राफेल के बोतल से निकले जिन्न के बीच बंगाल में सांप्रदायिक चुनाव प्रचार

Faisal Anurag मीडियापार्ट के एक्सपोजर के बावजूद खामोश मीडिया के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरे दौर के मतदान के समय ही बंगाल में प्रकारांतर से हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का मुद्दा उछाल दिया है. 2017 में उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी ने खूबसूरती से कब्रिस्तान बनाम श्मशान और ईद बनाम दीवाली की बायनरी खड़ी की थी. तो क्या उत्तर प्रदेश की तरह ही बंगाल भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का गवाह बनने को तैयार हो गया है. बंगाल जाने वाले तमाम पत्रकार कह रहे हैं कि आजाद भारत के इतिहास में पहली बार बंगाल में सांप्रदायिक सवाल की तपिश महसूस की जा रही है.आखिर वह बंगाल, जिसने 1947 में भयावह सांप्रदायिक हिंसा को देखा था, इस तपिश में क्यों है. यह सब उसी समय कहा जा रहा है, जब फ्रांस के पोर्टल मीडियापार्ट ने अब तक प्रकाशित दो किस्तों की रिपोर्ट में राफेल के सौदे में घोटाले का पर्दाफाश किया है. पढ़ें राफेल घोटाला की पहली किस्त- भारत-फ्रांस">https://english.lagatar.in/india-france-rafale-fighter-jet-deal-learn-how-a-state-scandal-was-buried/46239/">भारत-फ्रांस

राफेल लड़ाकू जेट सौदा- जानें कैसे एक राजकीय घोटाले को दफन कर दिया गया
बंगाल की राजनीति में ध्रुवीकरण हुए हैं, लेकिन तब उनका आधार सांप्रदायिक रूझान नहीं रहा है. वामफ्रंट के खिलाफ ममता बनर्जी की लड़ाई ने बंगाल में ऐसे विभाजन पैदा किये कि राजनीतिक मतभेद व्यक्तिगत दुश्मनी में बदल गयी. इसके पहले सिद्धार्थ शंकर रे के जमाने में भी बंगाल कांग्रेस बनाम वामफ्रंट के टकराव का केंद्र रहा है. इन टकरावों में राजनीतिक नजरिया प्रभावी रहा है. लेकिन 2019 में जिस तरह की राजनीति बंगाल को ने देखा है, वह बिल्कुल नया है. बंगाल में खुल कर पहली बार हिंदू बनाम मुसलमान हो रहा है. मीडियापार्ट ने राफेल रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार की बात की है. यह कोई मामूली रहस्योद्घाटन नहीं है. मीडियापार्ट की रिपोर्ट सरकारी छनबीन के दौरान उभरे तथ्यों के आधार पर लिखी गयी है. अभी उस रिपोर्ट की दो अन्य किस्तों का प्रकाशन होने वाला है. उम्मीद की जा रही है कि उसमें कुछ और गंभीर स्कैंडल उभर कर सामने आ सकते हैं. मीडियापार्ट फ्रांस का एक चर्चित पोर्टल है. उन कारणों की तलाश जरूरी है कि आखिर किन कारणों से इस तरह के एक्सपोजर के बावजूद देश के राजनीतिक हलकों में बेचैनी नहीं है. पढ़ें राफेल घोटाले की दूसरी किस्त- राफेल">https://english.lagatar.in/rafael-brokerage-case-macron-olland-and-french-anti-corruption-services-all-eyes-closed/46549/">राफेल

दलाली मामला : मैक्रों, ओलांद और फ्रांस की भ्रष्टाचार विरोधी सेवाओं सबकी आंखें बंद थीं
देश ने 1987 में देखा है कि जब एक स्वीडिश रेडियो ने बोफोर्स सौदे में किकबैक की बात की, तो भारत के चार बड़े अंग्रेजी अखबारों ने बोफोर्स को प्रथम पेज की हेडलाइन बनाया. अगले दो सालों तक उन्होंने बोफर्स के सवाल पर लगातार">http://english.lagatar.in">लगातार

