Ranchi : सीसीएल (CCL) ने 371 एकड़ जमीन के कथित मालिक खजान सिंह के पारिवारिक सदस्यों की अनुशंसा पर सैकड़ों लोगों को नौकरियां बांटी है. खजान सिंह के परिवार ने 816.35 एकड़ वन भूमि पर मालिकाना हक हासिल करने की कोशिश की. राजस्व पर्षद के तत्कालीन सदस्य अमरेंद्र प्रताप सिंह ने मोहन सोरेन बनाम राज्य सरकार के मामले में दिये गये अपने फैसले में इस बात का उल्लेख किया है.
राजस्व पर्षद सदस्य अमरेंद्र प्रताप सिंह ने इस मामले में 28-10-2022 को अपना फैसला सुनाया था. उन्होंने अपने फैसले में जमीन की दावेदारी की इस कोशिश को बड़कागांव के तत्कालीन अंचल अधिकारी, हजारीबाग के तत्कालीन अपर समाहर्ता द्वारा खजान सिंह परिवार को लाभ पहुंचाने के लिए रची गयी साजिश का परिणाम बताया और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की थी.
साथ ही तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त प्रदीप कुमार (दवा घोटाले के आरोपी) की भूमिका को संदेहास्पद करार दिया है. अपने फैसले में उन्होंने कहा है कि प्रमंडलीय आयुक्त को म्यूटेशन एक्ट के मामलों को सुनने का अधिकार नहीं है. इसके बावजूद उन्होंने म्यूटेशन केस की सुनवाई की और उपायुक्त के आदेश को निरस्त करते हुए जमीन पर खजान सिंह के पारिवारिक सदस्यों की दावेदारी स्वीकार कर ली.
जमीन पर दावेदारी और कानूनी विवाद का यह पूरा प्रकरण केंद्र सरकार द्वारा कोल बियरिंग एक्ट के तहत अधिगृहित की गयी जमीन पर दावेदारी साबित कर मुआवजे की रकम हासिल करने से संबंधित है.
जमीन पर दावेदारी के लिए मोहन सोरेन व अन्य द्वारा दी गयी दलील
मोहन सोरेन की दावेदारी |
खजान सिंह की दावेदारी |
सरदार राम मौला सिंह के पुत्र राम सिंह पंजाबी ने 1927 में नीलामी के सहारे बड़ागांव, थाना नंबर 154 की कुल 1187.57 एकड़ जमीन खरीदी थी. | राम सिंह पंजाबी ने 1925 में नीलामी के सहारे बड़कागांव के पोटंगा मौजा की पूरी 1187.78 जमीन खरीदी. जमीन 1927 में ट्रांसफर किया गया. |
22 जून 1928 को राम सिंह पंजाबी ने दो सेल डीड (2314,2363) के सहारे 444.63 एकड़ जमीन बेची. | राम सिंह पंजाबी ने 1929 में डीड संख्या 1676 के सहारे पूरी जमीन अपने इकलौते पुत्र खजान सिंह को दे दिया. इससे संबंधित रिटर्न दाखिल किया गया था. |
सेल डीड संख्या 2314 के सहारे 223.82 एकड़ जमीन 14 लोगों को बेची | राम सिंह द्वारा खरीदी गयी जमीन में से 816.35 एकड़ जमीन वन विभाग ने अधिगृहित कर लिया. बाकी बची 371.22 एकड़ जमीन पर खजान सिंह के पारिवारिक सदस्यों का शांतिपूर्ण दखल कब्जा है. |
सेल डीड संख्या 2363 के साहरे 205.12 एकड़ जमीन 12 लोगों को बेची. | दिसंबर 2012 में बड़कागांव के सीओ ने बड़का सियाल के जनरल मैनेजर को भेजी गयी रिपोर्ट में लिखा कि 2012-13 तक खजान सिंह के नाम जमीन का लगान रसीद निर्गत है. |
सेल डीड संख्या 2314 के सहारे जमीन खरीदने वालों में मोहन सोरेन के पूर्वज शामिल है. | मुआवजा देने के लिए सीसीएल ने भूमि प्रमाण पत्र लाने का निर्देश दिया. भूमि प्रमाण पत्र के लिए उपायुक्त की अदालत मे आवेदन दिया गया जिसे उपायुक्त ने खारिज कर दिया |
इसी 444.63 एकड़ जमीन में से 371.78 एकड़ जमीन कोल परियोजनाओं के लिए अधिगृहित किया गया. | प्रमंडलीय आयुक्त ने अपील स्वीकार करते हुए उपायुक्त के आदेश को खारिज कर दिया. |
राजस्व पर्षद का फैसला
हजारीबाग के तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त प्रदीप कुमार के फैसले के खिलाफ मोहन सोरेन व अन्य ने रिवीजन पीटिशन दायर किया. इसमें भू-राजस्व सचिव, प्रमंडलीय आयुक्त, उपायुक्त हजारीबाग, अपर समाहर्ता,अंचल अधिकारी, सीसीएल, कोल कंट्रोलर और खजान सिंह के पारिवारिक सदस्यों का पार्टी बनाया गया. राजस्व पर्षद ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद प्रमंडलीय आयुक्त द्वारा दिये गये आदेश को निरस्त कर दिया. साथ ही मोहन सोरेन द्वारा जमीन पर की गयी दावेदारी को खारिज कर दिया.
