सारंडा के 116 साल पुराने 8 वनग्राम ऐसे, जहां आज तक नहीं बने आदिवासियों के प्रमाण पत्र

Pravin kumar Ranchi /Manoharpur : झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के सारंडा वन क्षेत्र के दर्जनों वन ग्राम में रहने वाले ग्रामीणों तक सरकार की विकास योजनाएं अब तक नहीं पहुंची है. इस इलाके में रहने वाले ग्रामीण मूलभूत सुविधा से वंचित है. यहां आम जिंदगी काफी कठिन है.स्कूल, पेयजल की व्यवस्था, बिजली , यातायात के साधन , सड़कें , राशन कार्ड, आधार कार्ड अब भी ग्रामीणों की पहुचं से दूर है. यह स्थिति उन वन ग्रामों की है, जिसे देश की आजादी से पहले अंग्रेजों ने 116 साल पहले बसाया था. इन वन ग्रामों को राजस्व गांव का दर्ज सरकार ने अभी तक नहीं दी है. इन वन ग्रामों की भूमि भू राजस्व विभाग के संबंधित अंचल के पंजी टू में दर्ज नहीं है. जिसके कारण वहां रहने वाले लोगों का जातीय, आवासीय और आधार जैसे जरुरी दस्तावेज नहीं बन पाये हैं. इसे भी पढ़ें-JPSC">https://lagatar.in/cm-justifying-corruption-in-jpsc-pt-exam-telling-malpractice-to-be-moral-bjp/">JPSC

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ग्रामीणों का नहीं बन रहा आवास प्रमाण पत्र

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alt="" width="600" height="400" /> झारखंड के पश्चिम सिंहभूम प्रखंड के मनोहरपुर प्रखंड में अंग्रेजों के द्वारा 8 वन ग्राम बसाये गये थे. ये आठ वन ग्राम 116 साल पुराने हैं. थोलकोबाद के सनियारो नाग कहते हैं हमारा गांव 116 साल पुराना वनग्राम है, जिसे अंग्रेजों ने बसाया था. लेकिन 116 साल बाद भी इस वन ग्राम के लोगों को सरकारी योजना से महरूम रहना पड़ रहा है. गांव की भूमि अंचल कार्यालय के पंजी टू में दर्ज नहीं की गयी है. जिसके कारण इन 8 गांवों में रहने वाले आदिवासियों के जाति, आवासीय प्रमाण पत्र तथ आधार कार्ड जैसे दस्तावेज नहीं बन पा रहे हैं. इसको लेकर कई बार अंचल कार्यालय में आवेदन भी दिया गया है .लेकिन समस्या आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है. इसे भी पढ़ें-खूंटी:">https://lagatar.in/khunti-mp-representative-injured-in-road-accident-referred-to-rims/">खूंटी:

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आठ वनग्राम जिसे अंग्रेजों ने बसाया था

गांव                                                             जिस वर्ष वसाया गया थोलकोबाद को                                                       1905 में, तिरिलपोसी को                                                      1906 में, नयागांव को                                                           1908 में, करमपदा को                                                         1910 में, दीधा को                                                               1911 में, बिटकिलसोया को                                                    1914 में, बालिबा को                                                           1917 में, कुमडी को                                                            1927 में बसाया गया इलाके की समस्या को लेकर आदिवासी समन्वय समिति (आस) के संयोजक सुशील बारला कहते हैं कि इलाके के आठ वनग्राम जिसे अंग्रेजों ने बसाया था, उन वन ग्राम के ग्रामीणों के लिये दुर्भाग्य की बात यह है कि अभी तक उक्त आठ गांवों को राजस्व गांव का दर्जा नहीं दिया गया है. जिसके कारण रैयतों का नाम पंजी-2 (जमाबंन्दी) में अंकित नहीं किया गया है.जिसके कारण यहां के लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड रहा है. वहीं कई इलाकों में ऐसे दर्जनों वन ग्राम हैं जो 1980 से 2005 के बीच बसे हैं. उन गांवों के साथ भी सरकार 20 सालों से सौतेल व्यवहार करते आ रही है. वनाधिकार अधिनियम-2006 के तहत वन पट्टा देने में भी सरकारी अधिकारी मनमाने तरीके से कार्य कर रहे हैं. हल ही में सारंडा के गुण्डीजोड़ा गांव के 20,राटामाटी वन ग्राम के 10, नुरदा के -18, दुमागदिरी के 14 ग्रामीणों को वन पट्टा दिये गये. लेकिन पंजी-2 में रैयतों का नाम अंकित नहीं किया गया है. इसे भी पढ़ें-बोकारो">https://lagatar.in/bokaro-doctors-demand-implementation-of-medical-and-hospital-protection-act/">बोकारो

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इलाके में सरकारी विकास योजनाएं नहीं पहुचं पायी

इलाके के बारे में गंगाराम होनहग्गा कहते हैं कि इलाके में सरकारी विकास योजनाएं नहीं पहुचं पायी है. सारंडा वन क्षेत्र के गांव के विकास के लिय सरकार भले ही योजना बना कर कागजों में खाना पूर्ति कर रही हो , लेकिन इलाके के लोगों की स्थिति देखने से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इलाके में सरकार की पहुचं शून्य के बराबर है. 1980 से 2005 के बीच सारंडा वनक्षेत्र में बसे लोगों को वनाधिकार अधिनियम-2006 के तहत पट्टे तो दे दिये गये ,लेकिन सिर्फ घर बनाने के लिए 15-20 डिसमिल ही जमीन मिली, पर खेती की जमीन नहीं दी गयी. इस वन पट्टा में भी कई त्रुटियां हैं. चौहदी में चारों ओर वन विभाग दिखाया गया है.दूसरी कि वितरित पट्टेदारों के नाम पंजी-2 में अंकित नहीं किये जा रहे हैं. इसे भी पढ़ें-‘धनबाद">https://lagatar.in/dhanbad-art-of-living-distributed-blankets-among-the-needy/">‘धनबाद

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मंत्री और डीसी को छोड़नी पड़ी आपनी गाड़ी

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alt="" width="600" height="400" /> सारंडा इलाके के गांवों में सरकार की विकास योजनाएं पहुंच से दूर है.गत शनिवार को जब सरकार के एक कार्यक्रम ‘आपके अधिकार - आपकी सरकार आपके द्वार’ के लिये हेंमत कैबनेट के मंत्री और जिले के उपायुक्त को जाना पड़ा तब उन्हें अपनी गाड़ियों को छोड़ ट्रैक्टर ट्रॉली का सहारा लेना पड़ा. सारंडा वन क्षेत्र स्थित गुदड़ी प्रखंड की बान्दु पंचायत के गांव कमरगांव तक पहुंच सके. कमरगांव तक जाने के लिये पहले ट्रैक्टर-ट्रॉली की व्यवस्था की गयी. फिर ट्रॉली पर कुर्सी लगायी गयी. इस पर बैठकर झारखंड सरकार की महिला, बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा मंत्री सह स्थानीय विधायक जोबा माझी तथा जिले के उपायुक्त अनन्य मित्तल कार्यक्रम स्थल तक पहुंचे. ट्रॉली पर दूसरे प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ पुलिस कर्मी भी मौजूद रहे.ज्ञात हो कि मनोहरपुर विधानसभा से कई बार विधानसभा का प्रतिनिधित्व जोबा मांझी कर चुंकी हैं और पूर्व के सरकार में मंत्री भी रहीं हैं.इसके बाद भी इलाके का समुचित विकास नहीं हो पाया है. [wpse_comments_template]