मानवमुक्ति और समानता के अग्रदूत फुले दंपत्ति और जयपाल सिंह मुंडा
Faisal Anurag समानता,स्वतंत्रता और लोकतंत्र के भारतीय नायकों में सावित्रीबाई फुले और जपयाल सिंह मुंडा के संघर्षो के बीच अनेक समानताएं हैं. आज दोनों की जयंती है. एक ने महिला शिक्षा,जातिभेद उन्मूलन,ज्ञान पर एकाधिकार के वर्चस्ववादी सामाजिक संरचना और परतंत्रता की बेड़ियों के खिलाफ अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिल कर 19वीं सदी में भारत को राह दिखाया. अंग्रेजी साम्राज्य के उस दौर में जब भारत की सामंती ताकतें गुलामी के पट्टे पर दस्तखत कर रही थीें और भारत ने पहली स्वतंत्रता का संग्राम मकसद हासिल करने में विफल रहा था. यह वह दौर था जब महिलाओं के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद थे और शिक्षा पर केवल कथित श्रेष्ठ जातियों का प्रभुत्व था. उस दौर में सावित्रीबाई फुले ने कहा था ``उसका नाम है अज्ञान, उसे धर दबोचो, मज़बूती से पकड़कर पीटो और उसे अपने जीवन से भगा दो.`` जाओ जाकर पढ़ो लिखो बनो मेहनती, बनो आत्मनिर्भर, काम करो, ज्ञान और धन इकट्ठा करो. ज्ञान के बिना सब खो जाता है. ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते हैं. इसलिए खाली मत बैठो. जाओ जाकर शिक्षा लो.`` जयपाल सिंह मुंडा ने आईसीएस किया भारत के पहले ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता टीम का नेतृत्व किया. यह दुनिया के लिए यह संदेश था कि भारत के लोग जाग रहे हैं और वे जल्द ही स्वतंत्रता हासिल करने वाले हैं. उस एक गोल्ड मेडल ने भारतीय चेतना को नया आयाम दिया और भारत के अंदर भी सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी. जयपाल सिंह मुंडा न केवल आदिवासी समाज की स्वयत्तता और सांस्कृतिक अस्मिता और विशिष्टता को मुखर किया, बल्कि संविधान सभा में यह कह कर सबको प्रभावित किया कि आदिवासी जनतंत्र की विरासत एक जीवंत जीवनशैली का हिस्सा है. यह कोई मामूली उद्घोष नहीं था, क्योंकि तबतक दुनिया ने लोकतंत्र के नाम पर साम्राज्य ताकतों का कत्लेआम अमेरिका,अफ्रीका और एशिया में देख लिया था. तब तक सोवियत संघ में एक नयी व्यवस्था जन्म ले चुकी थी और सत्ता मजदूरों के हाथ में थी . कम्युन की सोवियत व्यवस्था से दुनिया के बड़े साम्राज्यवादी देशों की नींद उड़ चुकी थी और भारत में गांधी नेहरू अंबेडर मिल एक नए भारतीय लोकतंत्र का सूत्र इजाद कर रहे थे जिसे जयपाल सिंह मुंडा ने एक व्यापक नजरिया प्रदान किया. जयपाल सिंह ने यह भी याद दिलाया कि अमेरिका महादेश में भले ही वहां के एथनिक समूहों को हाशिए पर धकेल कर एक नया अमरीका उभर गया हो लेकिन भारत के एथनिक समूहों के साथ इस तरह का खिलवाड़ करने की छूट किसी को भी नहीं दी जा सकती. जयपाल सिंह की राजनीति में अनेक उतार चढ़ावों के बावजूद आदिवासी समाजों की स्वायत्तता और स्वशान के पहलू कभी गौण नहीं हुए. जयपाल सिंह मुंडा ने न केवल झारखंड को एकसूत्र में पिरोया बल्कि आदिवासी समाजों में भी व्याप्त सामाजिक अंधविश्वासों के खिलाफ सजग किया. उनके पहले यह काम संताल परगना में जहां सिदो कानू ने संताल हूल के दौरान किया था वहीं उलगुलान के महानयक बिरसा मुंडा ने सामाजिक सांस्कृतिक चेतना से अंधविश्वास उन्मूलन को प्राथमिकता दी. सावित्री बाई फुले भारत की पहली शिक्षिका हैं जिनके प्रयोग ने महिलाओं को नयी दुनिया में उड़ान भरने की प्रेरणा ओर पंख दिए तो जयपाल सिंह पहले अखिल भारतीय आदिवासी नेता हैं जिन्होंने एथनिक उत्पीड़न के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया. संविधान सभा में दिए गए उनके भाषणों को हर एक आदिवासी थाती मानता है. ज्योति बा फुले ने जिस गुलामगिरी और किसान का कोड़ा पुस्तके भारत के बहुजनों और मनुष्य की मुक्ति में यकीन करने वालों के लिए कम्युनिस्ट घोषणापत्र की तरह ही है जिसमें न केवल शोषण,अत्याचार और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के सूत्र अंतरनिहित हैं बलिक भारत के आजादी के संघर्ष में इन पुस्तकों की भूमिका का तथ्यपरक आकलन का कार्य शेष है. लेखक और विचारक प्रेम कुमार मणि ने लिखा है `` फुले दम्पति ने एक मज़बूत भारत का स्वप्न देखा था और इसके लिए वह शिक्षा को जरूरी मानते थे . वह भेदभाव मुक्त एक ऐसे समाज -देश को स्थापित करना चाहते थे, जहाँ मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण न हो . यही तो कार्ल मार्क्स भी चाहते थे . मार्क्स ने यूरोपीय समाज को देख कर अपनी राय बनाई थी . फुले ने हिंदुस्तान को देखा था . यूरोप में औद्योगिक क्रांति हो चुकी थी और वहाँ सर्वहारा मजदूर तबका आबादी का एक बड़ा हिस्सा बन चुका था . सामंती समाज ख़त्म हो गया था और पूंजीवादी समाज विकसित हो रहा था जो लाभ और लोभ का सामाजिक -दर्शन थोप रहा था . मार्क्स ने इसकी मुखालफत की . मेहनत कशों के लिए एक मुक्कमल दर्शन तैयार किया और दुनिया को बदलने का आह्वान किया . उनकी राय थी कि सम्यक बदलाव केवल मेहनतक़श वर्ग ही कर सकता है.`` जयपाल सिंह मुंडा के विचारों ने भी इसे ही एक नयी चेतना,तेवर और फलक देते हुए उसमें आदिवासी समाजों के महत्व को स्थापित किया. आज की दुनिया में कारपारेट गुलामी के खिलाफ फुले दंपत्ति का शिक्षा शास्त्र और गुलामगिरी के खिलाफ किए गए आह्वान का महत्व बढ़ गया है वहीं जयपाल सिंह के आदिवासी जनंतत्र के समानतामूलक और संपत्ति पर सामूहिक हक के विचार भी ज्यादा प्रासंगिक हो गया है. [wpse_comments_template]