सवाल बुजुर्गों के स्वाभिमान का !

भारत में बुजुर्ग

 

भारत में (2025) बुजुर्गों (60 वर्ष से अधिक उम्र के) की संख्या कितनी है ?  कुल आबादी का करीब 10.1 प्रतिशत. यानी 13.8 करोड़ बुजुर्ग.
वर्ष 2031 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या कितनी हो जायेगी ? कुल आबादी का करीब 13.2 प्रतिशत. यानी 19.4 करोड़ बुजुर्ग.
10 साल बाद 2036 में बुजुर्गों की संख्या कितनी हो जायेगी ? 2036 में आबादी का 18 प्रतिशत. यानी 25-26 करोड़ बुजुर्ग.

 

भारत में बुजुर्गों की स्थिति

 

कितने बुजुर्ग आर्थिक रुप से खुद पर निर्भर हैं ? करीब 22 प्रतिशत को किसी ना किसी तरह की पेंशन मिलती हैं. इसमें सरकारी योजनाओं से मिलने वाली पेंशन भी शामिल है. 
बुजुर्गों को कितना पेंशन मिलता है ?

IGNOAPS के तहत 60-79 वर्ष के BPL बुजुर्गों को 200 (केंद्र) + 1300 (राज्य) = 1500 रुपया प्रति माह. 

80 वर्ष से अधिक आयु वालों को 500 (केंद्र) + 1000 (राज्य) = 1500 रुपया प्रति माह.

78 प्रतिशत बुजुर्गों का जीवन किसके भरोसे ?

परिवार के सदस्यों, पहले की बचत या अन्य श्रोत.

कितने प्रतिशत बुजुर्ग के पास स्वास्थ्य बीमा है ?

देश के सिर्फ 18 प्रतिशत बुजुर्ग के पास स्वास्थ्य बीमा है.

 

उपर के दोनों टेबल को पढ़ने के बाद भारत में बुजुर्गों की आर्थिक, सामाजिक व निर्भरता की स्थिति की समझ सामने आ जाती है. 78 से 80 प्रतिशत बुजुर्ग या तो पहले की बचत पर निर्भर हैं या भी अपने बच्चों की कमाई पर. क्या हमें खुश होना चाहिए. बुजुर्गों के लिए सरकारें जो कर रही हैं, क्या वह इस लायक है कि उसे पर्याप्त मान लिया जाये. शायद नहीं.

 

हम-आप जो आज कामकाजी हैं. कुछ न कुछ कमा करके खुद का व परिवार को देखभाल कर पा रहे हैं, अगले 5-10 या 10-15 सालों में बुजुर्ग हो जाएंगे. देश में बुजुर्गों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. ऐसी स्थिति में आज से सरकार को तैयारी नहीं करनी चाहिए.

 

लेकिन बुजुर्गों का सवाल सिस्टम से गायब है. जो बुजुर्ग हैं, जो अगले 10-15 सालों में बुजुर्ग हो जाएंगे, उनके लिए सरकारें सोंचती ही नहीं. आज जबकि कमाने वाले लोगों की बचत ऐतिहासिक रुप से कम हो गई है, आने वाले दिनों में जब वह बुजुर्ग हो जाएंगे, तब क्या खर्च करेंगे. 

 

देश में जो हालात है, लोग जीवन यापन करने, नौकरी-मजदूरी करने के लिए घर छोड़ रहे हैं. जहां रहते हैं, वहीं परिवार बसा ले रहे हैं. बुजुर्ग पुराने गांव या शहर में छूट जा रहे हैं. बिल्कुल अकेले. यह स्थिति पहले से अधिक बड़ी होती जा रही है. इसलिए अब वक्त आ गया है कि बुजुर्गों के स्वाभिमान को बचाने के लिए सरकारें कदम उठायें.