निशिकांत सबसे विवादित नेता, राज्य के इकलौते सांसद जिन पर सबसे ज्यादा हमले हुए

आखिर चुनावी मौसम में ही सांसद पर क्यों होते हैं इतने हमले ?

राजनीतिक मुद्दों पर विरोधियों को उकसाने की कला में माहिर हैं निशिकांत !

  Satya Sharan Mishra

Ranchi :  कॉरपोरेट वर्ल्ड से राजनीति की दुनिया में आये गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे संथाल के सबसे विवादित नेताओं में से एक हैं. विरोधियों को उकसा कर खुद पर हमले करवाना और फिर सहानुभूति बटोर कर उसे वोट में तब्दील करने की कला निशिकांत बखूबी जानते हैं. 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य में किसी प्रत्याशी के उपर हमले नहीं हुए.

निशिकांत दुबे ही इकलौते उम्मीदवार रहे, जिन पर कई बार हमले हुए. उन्होंने चुनावी मौसम में सबसे ज्यादा हमले झेलने वाले नेता का रिकॉर्ड बना लिया है. साहब एक बार फिर मारपीट के मामले को लेकर विवाद में हैं. यह मारपीट भी ऐसे वक्त में हुई है, जब मधुपुर में उपचुनाव हो रहा है. इस उपचुनाव में प्रत्याशी भले ही गंगा नारायण हैं, लेकिन इजज्त निशिकांत दुबे की दांव पर लगी है. गोड्डा में हमफसर ट्रेन के उद्घाटन के मौके पर कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव के साथ वह सीधे भिड़ गये.

श्रेय नहीं मिला तो ऐसे उतारी खीज

पिछले कई दिनों से इस ट्रेन को चलाने का श्रेय लेने के लिए सांसद खूब मेहनत कर रहे थे. गठबंधन के नेताओं को कार्यक्रम से दूर रखने की भी कोशिश कर रहे थे. हालांकि जिला प्रशासन की दखल के बाद निशिकांत अपनी मंशा में कामयाब नहीं हो पाये. गठबंधन के नेता भी कार्यक्रम में पहुंचे, जिसमें विधायक प्रदीप यादव भी शामिल थे.  लेकिन सांसद की शह पर उनके समर्थकों ने इस सरकारी कार्यक्रम को स्टेशन पर भी हाईजैक करने की कोशिश की. मौका हाथ से निकलने की खीज बहस और हाथापाई के रूप में निकल गयी.

गोड्डा तो झांकी है अभी मधुपुर भी बाकी है !

हमसफर एक्सप्रेस के उद्घाटन के मौके पर इस तरह की घटना की आशंका पहले से ही थी. निशिकांत दुबे के ट्विट और बयान बता रहे थे कि अच्छे मौके पर कुछ न कुछ अशुभ जरूर होगा. सोशल मीडिया पर लगातार मधुपुर उपचुनाव और रेललाइन उद्घाटन को लेकर अपने बयान से वह कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी को उकसा रहे थे. उम्मीद थी कि निशिकांत यहां इरफान से भिड़ेंगे, लेकिन भिड़ गये अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी प्रदीप यादव से. उधर दूसरी तरफ मधुपुर उपचुनाव में भी सांसद पूरी ताकत झोंके हुए हैं और उपचुनाव में एक दूसरे के खिलाफ जिस तरह की बयानबाजी चल रही है. वैसे में दोबारा इस तरह की घटना होने से इनकार नहीं किया जा सकता. 

निशिकांत के विरोधी पलिवार को ऐसे लगाया गया ठिकाने

निशिकांत दुबे की किस्मत भी कम तेज नहीं है. 5 मार्च 2009 में जब दिल्ली से बीजेपी का टिकट लेकर लौटे थे तब जसीडीह रेलवे स्टेशन पर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेर लिया था. निशिकांत पर लाठी-डंडे भी चले थे. उनके कपड़े भी फाड़ दिये गये. नारे लग रहे थे गंगा पार से आये हो, गंगा पार जाओ. चुनाव के वक्त गोड्डा में बीजेपी दो गुट में बंट गयी. इसके बावजूद 2009 में निशिकांत चुनाव जीते. फिर बहुत जल्द समय बदला. निशिकांत का विरोध करने वाले राज पलिवार को ही संगठन ने ठिकाने लगा दिया. प्रदेश नेतृत्व के बदलते ही और रघुवर दास का संगठन में प्रभाव कम होते ही निशिकांत भारी पड़े और कट गया पलिवार का टिकट.

हमले करवाने का सबसे ज्यादा आरोप प्रदीप यादव पर लगा

गोड्डा में 2009 से 2019 तक हुए तीनों लोकसभा चुनाव में निशिकांत दुबे के मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस के फुरकान अंसारी और जेवीएम से प्रदीप यादव रहे. चुनावी समर में कूदते ही निशिकांत ने अपने तीखे बयानों से कांग्रेस और जेवीएम समर्थकों में गुस्सा भड़का दिया. पहली बार चुनाव प्रचार के दौरान 15 मार्च 2009 को पोड़ैयाहाट के बोहरा गांव में हमला हुआ. मारपीट में निशिकांत दुबे का सिर फट गया था. निशिकांत ने आरोप लगाया कि प्रदीप यादव के समर्थकों ने उनपर हमला किया. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी निशिकांत का कई जगहों पर विरोध हुआ, लेकिन जानलेवा हमला नहीं हुआ. फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान गोड्डा से महगामा जाने के दौरान उनके साथ धक्का-मुक्की हुई. इसका भी आरोप उन्होंने जेवीएम पर लगाया. 19 मई 2019 को भी पोड़ैयाहाट के पास निशिकांत दुबे के साथ मारपीट हुई.

सवाल यह है कि आखिर निशिकांत दुबे पर ही हमले क्यों होते हैं. क्यों उनके साथ ही मारपीट होती है. सांसद का सार्वजनिक मुद्दों पर मुखर और सक्रिय होना गलत नहीं है. लेकिन वोकल होने और विरोधियों को उकसाने में अंतर है. सांसद की अति सक्रियता और फूहड़ बयानों का जनता के बीच नकारात्मक संदेश जा रहा है.