Nirmala Putul
तुम्हारे डिक्शनरी से
हटते क्यों नहीं
पर, किंतु, परंतु जैसे
कई बड़े-बड़े शब्द
कलम चलाते चलाते
अक्सर रूक जाते हैं तुम्हारे हाथ
कलम पर उंगलियां फिराते
गोल-मटोल घुमाने लगते हो
अपनी वे मकसदी बात.
रूक जाते हैं तुम्हारे लफ्ज़
फड़फड़ाते, चिहुंकते
होठों की कंपकपाहट
कशमकश की स्थिति में
मन ही मन बुदबुदाते सही जवाब
और दबे रह जाते हैं होठों तले.
जोड़ घटाव करते-करते
करने लगते हैं अक्सर
तुम्हारी यादों का सौदा
शायद मन के अंदर बैठा आदमी
रोकने लगता है तुम्हें
कोई नीच अन्याय करने से.
तुम्हारे पर, किंतु, परन्तु जैसे शब्दों से ही
संविधान में छेद करके
बेच दी जाती है हेक्टर के हेक्टर जमीन
कोयला, सोना, तांबा, अबरख इत्यादि
और मालगाड़ियों में लाद कर
ले जाते हैं हमारी कुदरती धरोहरों को.
डिस्क्लेमर : ये लेखिका के निजी विचार हैं.