पॉलिटीकल इकॉनमिक्स और लॉ ऑफ कम्पाउंडिंग

Manish Singh वर्ष 1947-48 में भारत देश का पहला बजट प्रस्तुत हुआ. कुल कीमत 196 करोड़. जी हां, एक सौ छियानबे करोड़. वर्ष 2019-20 का बजट वर्तमान सरकार ने प्रस्तुत किया. कुल कीमत 27 लाख 86 हजार 349 करोड़. क्या इन्फ्लेशन घटाकर दोनों आंकड़ों के बीच वास्तविक वृद्धि आप निकाल सकते हैं. डॉलर को लेकर चलूं तो पहला बजट आज के हिसाब से कोई 75 हजार करोड़ का था. तो 75000 से बढ़कर हुआ 27,86,350 करोड़. हिसाब लगाइये, आपका काम आसान कर दिया है. बजट कोई नेता तो अपनी जेब से खर्च नहीं करते. बजट आकलन है कि जनता की इतनी ही जरूरत है. इतना ही टैक्स दे सकती है. यानी वर्ष 1947 में भारत की जनता की हैसियत 196 करोड़ देने की थी, आज बढ़कर 28 लाख करोड़ हो गयी है. तब नेहरू प्रधानमंत्री थे. वह कोई पांच-दस करोड़ की घोषणाएं करते थे. आज हमारे पीएम आठ हजार करोड़ का हवाई जहाज तो खुद के लिए खरीद सकता है. आजादी के बाद 25 सालों का टोटल बजट. एक-एक राज्य का चुनाव जीतने के लिये चार लाख करोड़ दे सकते है. आजादी के बाद 50 साल का टोटल बजट. अब यह मिरेकल हुआ कैसे. क्या यह सब सात साल के जादुई प्रबंधनन से हुआ. बहुतों को ऐसा ही समझ आता है. तो एक लॉ ऑफ कम्पाउंडिंग होता है. यूं समझिये की आपकी ग्रोथ 5% है. आज 100 रुपये से शुरू किया. अगले साल 105 पहुंचे. अब 105 से शुरू किया तो 110.25 पर पहुचेंगे. बस इसे आगे बढ़ाते जाइये. कोई 50 साल बाद इस ग्राफ को देखिये. जो दिखेगा, वह भारत देश की समृद्धि का ग्राफ है. https://lagatar.in/wp-content/uploads/2021/01/graph.jpg"

alt="पॉलिटीकल इकॉनमिक्स और लॉ ऑफ कम्पाउंडिंग" width="600" height="400" /> तो अब महत्वपूर्ण यह है कि आप शुरू कहां से करते हैं. जैसे 100 से शुरू किया तो दो साल में 110.25 पर आए. मगर केवल 10 से शुरू किया होता, तो दो साल में मात्र 11.025 पर पहुचते. दर वही है. यानी दो लोगों में एक, जिसने 100 से शुरू किया, दो साल में 10.25 बढ़ा गया. दूसरा जिसने 10 से शुरू किया दो साल में मात्र 11.025 बढ़ा सका. अब क्या 100 वाले को बेहतर प्रबंधक, नेता, लीडर, गुणवान, ज्ञानवान बताया जा सकता है. हां, बिल्कुल. यदि आपको ला ऑफ कम्पाउंडिंग का पता नही. इसी तरह आप यूरोप को भारत से बेहतर प्रबंधन वाला मानते हैं. क्या 10 से शुरू करने वाले को समाजवादी, वामपंथी, बकवास लीडर बताया जा सकता है. हां बिल्कुल, यदि उसका नाम नेहरू हो. और आप उसके देश की अहसानफरामोश, बेवकूफ, व्हाट्सप प्रेमी पीढ़ी हो. जिसकी रुचि एडविना में ज्यादा हो और जिसे 200 साल तक लुटे हुए भारत के इकॉनमिक ध्वंस का अंदाजा न हो. https://lagatar.in/wp-content/uploads/2021/01/graph1.jpg"

alt="पॉलिटीकल इकॉनमिक्स और लॉ ऑफ कम्पाउंडिंग" width="600" height="400" /> और तब, जब आप उस वक्त जन्मे हो. जब ग्रोथ का कर्व अपने 60-70 वें वर्ष में हो. पीक पर हो. हर बात, हर प्रोजेक्ट, हर फ़ेंकरी कम से कम पांच-सात हजार की सुनने के आदी हों. बात की बात ही 40-50 हजार करोड़ से कम की न होती हो. 196 करोड़ के बजट और 5-10 करोड़ से देश मे औद्योगिकीकरण की शुरुआत करने वाला आपको अजीब सा गरीब तो लगेगा. ऐसे में टैक्स में ( आपकी-मेरी, यानी "जनता की हैसियत" में) लाख दो लाख करोड़ की गिरावट भी हंसी ठट्ठा लगेगी. है न?? तो जनाब, एक लॉ ऑफ डिमिनिशिंग रिटर्न्स भी होता है. इस पर फिर कभी. बस ग्राफ को उल्टा करके देखिये. मोबाईल उलटा करके. भारत का भविष्य दिखेगा. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.