Sanjeet Yadav
Ranchi : झारखंड में सरकार की नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने की सरेंडर नीति ने कई उग्रवादियों को हथियार छोड़ने के लिए प्रेरित किया है, लेकिन पुनर्वास योजना की जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां करती है. सरेंडर के बाद जेल काट चुके कई पूर्व नक्सली आज भी सरकारी लाभों और रोजगार के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. चतरा के चरकाकला गांव के नक्सली कमलेश यादव इसका जीता जागता उदाहरण है. कमलेश ने नवंबर 2022 में आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर चतरा एसपी के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. लेकिन जेल से बाहर आने के बाद उन्हें इसका लाभ नहीं मिला. वे केवल अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं. इस संबंध में कमलेश यादव ने डीसी को पत्र लिखा है.
सरेंडर किया, जेल काटी, पर अब रोजगार के लिए भटक रहा
उन्होंने बताया कि वह पारिवारिक जमीन विवाद में पुलिस की एकतरफा कार्रवाई और प्रशासनिक उपेक्षा से तंग आकर नक्सल मार्ग पर चले गए थे. एक दशक बाद उन्होंने घरवालों और पुलिस अधिकारियों के समझाने पर हथियार छोड़ा और मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया. कमलेश कहते हैं कि सरेंडर से पहले पुलिस अधिकारी कहते थे कि सरकार मेरी मदद करेगी, केस खत्म कराएगी, रोजगार देगी. पर अब अफसर पहचानते तक नहीं. मैं रोजगार के लिए ऋण चाहता हूं, लेकिन किसी कार्यालय में सुनवाई नहीं हो रही है. कमलेश की मानें तो कई अन्य सरेंडर नक्सली भी कर्ज लेकर केस लड़े, सजा काटी और अब कर्ज चुकाने की जद्दोजहद में हैं.
क्या कहती है सरेंडर नीति
राज्य सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति के अनुसार, ए श्रेणी (जोनल कमांडर या ऊपर के स्तर) के नक्सलियों को 6 लाख का पुनर्वास पैकेज मिलता है. बी श्रेणी (जोनल कमांडर से नीचे) को 3 लाख का पैकेज निर्धारित है. तत्काल 1-2 लाख मिलना तय है, बाकी दो किस्तों में एक और दो साल बाद, विशेष शाखा की संतुष्टि के बाद भुगतान होता है. रोजगार के लिए 4 लाख तक का ऋण, जिसमें ब्याज का 50% तक सरकार भुगतान करती है. व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा सहायता, जीवन बीमा, आवास योजना और पुनर्वास भूमि भी नीति में शामिल हैं.