मोदी और शाह के जादू को बंगाल ने खारिज कर दिया

Faisal Anurag


रूझान और नतीजों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों की व्यक्तिगत हार है. बंगाल के चुनाव को इतना अहम बना दिया था कि कोरोना के लिए दी गयी वैज्ञानिक चेतावनियों को भी नजरअंदाज किया और देश के लोगों को बड़ी संख्या में मरने के हालात पैदा कर दिये. हालांकि भाजपा यह संतोष कर सकती है कि विधानसभा में भी वह एक बड़ी ताकत है तथा उसके जाति और सांप्रदायिक कार्ड ने उसे यह रूतबा प्रदान कर दिया है. भाजपा ने बंगाल में अपनी पहुंच तो बना ली है. लेकिन बंगाल की उस सधा मिजाज को पूरी तरह तोड़ने में कारगर नहीं हो पायी है. पांच में से तीन राज्यों के लोगों ने भाजपा के लिए कोई बड़ी उम्मीद नहीं दिखायी है. लेकिन इन चुनावों ने यह तो साबित कर दिया है कि हर बार विभाजनकारी रणनीति लोगों के बीच भ्रम पैदा नहीं कर सकती है. याद रखना चाहिए, जब देश कोरोना के विनाशकारी लहर के खतरों में था नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने 60 दिनों में 57 चुनावी रैलियां कीं. लहर के विनाशकारी रूप लिए जाने के बावजूद चुनाव आयोग ने चुनाव के चरणों को कम नहीं किया.

चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री की भाषा को लेकर जिस तरह की चर्चा हुई, उसने बताया कि वे बंगाल के मकसद के लिए कितने बेचैन थे. उनकी दीदी ओ दीदी जैसे जुमलों को स्ट्रीट फीकरेबाजी की संज्ञा दी गयी थी. मोदी ने अपनी हर सभा में यह जरूर कहा था दो मई दीदी गयी. लेकिन बंगाल ने उनकी इस घोषणा को नकार दिया है. ममता बनर्जी बंगाल की प्रतीक बनी है. इस चुनाव ने उनके लड़ने और किसी भी हाल में घुटना न टेकने वाल एक ऐसी नेता का छवि बनाया है जिसकी तुलना अन्य किसी से नहीं की जा सकती है. दिल्ली की मीडिया ने भी जिस तरह ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा खड़ा कर रखा था. उसकी साख भी गहरे तौर पर प्रभावित हुई है. मीडिया की साख चुनाव दर चुनाव लोगों की निगाह में गिरी है. इसलिए लोग मीडिया के प्रोपेगेंडा को अच्छी तरह समझने लगे हैं.


ममता बनर्जी राष्ट्र के स्तर पर एक विश्वसनीय नेता बन कर उभरी हैं. उनकी संघर्ष क्षमता ही वह ताकत हैं, जिसके सहारे वे पूरे विपक्ष का नेतृत्व कर सकती हैं. कांग्रेस के प्रदर्शन से यह तो साफ हो गया है कि यदि देश में विपक्ष को मोदी के एकाधिकारवाद और नीतियों को चुनौती देनी है, तो उन्हें ममता बनर्जी जैसी नेता ही नेतृत्व दे सकती हैं. दक्षिण में उनकी तरह के एक नेता हैं स्टॉलिन. उन्होंने भी जिस तरह करूणानिधि की विरासत को संभाला है, उससे दक्षिण के इस नेता की चर्चा हो रही है. केरल में विजयन ने पहली बार वह चमत्कार किया है कि वामफ्रंट की लगातार दूसरी वर सत्ता में वापसी हुई है. विजयन और उनकी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री शैलजा टीचर की पूरे देश में चर्चा में रही है. लेकिन उत्तर भारत के प्रदेशों पर दक्षिण की राजनीति का असर नहीं देखने को मिलता है.

लेकिन बंगाल के बारे में कहा जाता रहा है कि बंगाल जो आज सोचता है देश उस का कल अनुसरण करता है. असम में भाजपा की वापसी हो गयी है और पुंडुचेरी में कांग्रेस हार गयी है. कांग्रेस के लिए आने वाले दिन और संकटग्रसत होने जा रहे हैं. कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग बढ़ सकती है. राहुल गांधी की नयी बनती छवि भी कांग्रेस की चुनावी कामयाबी के दरवाजे को नहीं खोल रही है. कांग्रेस एक सुस्त हाथी की तरह है, जिसके नेता और कार्यकर्ता चमत्कार के भरोसे बैठे दिख रहे हैं.