मधुपुर उपचुनाव: बीजेपी के पैराशूट उम्मीदवार गंगा नारायण के सभी स्टार प्रचारक भी आयातित

  • चुनाव प्रचार से शुद्ध भाजपाइयों को रखा गया है दूर, दलबदलुओं पर सारा दारोमदार
  • रघुवर दास, सीपी सिंह, नीलकंठ सिंह मुंडा, रविंद्र राय, राज पलिवार जैसे भाजपाई प्रचार से दूर
  • दीपक प्रकाश, बाबूलाल मरांडी, अन्नपूर्णा, भानू, रणधीर, नवीन, बाउरी सब हैं इंपोर्ट लीडर 

Satya Sharan Mishra

Ranchi: झारखंड बीजेपी में पुराने, अनुभवी और संगठन के प्रति ईमानदार नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है.आयातित नेताओं पर खूब भरोसा कर उन्हें जिम्मेदारियां सौंपी जा रही है. मधुपुर की गलियों, चौक-चौराहों में पैराशूट उम्मीदवार गंगा नारायण के लिए वोट मांगने वाले सभी बड़े चेहरे इंपोर्डेट हैं. प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी, सांसद अन्नपूर्णा देवी, विधायक भानू प्रताप शाही, रणधीर सिंह, नवीन जायसवाल और अमर बाउरी समेत कई स्टार प्रचारक बीजेपी में इंपोर्ट किये गये हैं. दीपक प्रकाश और बाबूलाल मरांडी बीजेपी पुराने कार्यकर्ता रहे हैं, लेकिन बीच में दल-बदलने के बाद दोनों नेता खांटी भाजपाई नहीं रहे. अन्नपूर्णा से लेकर नवीन जायसवाल तक 2014 के बाद बीजेपी में शामिल कराये गये नेता हैं.

शुद्ध भाजपाइयों को दरकिनार करने की क्या है वजह ?

ऐसा नहीं है कि बीजेपी के पास अच्छे और वोकल नेता नहीं है. पूर्व सीएम रघुवर दास, वरिष्ठ विधायक सीपी सिंह, नीलकंठ सिंह मुंडा और पूर्व सांसद रविंद्र राय जैसे नेताओं को चुनाव प्रचार में उतार कर पार्टी बिखरते वोटों को बटोर सकती थी, लेकिन प्रदेश नेतृत्व ने इस पर ध्यान नहीं दिया. चुनाव प्रचार के लिए नेताओं के चयन और उनकी ड्यूटी का फैसला प्रदेश नेतृत्व ने लिया. सवाल ये उठता है कि आखिर किस रणनीति के तहत दीपक प्रकाश ने इंपोर्टेड नेताओं पर इतना भरोसा किया और शुद्ध भाजपाइयों को दरकिनार कर दिया.

इंपोर्टेड नेताओं को बीजेपी में फ्रंट लाइनर बनाने की कवायद

मधुपुर उपचुनाव में पार्टी के पुराने और लोकप्रिय नेताओं की उपेक्षा कर बीजेपी दूसरे दलों से लाये गये नेताओं को फ्रंट लाइन लीडर बनाने की कोशिश कर रही है. यह जरूर है कि इंपोर्टेड युवा नेताओं में भरपूर जोश है. पूरे उत्साह के साथ वे बीजेपी का झंडा थामकर चल रहे हैं. इनमें से कुछ तो बयान बहादुर भी हो गये हैं. इंपोर्टेड नेताओं के चुनाव प्रचार करने से बीजेपी को भले ही थोड़ा-बहुत फायदा हो जाये, लेकिन इससे बीजेपी के समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं के मन में कहीं न कहीं असंतोष उभरेगा. बीजेपी को उपचुनावों के पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए जोशीले नेताओं के साथ अनुभवी नेताओं को भी उतारना चाहिए था. बीजीपी के कार्यकर्ताओं के मन में ये सवाल जरूर उठता होगा कि क्या प्रदेश बीजेपी में रघुवर और सीपी जैसे नेताओं का कद घट रहा है, या उनके कद को छोटा कर इंपोर्डेड लीडरों को ऊपर बैठाने की तैयारी चल रही है.

युवा भाजपाई नेताओं को फ्रंट लाइन पर क्यों नहीं लाया जा रहा

यह मान भी लिया जाये कि बीजेपी इंपोर्टेड नेताओं को इसलिए फ्रंटलाइन पर लायी, क्योंकि वे युवा हैं. अगर युवा ही नेता चाहिए तो क्या बीजेपी के पास युवा नेताओं की कमी है? हजारीबाग के विधायक मनीष जायसवाल, साहेबगंज के विधायक अनंत ओझा, धनबाद के विधायक राज पलिवार, गोड्डा के विधायक अमित मंडल, बोकारो विधायक बिरंची नारायण समेत कई शुद्ध भाजपाई नेता भी तो युवा ही हैं. फिर उन्हें फ्रंट लाइन पर बीजेपी क्यों नहीं ला रही.

पलिवार कैडर के वोट बीजेपी को मिलेंगे या खेला होबे?

सिर्फ आयातित नेताओं के भरोसे बीजेपी के लिए मधुपुर उपचुनाव जीतना आसान नहीं होगा. राज पलिवार के पास अपने वोटर्स हैं. अल्पसंख्यक वोटरों पर जेएमएम का प्रभाव है, जबकि ब्राह्मण वोटरों पर राज पलिवार का प्रभाव है. पलिवार के पास अपने वोटर्स हैं. राज पलिवार के बीजेपी से दरकिनार होने के साथ ही ये वोट बीजेपी से पलिवार के हिस्से में चले गये हैं. ये वोट बीजेपी को पड़ेंगे या दूसरे प्रत्याशी को ये राज पलिवार के इशारे पर निर्भर करता है.अपनी उपेक्षा से नाराज राज पलिवार ने बीजेपी छोड़ी तो नहीं है, लेकिन अबतक खुलकर गंगा नारायण के सपोर्ट में भी नहीं आये हैं. अबतक चुनाव प्रचार से दूर हैं. देखना दिलचस्प होगा कि पलिवार के हिस्से को वोट का क्या होगा. ये वोट बीजेपी को पड़ेंगे या फिर यहां भी खेला होबे?