सरकारी सेवकों - स्वस्थ्यकर्मियों का विद्रोह बताता है कि अफसर अक्षम हैं और सरकार से सब दुखी है!

Surjit Singh
राज्य में हर दिन 100 से अधिक कोरोना मरीज मर रहे हैं. हर दिन 5000 नये मरीज सामने आ रहे हैं. ठीक होने वालों की संख्या नये मरीजों से आधी है. ऐसे में लोगों की उम्मीद राज्य सरकार, सरकार के उच्च पदस्थ अफसर, डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों पर है. पर क्या सरकार, सिस्टम, ऊंचे ओहदे पर बैठे अफसर और स्वास्थ्यकर्मी उम्मीद पर खड़ा उतर रहे हैं. यह सवाल अब खुल कर सामने आ गया है.

सबसे पहले सरकार को चलाने वाले सचिवालय पर गौर करें. सचिवालय के कर्मियों ने बगैर अल्टिमेटम दिये सचिवालय आना बंद कर दिया. सरकारी कामकाज थम सा गया है. यह सीधे-सीधे सत्ता से विद्रोह है. भले ही यह कोरोना के बहाने हुआ हो. इसे ठीक करने के प्रयास विफल हुए. यह बताता है कि सचिवालय के अफसरों व वहां काम करने वालों के बीच कितनी बड़ी खाई बन गयी है. जो कोरोना के बहाने सामने आया है. सचिवालय के प्रमुख अफसरों को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी. व्यवस्था में बदलाव की जरुरत है.

फिर आते हैं स्वास्थ्यकर्मियों के काम नहीं करने के मामले पर. ऐसा क्या हुआ कि पिछले साल लगातार… और बढ़-चढ़ कर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मी इस बार नाराज हैं. राज्य मुख्यालय ही नहीं जिलों से भी खबरें आ रही हैं कि वह काम करने में आना-कानी कर रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग का आंकड़ा कहता है कि जिलों में ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड खाली है. तो फिर जिलों से रांची में मरीज क्यों भेजे जा रहे. क्या जिलों के डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मी काम नहीं करना चाहते. क्यों ? ऐसी स्थिति कैसे बन गयी. जिलों के डीसी कर क्या रहे हैं ? क्या इसकी एक वजह ये तो नहीं कि सरकार उन्हें (स्वास्थ्यकर्मियों) को समय पर वेतन तक नहीं देती. छह-छह माह से वेतन नहीं मिले हैं. इसके लिए कौन से अफसर जिम्मेदार हैं. यह सोचना होगा कि वह सरकारी कर्मचारी हैं. गुलाम नहीं.

अब बात सरकार की. राज्य में हेमंत सोरेन की सरकार है. कांग्रेस व राजद सहयोगी पार्टी है. सरकार अब यह नहीं कह सकती कि नये हैं. खजाना खाली है. पूर्व की सरकार ने सिस्टम को खराब करके रखा है. सरकार के 16 माह का कार्यकाल पूरा हो चुका है. जो खराब हालात हैं, इसकी जिम्मेदारी अब इसी सरकार को लेनी होगी. सरकार को अक्षम अफसरों से मुक्ति पाना ही होगा. काम नहीं करने वाले, जन प्रतिनिधियों का फोन रीसीव नहीं करने वाले, फाइलों को लटकाने वाले अफसरों से निपटना ही होगा. चाहे वह सीएमओ का अफसर हो, सचिवालय का या फिर जिले का. अगर हेमंत सरकार यह नहीं कर पाती है तो आने वाले समय में लोगों का गुस्सा भी इसी सरकार को झेलना होगा.

यह सही है कि हेमंत सरकार 5 साल के लिए सत्ता में है. पर, सरकार को यह समझना होगा कि अब 44 माह ही बचे हैं. क्योंकि झारखंड के लोगों ने 16 माह पहले हेमंत सोरेन को सरकार बनाने का मौका दिया. उनके लिए अब यह जरूरी हो गया है कि इस हालात के जवाबदेह सिस्टम के जिम्मेदारों पर नकेल कसे. नहीं तो देर हो जायेगी.