भारत की पहली महिला टीचर, जिन्होंने लड़कियों के लिए खोली ज्ञान की द्वार

Anant Kumar यूं तो महिला को दुर्गा, काली, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में पूजा जाता रहा है, लेकिन उन सभी महिलाओं को शिक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं था. जिनकी वे हक़दार थी. आधी आबादी शिक्षा के अधिकार जैसे ज्ञान से वंचित थी. शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष का बिगुल फूंकने वाली पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले का आज जन्मदिन है. 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में सावित्री बाई फुले का जन्म हुआ था. आज उन सभी महिलाओं के लिए गौरव का दिन है, जिसके बदौलत समान हक़ के साथ आगे बढ़ रही हैं. वैसे महिलाओं की सशक्तिकरण की लड़ाई अभी पूरी नहीं हुई है. संघर्ष अभी बाकी है. दुनिया के तमाम देशों का इतिहास गवाह है कि पुरूषों को जो अधिकार प्राप्त थे, वह महिलाओं को नहीं था. महिलाएं निरंतर उपेक्षित रही. वे सदैव पुरूषों की दासता और स्वार्थ सिद्धि की वस्तु मात्र बनकर अपने को संपूर्ण मानती थी. पुरूषों के द्वारा बनाए गए सामंतशाही व मनुवादी व्यवस्था के नियमों के आधार पर ही महिलाओं की पूरी जीवन गाथा थी. ऐसे गैर बराबरी के कालखण्ड में  सावित्री बाई फुले नाम की एक बालिका का जन्म होना सम्पूर्ण महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है. भारतीय इतिहास में फुले को क्रांति ज्योति के नाम से जाना जाता हैं. उन्होंने मानव जाति में बराबरी के लिए लड़कियों के लिए प्रथम स्कूल की स्थापना की और भारत की प्रथम शिक्षिका बनने का गौरव प्राप्त किया. सावित्री बाई बचपन से ही साहसी और निर्भीक थी. परपंरा के अनुसार कम उम्र में ही उनकी शादी ज्योतिराव फुले से हो गई. ज्योतिराव फुले समाज सुधार के काम में लगे थे. उन्हें महसूस हुआ कि महिलाओं के बराबरी के बिना सभ्य समाज की स्थापना की कल्पना करना बेईमानी होगी. उन्होंने सावित्री बाई को सर्वप्रथम शिक्षित किया, तत्पश्चात लड़कियों के 1848 में पहली पाठाशाला की स्थापना की.  इस पाठशाला की प्रथम शिक्षिका बनने का गौरव सावित्री बाई को प्राप्त है. समाज के दकियानूसी रीति रिवाज़ों के कारण उन्हें विरोध का सामना करना पडता था. विडबंना ऐसी की जब वे पाठशाला के लिए घर से निकलती थी तो उनके थैला में एक और साडी हुआ करती थी, चूंकि दुश्वारियां यह थी कि उस समय समाज, महिलाओं के शिक्षा के लिए तैयार नहीं था. इसलिए रास्ते में उनके साथ अभद्र व्यवहार किया जाता था. उन्हें कीचड और गोबर से मारा जाता था. लिहाजा उनके साडी कीचड से खराब हो जाया करती थी. अलबता रास्ते के लिए अलग और पाठशाला जाने के बाद उन्हें दूसरी साडी पहनकर लडकियों को पढाने का काम करना था.

18 प्राथमिक और मिडिल स्कूल की स्थापना की

1848 से 1852 तक करीब 18 प्राथमिक और मिडिल स्कूल की स्थापना की. इस काम में उनके पति महात्मा ज्योतिराव फुले की अग्रणी भूमिका रही. सावित्री बाई फुले ने महाराष्ट्र के गांव- गांव और कस्बो में जाकर स्कूल का संचालन किया. दुष्कर्म पीडिता के बच्चे को गोद लिया. दृष्टांत यह है कि एक विधवा महिला के साथ दुष्कर्म होने के बाद वह गर्भवती हो गई थी. समाज के दकियानुसी नियम के डर से वह आत्महत्या करने के लिए जा रही थी. तभी सावित्री बाई ने उस महिला की जान बचाई और उसके बच्चे का जन्मने तक उसकी देखभाव की. बाद में उसके बच्चे को गोद भी ले लिया. पति ज्योतिराव के निधन के बाद सत्यशोधक संगठन का नेतृत्व की और 1897 में महाराष्ट्र में फैले प्लेग रोगियों के सेवा के दौरान 10 मार्च को उनका निधन हो गया. सावित्री बाई फुले भारत ही नही बल्कि संपूर्ण एशिया महादेश में प्रथम महिला शिक्षिका व पथ प्रर्दशक के रूप में प्रेरणास्रोत हैं. इसे भी पढ़ें - CMIE">https://lagatar.in/cmie-report-unemployment-rate-in-india-at-a-four-month-high-it-reached-close-to-10-percent-in-urban-areas/">CMIE

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