राजस्व पर्षद सदस्य ने अपने फैसले में कहा कि बड़कागांव के तत्कालीन अंचल अधिकारी और तत्कालीन अपर समाहर्ता ने तथ्यों को छिपा कर अपनी राय दी है. यह स्पष्ट रूप से खजान सिंह के पारिवारिक सदस्यों के मदद करने के लिए इन अधिकारियों द्वारा रची गयी साजिश से संबंधित है.
सरकार को अगस्त 2017 में बड़कागांव में पदस्थापित अंचल अधिकारी और मार्च 2003 में पदस्थापित अपर समाहर्ता की कारगुजारियों की जांच करनी चाहिए. क्योंकि केंद्र सरकार ने कोल बियरिंग एक्ट के तहत जमीन का अधिग्रहण 1975 में किया था. मार्च 2003 में अपर समाहर्ता ने खजान सिंह के नाम लगान रसीद जारी करने का आदेश जारी कर दिया. मामले में अपर समाहर्ता की भूमिका संदेहास्पद है.
तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त की भूमिका का उल्लेख करते हुए फैसले में यह कहा गया कि म्यूटेशन एक्ट 1973 में निहित प्रावधानों के अनुसार प्रमंडलीय आयुक्त को इस तरह के मामलों को सुनने का अधिकार नहीं है. इसके बावजूद प्रमंडलीय आयुक्त ने खजान सिंह की ओर से दायर याचिका स्वीकार की और सुनवाई के बाद फैसला सुनाया.
राजस्व पर्षद ने मामले की सुनवाई के दौरान सीसीएल की ओर से दायर शपथ पत्र सहित अन्य दस्तावेज की जांच की. इसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आये. दस्तावेज की जांच में पाया गया कि खजान सिंह की अनुशंसा के आलोक में सीसीएल ने नौकरियां दी. यह पूर्णतः गलत है. क्योंकि जमीन के बदले नौकरी का प्रावधान सिर्फ जमीन मालिक के आश्रितों को है.
राजस्व पर्षद ने जमीन पर मोहन सोरेन और खजान सिंह दोनों की ही दावेदारी खारिज कर दी. मोहन सोरेन सहित 26 लोगों ने जमीन पर अपनी दावेदारी के मामले में रिवीजन पीटिशन दायर किया था.
राजस्व पर्षद ने खजान सिंह की दावेदारी खारिज करते हुए लिखा कि अगर खजान सिंह के पूर्वज राम सिंह पंजाबी ने 1187 एकड़ जमीन नीलामी में खरीदी थी तो बिना मुआवजा दिये ही वन विभाग ने 816.35 एकड़ जमीन को अधिगृहित कर लिया.
दूसरी बात यह कि 1957 में बड़कागांव अंचल में टाईपराइटर उपलब्ध नहीं थी. फिर अंग्रेजी में टाइप किया हुआ अंचल कार्यालय का दस्तावेज कहां से आया. पर्षद ने इसे जालसाजी का परिणाम बताया.
राजस्व पर्षद ने मोहन सोरेन की दावेदारी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कोलकाता रजिस्ट्री कार्यालय ने सेल डीड संख्या 2314 और 2363 को संदेहास्पद करार दिया है. साथ भू-राजस्व विभाग को सरकारी जमीन की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया.