बनर्जी के कद बढ़ने का. वैसे ममता दावा कर रही हैं कि बड़ी संख्या में असंतुष्ट भाजपा विधायक और सांसद उनके संपर्क में हैं, इससे पहले ममता बनर्जी गोवा में अपना जलवा दिखा चुकी हैं,गोवा फॉरवर्ड पार्टी के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व भाजपा नेता किरण कंडोलकर समेत जदयू के पवन कुमार वर्मा कांग्रेस के अशोक तंवर और भाजपा के कीर्ति आजाद को पार्टी में शामिल कर ममता ने इरादे साफ कर दिए हैं.
यह सब बातें अपनी जगह पर, लेकिन इन बातों से यह मान लेना बहुत जल्दबाजी होगी कि ममता बनर्जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विकल्प बन सकती हैं, कांग्रेस आज भी देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है. जबकि तृणमूल ने अभी-अभी बंगाल से बाहर अपने पैर निकालने शुरू किए हैं, यह ठीक है कि उन्हें कुछ राज्यों में कुछ नेताओं को अपने साथ लाने में सफलता मिली है. लेकिन इसके आधार पर यह कहना कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विकल्प बन जाएगी ये कहना बहुत जल्दबाजी होगी.