क्या हम अपनी चारित्रिक श्रेष्ठता प्रमाणित करने को तैयार हैं

Anand Kumar

द्वितीय विश्वयुद्ध का समय था. जर्मन बमवर्षक विमानों के खौफ के बीच लंदन में दूध के लिए लंबी कतार लगी थी. तभी दूध वितरण कर रहे व्यक्ति ने घोषणा की कि यह आखिरी बोतल है, बाकी लोग कल आयें. दूध की आखिरी बोतल जिस शख्स को मिलनी थी, उसके ठीक पीछे गोद में शिशु को लिये एक महिला खड़ी थी. घोषणा सुनकर वह उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आयीं. लेकिन अचानक वह चौंकी, क्योंकि दूध बांट रहा आदमी उसके हाथ में बोतल थमा रहा था. उसके आगे खड़ा आदमी बिना दूध लिये कतार से हट गया था, ताकि उस छोटे बच्चे को दूध मिल सके. कतार में शामिल बाकी लोग उस शख्स के लिए तालियां बजा रहे थे. लेकिन उसने आदमी ने महिला के पास जाकर केवल इतना कहा कि आपका बच्चा बहुत ही प्यारा है. वह इंग्लैंड का भविष्य है. उसकी अच्छी परवरिश करिये.

कहा जाता है कि इस घटना की सूचना जब प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को मिली, तो वे बोल पड़े- हिटलर को संदेश भेज दो, ब्रिटेन को जीतने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि यहां के लोग संकट के समय निजी हित भूलकर देश के बारे में सोचते हैं. चर्चिल का भरोसा सच निकला, ब्रिटेन विश्वयुद्ध में विजेता बनकर उभरा.

मुझे नहीं पता कि यह घटना सच्ची है या कोरी कहानी. लेकिन इसमें जो संदेश है, वह बिल्कुल साफ और स्पष्ट है. कोई भी देश अपने नागरिकों के चरित्र से जाना जाता है. आज जब एक तरफ पूरा भारतवर्ष कोरोना की त्रासदी झेल रहा है, वहीं देश भर से ऑक्सीजन सिलिंडरों की जमाखोरी, दवाओं की कालाबाजारी और वैक्सीन के बर्बाद होने की खबरें भी आ रही हैं. जीवन रक्षक दवाओं की शीशियों में नकली दवा भर कर बेची जा रही है. एक राज्य दूसरे राज्य का ऑक्सीजन रोक लेता है और अस्पतालों में सैकड़ों लोग बिना ऑक्सीजन के दम तोड़ देते हैं. दूसरी तरफ पद और पैसेवालों के लिए हर अस्पताल में सुविधाएं मुहैया हैं.

यह हमारा ही देश है, जहां कई सेलेब्रिटी, समर्थ और धनवान लोग चार्टर्ड हवाई जहाज लेकर दुबई और मॉरीशस जैसे देशों में पलायन कर गये हैं, ताकि महफूज रहें. ये वही लोग हैं, जिनके पीछे देश की जनता दीवानी है. लोग इनकी एक झलक के लिए पागल रहते हैं. यह हम ही हैं, जो लाखों मौतों के बीच आइपीएल का अश्लील उत्सव मना रहे हैं. जरूरतमंदों की मदद करने के बदले कई ऐसे लोग हैं, जो आइपीएल मैचों पर करोड़ों के दांव लगा रहे हैं.
इस त्रासद काल में जब लाखों लोग अपने रोजगार गंवा बैठे हैं. बीमारी से लड़ रहे है. अस्पतालों में पैसा फूंक रहे हैं, तब खानेपीने की चीजों के दाम पिछले आठ महीने में दोगुने हो गये हैं. उस पर भी जमाखोरी और कालाबाजारी हो रही है. इस कमरतोड़ महंगाई से निबटने के लिए कोई तंत्र नहीं है.

हमें नहीं पता कि यहां कोई सरकार है. या जिसे हम सरकार कहते हैं वह सरकार है भी या नहीं. यहां कोई नहीं है, जो मरते-सिसकते लोगों को दिलासा दे कि सब ठीक हो जायेगा. हम सब ठीक कर देंगे. हम तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी थे. हम दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता थे. हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी श्रमशक्ति थी, लेकिन आज हम महामारी की आग में भुनगों की तरह भूने जा रहे हैं.

दुनिया के देश हम पर तरस खा रहे हैं. वे बता रहे हैं हमारी सरकार आत्ममुग्धता की शिकार थी. उसने कोरोना की पहली लहर के बाद कोई इंतजाम नहीं किये, जबकि देश-दुनिया के एक्सपर्ट दूसरी लहर की चेतावनी दे रहे थे, हमारी सरकार कुंभ मेला और चुनावी रैलियों में व्यस्त थी. जब देश को वैक्सीन की जरूरत थी, तब एक देश में अलग-अलग दामों पर वैक्सीन बेची जा रही थी. दुनिया के सबसे बड़े महामारी विशेषज्ञों में से एक अमेरिकी डॉक्टर एंथनी फाउची ने कहा है कि टीवी पर ऑक्सीजन की कमी से मरते-तड़पते लोगों को देखकर लग ही नहीं रहा था कि भारत में कोई केंद्रीय सत्ता है.

हमारे यहां टीका बनानेवाली कंपनी का मालिक दूसरे देश भाग जाता है. यह लचर दलील देकर कि यहां उसे धमकियां मिल रही हैं. वह भी तब, जब उसे सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा दी थी, जो केंद्र सरकार के मंत्रियों को मिलती है. बताया जा रहा है कि अब वह लंदन में वैक्सीन बनायेगा. जब देश संकट में है, आरामतलबी और मुनाफाखोरी के चलते पलायन कर जानेवाले ऐसे लोगों पर पर देशद्रोह का मुकदमा क्यों न चलाया जाये, जबकि एक कोरोनापीड़ित के लिए मदद की अपील भर करने पर यूपी में एक पत्रकार पर मुकदमा ठोक दिया जाता है. लेकिन हम आज भी मंदिर-मस्जिद, नेहरू-मोदी और तेरी-मेरी में उलझे हैं.

आज जब हमारा देश महामारी के संकट से जूझ रहा है और डॉ एंथनी फाउची के अनुसार युद्ध जैसी स्थिति में है, जहां दुश्मन एक वायरस है. ऐसे में क्या हम एक सरकार, प्रशासन, प्रोफेशनल, व्यापारी या नागरिक के तौर पर लंदन की दूध की कतार में खड़े उस व्यक्ति की तरह अपनी चारित्रिक श्रेष्ठता प्रमाणित करने को तैयार हैं?