प्रदेश अध्यक्ष की अकुशल रणनीति, कांग्रेस के कर्ताधर्ता के बूथ और मीडिया मैनेजमेंट में खर्चों की फेंका-फेंकी और मंत्रियों व नेताओं की अनबन ने कांग्रेस को रामगढ़ उपचुनाव हराया.Ranchi: रामगढ़ उपचुनाव का फाइनल रिजल्ट आ गया है. आजसू उम्मीदवार सुनीता चौधरी ने कांग्रेस के बजरंग महतो पर बड़ी अंतर से जीत दर्ज की है. कांग्रेस को मिली हार के बाद अब तरह-तरह के कारण गिनाए जाएंगे. लेकिन देखा जाए, तो यह हार बजरंग महतो की नहीं बल्कि प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और पार्टी के चारों मंत्रियों (आलमगीर आलम, डॉ रामेश्वर उरांव, बन्ना गुप्ता, बादल पत्रलेख) की है. कांग्रेस उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए वैसे तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और प्रभारी अविनाश पांडेय ने ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां और जनसभा की. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर की अकुशल रणनीति, कांग्रेस के प्रमुख लोगों, मंत्रियों की आंतरिक कलह और संगठानिक कमजोरी सहित कई कारण ऐसे थे, जिससे कांग्रेस यह उपचुनाव हारी. बता दें एनडीए प्रत्याशी सुनीता चौधरी ने कांग्रेस के बजरंग महतो को लगभग 21,970 वोटों से हरा दिया है. पोस्टल वोटों से सुनीता चौधरी ने जो बढ़त बनाई वह अंत तक बरकरार रही. राउंड दर राउंड वोटों का अंतर बढ़ता गया और कांग्रेस के बजरंग हार गए. आजसू की सुनीता चौधरी को 1,15,669 वोट और कांग्रेस के बजरंग महतो को 93,699 वोट मिले. इसे पढ़ें-झारखंड">https://lagatar.in/jharkhand-assembly-third-supplementary-budget-of-2446-crores-passed/">झारखंड
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2024 के लिहाज से हार प्रदेश नेतृत्व पर सवाल खड़ा करता है
झामुमो के साथ गठबंधन कर सत्ता का सुख भोग रही कांग्रेस की यह हार 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव की लिहाज से काफी गंभीर है. यह हार प्रदेश नेतृत्व पर सवाल खड़े करता है. सभी जानते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद पहले से ही राजेश ठाकुर के नेतृत्व पर सवाल उठते रहे हैं. पिछले दिनों प्रदेश कमिटी गठन करने के बाद आंतरिक कलह खुलकर सामने आयी थी.बेरमो और मांडर उपचुनाव की जीत प्रदेश अध्यक्ष की नहीं थी
दिसंबर 2019 के बाद झारखंड में यह पांचवा उपचुनाव (दुमका, बेरमो, मधुपुर और मांडर) के बाद रामगढ़ था. बेरमो और मांडर उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. पर यह जीत तत्कालीन और वर्तमान प्रदेश नेतृत्व की नहीं, बल्कि पूर्व विधायक रहे स्व. राजेंद्र प्रसाद सिंह (बेरमो उपचुनाव) और पूर्व मंत्री बंधु तिर्की (मांडर उपचुनाव) की जीत थी. रामगढ़ उपचुनाव पूरी तरह से प्रदेश नेतृत्व पर ही टिका था. इसे भी पढ़ें-RTE">https://lagatar.in/case-not-taking-admission-under-rte-government-said-in-hc-that-notice-has-been-sent-dps/">RTEके तहत एडमिशन नहीं लेने का मामला: HC में सरकार ने कहा DPS को भेजा गया है नोटिस
इन कारणों से मिली पार्टी को करारी हार
- आजसू के लोग जहां मजबूत बूथ मैनजमेंट करते दिखे, वहीं कांग्रेस के कर्ताधर्ता और मठाधीश जैसे लोग बूथ और मीडिया मैनेजमेंट में होने वाले खर्चें को फेंका-फेंकी करते दिखे.
- उपचुनाव के अंतिम चरण में कांग्रेस नेतृत्व ने अपने प्रचार अभियान को लो प्रोफाइल बनाए रखा.
- कांग्रेस पार्टी भीड़ और इमोनशल कार्ड के जरिए उपचुनाव जीतना चाहती थी. वहीं, आजसू ने चूल्हा प्रमुख की रणनीति पर काम किया. घर-घर तक लोगों से संपर्क किया. जमीनी स्तर पर राज्य सरकार और कांग्रेस की खामियां को लोगों को बताया.
- रामगढ़ आकर चुनाव प्रचार करने वाले कांग्रेसी नेता केवल खानापूर्ति करते दिखे. आजसू नेता देर रात तक क्षेत्र में एक्टिव रहे.
- रामगढ़ जिले के मठाधीश कांग्रेसी नेताओं के बीच की आंतरिक कलह को भी प्रदेश नेतृत्व समझ नहीं पायी. बता दें कि बीते दिनों शांतनु मिश्रा को जिला अध्यक्ष बनाया गया था. लेकिन अचानक उनकी जगह मुन्ना पासवान जिला अध्यक्ष बना दिए गए. इससे यहां आंतरिक कलह जोरों पर थी.