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सम्राट गिरोह के खिलाफ लड़ाई का बिगुल
झारखंड बना तब इस इलाके में सम्राट गिरोह की तूती बोलती थी. जरियागढ थाना को बने महज तीन वर्ष ही हुए हैं. पहले यह गांव कर्रा थाना के इलाके में आता था. सम्राट गिरोह के खिलाफ इसी गांव में दिनेश गोप ने वर्ष 2000 में लड़ाई का बिगुल फूंका और गठन हुआ झारखंड लिबरेशन टाइगर (जेएलटी) का. सुना जाता है कि दिनेश गोप का परिवार गांव की ऊंची जाति के लोगों के निशाने पर था. उसके परिवार ने काफी प्रताड़ना भी सही थी. उस दौरान कर्रा और लापुंग के इलाके में सम्राट गिरोह काफी सक्रिय था. उसके हथियारबंद गुर्गों के शोषण से शोषित स्थानीय लोगों ने दिनेश का समर्थन किया और वर्ष 2001 के आसपास औपचारिक रूप से झारखंड लिबरेशन टाइगर के रूप में सम्राट गिरोह के खिलाफ एक नया दस्ता खड़ा हो गया. दोनों समूहों में खूनी भिड़ंत की कई घटनाएं हुईं. साथियों के मारे जाने से सम्राट गिरोह कमजोर होता गया और दिनेश गोप और जेएलटी के रूप में एक नये गिरोह का उदय हुआ, जो आनेवाले समय में झारखंड की पुलिस व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा था. इसे भी पढ़ें- जमीन">https://lagatar.in/retired-army-jawan-arrested-accused-for-shooting-a-person-in-a-land-dispute/11613/">जमीनविवाद में एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या करनेवाला आरोपी रिटायर्ड फौजी गिरफ्तार
जेएलटी के बनने और मजबूत होने के कारण
जानकार बताते हैं कि उस समय इस इलाके में तीन-चार अन्य हथियारबंद गिरोह सक्रिय थे. स्थानीय लोग इनके अत्याचार से त्रस्त थे. इसका फायदा उठाते हुए दिनेश गोप ने लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ा. लोग इन गिरोहों से मुक्ति के लिए दिनेश से जुड़ते गये. स्थानीय युवा भी इलाके में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए जेएलटी से जुड़ते गये. और देखते ही देखते दिनेश का नाम इलाके में खौफ और आतंक का पर्याय बन गया. इसे भी पढ़ें- 29">https://lagatar.in/government-will-complete-one-year-on-december-29-many-schemes-will-be-started-cm/11615/">29दिसंबर को होगा सरकार का एक साल पूरा, होगी कई योजनाओं की शुरुआतः CM
ज्वाइन करने का लेटर आया मगर फौजी नहीं बन पाया दिनेश
जानकारों की मानें, तो दिनेश गोप आर्मी भर्ती के लिए चुना गया था. सेना की ओर से ज्वाइन करने के लिए उसे लेकर भी भेजा गया था, लेकिन गांव के दबंगों ने इस पत्र को कभी उसके घर पहुंचने ही नहीं दिया. जब इसकी जानकारी दिनेश गोप के भाई सुरेश गोप को हुई, तो उसने इसका विरोध किया और दबंगों के खिलाफ बगावत करनी शुरू की. सुरेश गोप का संबंध नक्सलियों से भी होने की बात भी कई लोग बताते हैं. इसी बीच वर्ष 2000 में पुलिस की गोली से सुरेश गोप की मौत गई और दिनेश गोप ओडिशा भाग गया. कुछ दिन बाद वह फिर इलाके में लौटा. उसका नाम और काम दोनों बदल चुके थे. अब वह गांव का दिनेश नहीं बल्कि एक ऐसे गिरोह का सरगना था, जिनके हाथों में बंदूकें थीं और जो गरीब-गुरबों के हक की बात करता था. इसे भी पढ़ें- सुप्रीम">https://lagatar.in/government-should-help-in-sending-the-people-of-the-free-foreign-tabligi-jamaat-back-to-their-country-supreme-court/11624/">सुप्रीमकोर्ट का आदेश, आरोपमुक्त विदेशी तबलीगी जमात के लोगों को उनके देश वापस भेजने में मदद करे सरकार
