दल-बदल मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची विधानसभा, अध्यक्ष ने दायर की SLP

Ranchi : झारखंड में दल बदल के मामले में आये दिन नया मोड़ सामने आ रहा है. इस मामले में पहले विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो की ओर से नोटिस जारी करने के बाद हाइकोर्ट ने उसपर रोक लगा दी थी. अब इसके खिलाफ विधानसभा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. विधानसभा अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में एस एल पी दायर किया है और हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो ने लगातार न्यूज नेटवर्क के संवाददाता से बात करते हुए इसकी पुष्टी की है. दल-बदल का मामला अब पूरी तरह से पेंचीदा हो गया है. जिसके बाद अब सबको देश के सर्वोच्च अदालत के फैसले का इंतजार है. वहीं झारखंड के महाधिवक्ता राजीव रंजन के मुताबिक, विधानसभा अध्यक्ष की ओर से लिये गये संज्ञान के बाद जारी नोटिस पर हाइकोर्ट ने अंतिरम रोक लगा दी थी. झारखंड हाइकोर्ट ने पिछले दिनों बाबूलाल मरांडी की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पीकर के ट्रिब्यूनल में चल रहे दल-बदल मामले की सुनवाई पर 13 जनवरी तक रोक लगा दी थी. इसे भी पढ़ें - शिक्षा">https://lagatar.in/education-minister-jagarnath-mahatos-health-improved-happy-new-year-to-the-people/14997/">शिक्षा

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बाबूलाल ने पहले ही दाखिल की है कोर्ट में कैविएट याचिका

झारखंड विधानसभा के स्पीकर रविंद्र नाथ महतो ने विधायक भूषण तिर्की के आवेदन पर 10वीं अनुसूची के तहत बाबूलाल मरांडी को एक बार फिर 17 दिसंबर को नोटिस जारी किया था. नोटिस में बाबूलाल मरांडी से दोबारा यह पूछा गया है कि क्यों न आपके खिलाफ दलबदल कानून के तहत कार्रवाई की जाए? इस पर जवाब मांगा गया है. पूर्व में झारखंड विधानसभा अध्यक्ष की ओर से स्वतः संज्ञान लेते हुए बाबूलाल मरांडी को नोटिस जारी किया गया था. जिसपर हाईकोर्ट ने 17 दिसंबर को यह कहते हुए स्पीकर की नोटिस पर रोक लगा दी थी कि 10वीं अनुसूची में अध्यक्ष को स्वतः संज्ञान लेकर नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है. विधानसभा की तरफ से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अपनी जिरह में कहा था कि दल-बदल के इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लिया गया संज्ञान संवैधानिक है और आर्टिकल 226 के तहत जब तक विधानसभा के न्यायाधिकरण में यह मामला लंबित है, अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. वहीं इससे पहले मामले में बाबूलाल मरांडी सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर चुके हैं. मरांडी के अधिवक्ता आरएन सहाय के मुताबिक, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दी है, ताकि सुनवाई के दौरान उनका भी पक्ष अदालत में सुना जाये.

क्या है कैविएट याचिका?

कैविएट एक लैटिन वाक्यांश है, जिसका अर्थ है ‘एक व्यक्ति को चेतावनी या सावधान रहने दें’. जब किसी व्यक्ति को यह आशंका होती है कि कोई उसके खिलाफ अदालत में मामला दायर करने जा रहा है, तो वह एहतियाती उपाय (precautionary measures) यानी कैविएट पिटीशन के लिए जा सकता है. यह अदालत को सूचित करनेवाली एक सूचना है कि कोई अन्य व्यक्ति उसके खिलाफ एक मुकदमा या आवेदन दर्ज कर सकता है और अदालत को कैविटोर (कैविएट दाखिल करने वाला व्यक्ति) को उचित मामले में उसके समक्ष लाना होता है. 1908 के नागरिक प्रणाली कोड में इसे भारत के 54 वें रिपोर्ट के कानून आयोग के समर्थन से धारा 148 ए के तहत दर्ज किया गया था और 1976 के सीपीएस अधिनियम 104 द्वारा शामिल किया गया था. इसे भी पढ़ें - बोरिंग">https://lagatar.in/boring-situation-worsens-the-state-of-ground-water-know-what-was-stopped/14980/">बोरिंग

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