अभियान चलाया और खोजबीन कर रिपोर्ट प्रकाशित की. नतीजा राजीव गांधी की चुनावी हार के पहले ही कांग्रेस के भीतर से विरोध शुरू हुए. वीपी सिंह जो आगे चल कर प्रधानमंत्री बने, मंत्री पद से इस्तीफा देकर इस अभियान का हिस्सा बन गये. उन दिनों वीपी सिंह अपने पाकेट से एक चिट दिखाते थे. उनका दावा था कि उसमें वह अकाउंट नंबर दर्ज है, जिसमें किकबैक की राशि जमा की गयी है. उसे गांधी परिवार का अकाउंट बताने का दावा भाजपा सहित तमाम विपक्ष और अखबार करते थे. देश वही है, वे अखबार भी हैं. बीपी सिंह की तरह 2019 में राहुल गांधी ने राफेल डील को लेकर अनेक तथ्य प्रेस कांफ्रेस में प्रस्तुत किये. लेकिन न तो वे अखबार और न ही कोई चैनल खोजबीन में लगा. चित्रा सुब्रहमण्यम की याद बहुतों को होगी, जो बोफोर्स पर लगातार नये-नये तथ्य प्रकाश में ला रही थी. राफेल डील को ले कर मीडियापार्ट के पहले फ्रांस के ही एक और पोर्टल ने 2019 में अनेक सवाल उठाये और फ्रांस के एक पूर्व राष्ट्रपति पर बेजा पक्ष लेने का आरोप लगाया. अनिल अंबानी को लेकर भी 2019 में चर्चा हुई. द हिंदू को छोड़ कर किसी अन्य ने कोई दस्तावेज नहीं छापे. द हिंदू को लेकर जिस तरह का विवाद केंद्र सरकार ने खड़ा किया, वह पुरानी बात नहीं है. सीएजी और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी इस पूरे संदर्भ में चर्चा में रही. बाद में तो सुप्रीम कोर्ट ने पूरे ममले को ही खत्म घोषित कर दिया. राफेल लड़ाकू विमान भारत भी आ गये हैं, लेकिन बोतल में बंद जिन्न की तरह रक्षा सौदे का विवाद उठ खड़ा हुआ है. केंद्र सरकार ने मीडियापार्ट की रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन भाजपा ने इसे बेबुनियाद बता कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ही हवाला दिया है. प्रशांत भूषण, अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा की याचिका खारिज हुई थी और आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह की याचिका भी. यशवंत सिन्हा ने मीडियापार्ट की रिपोर्ट के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि उनलोगों ने जिन तथ्यों की बात की थी, वे फिर सामने हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “न खाऊंगा, न खाने दूंगा” के जुमले पर भी तंज किया है. सवाल है कि चुनाव के दौर में इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद जिस तरह की खामोशी महसूस की जा रही है, वह अभूतपूर्व है. मीडिया को गोदी मीडिया बेजा नहीं कहा जा रहा है. मीडियापार्ट रिपोर्ट को यूं ही चर्चा से बाहर नहीं किया गया है. चुनाव प्रचार में तो भाजपा अपने एजेंडे पर है, क्योंकि उसे लगता है कि देश में हिंदू-मुस्लिम एजेंडे से चुनाव तमाम विपरीत हालातों में भी जीते जा सकते हैं. बंगाल में तीन दौर के चुनाव हो चुके हैं. आनेवाले पांच दौर में लोगों को रोजमर्रा के सवालों से परे धकेलने का प्रयास होगा. रोजगार का सवाल हो या कोई अन्य, भाजपा की कोशिश है कि उस पर चर्चा हो ही नहीं. मीडिया तो पहले से ही ऐसे माहौल को बनाने में लगा है कि चुनाव सांप्रदायिकता और राष्ट्रवाद के इर्दगिर्द ही केंद्रित रहे. https://english.lagatar.in/rbis-big-decision-now-you-can-deposit-up-to-2-lakhs-through-payment-wallet/46552/

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