वर्ष 2006 में मसीह चरण के आने से JLT बना PLFI
माओवादी कमांडर मसीह चरण पूर्ति ने वर्ष 2001 में भाकपा माओवादी संगठन से अलग होकर अपना पृथक दस्ता बनाया था. यह दस्ता पहले गुल्लु क्षेत्र में सक्रिय था, फिर इसकी सक्रियता सिलादोना एवं मारंगहादा में बढ़ी. इस दस्ते ने जल्द ही मारंगहादा को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लिया. 2006 में इस दस्ते का विलय जेएलटी में हो गया और 20 जुलाई 2007 को इस हथियारबंद दस्ते को एक नया नाम मिला- पीएलएफआई. मसीह चरण के दस्ते में अत्याधुनिक हथियार थे. अब यह संगठन झारखंड के अन्य जिलों के साथ बिहार और ओडिशा जैसे सीमावर्ती राज्यों में अपना दबदबा बढ़ाने में जुट गया. सरकारी ठेकेदारों, बालू घाटों, बीड़ी पत्ता और लाह-महुआ के कारोबारियों से लेवी के नाम पर वसूली से पैसा पानी की तरह आने लगा. लोग बताते हैं कि संगठन का वर्चस्व बढ़ा, तो इसके नेतृत्व को लेकर पीएलएफआई के दो शीर्ष कमांडरों गोप और पूर्ति के बीच मनमुटाव हुआ. इस बीच मसीह चरण पूर्ति गिरफ्तार हो गया. चर्चा यह थी कि गोप ने ही पूर्ति को पुलिस से पकड़वाया. जेल में रहते हुए पूर्ति ने खूंटी से वर्ष 2009 में विधानसभा का चुनाव लड़ा. क्षेत्र में उसके दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवारों को पीछे छोड़ कर वह चुनाव में दूसरे नंबर पर रहा था. मसीह के बारे में कहा जाता है कि मूरहू इलाके में इसकी मजबूत पकड़ है. इसे भी पढ़ें- विभिन्न">https://lagatar.in/ajsu-mahila-samiti-will-agitate-on-new-year-on-various-issues/11627/">विभिन्नमुद्दों को लेकर आजसू महिला समिति नये साल पर करेगी आंदोलन
रक्तपात के कारण बना एक नया जिला- खूंटी
राज्य की राजधानी रांची से महज 30 किलोमीटर दूर बसे खूंटी को साल 2007 में जिले का दर्जा दे दिया गया. इलाके की नब्ज पहचाननेवाले मानते हैं कि खूंटी को जिला बनाने के पीछे मूल कारण खूंटी अनुमंडल में कई आपराधिक और नक्सली संगठनों द्वारा किया जा रहा रक्तपात था. हत्याएं और गैंगवार की वारदात आम हो गईं थीं. पुलिस-प्रशासन का इकबाल खत्म हो गया था. खूंटी अनुमंडल में होता वही था जो यह गिरोह और संगठन चाहते थे.हर महीने किसी न किसी गिरोह द्वारा बंद बुला लिया जाता था. सरकार परेशान थी और जनता हलकान. राज्य के राजधानी क्षेत्र की बदनामी न हो, इसीलिए खूंटी, मुरहू, कर्रा, अड़की, तोरपा और रनिया प्रखंडों को मिलाकर एक नया जिला बना-खूंटी. मगर यहां के हालात ज्यादा नहीं बदले. दिनेश गोप और उसका संगठन आज भी व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है. इसे भी पढ़ें- सरकार">https://lagatar.in/meeting-held-on-preparations-for-the-first-anniversary-of-the-government-deputy-commissioner-sought-report-of-programs/11625/">सरकारकी पहली वर्षगांठ की तैयारियों को लेकर हुई बैठक, उपायुक्त ने मांगी कार्यक्रमों की रिपोर्ट