Srinivas
पहली बार एक ‘भरतवंशी’ जोहरान ममदानी दुनिया के सबसे ताकतवर और अमीर देश अमेरिका के प्रमुख शहर न्यूयार्क का मेयर बनने के करीब है. मगर ‘हम भारत के लोग’ शायद आह्लादित नहीं है! कम से कम खास ब्रांड के भारतीय तो नहीं ही हैं! इसका मतलब इंग्लैंड के प्रधानमंत्री पद पर सुनक की ताजपोशी से वह आह्लाद महज उनके ‘भरतवंशी’ होने का कारण नहीं था!
‘ऋषि सुनक’ और ‘जोहरान ममदानी’ नाम में इतना अंतर है?
अमेरिका का सनकी राष्ट्रपति ममदानी को गिरफ्तार करने की धमकी दे रहा है, मगर ‘हम’ खुश हैं! ट्रंप ने अनेक ‘भारतीयों’ को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया है, मगर ट्रंप को अचानक पता चला कि ममदानी अमेरिका के नागरिक नहीं हैं, अवैध प्रवासी हैं. तो अब उनको डिपोर्ट करने की बात भी कर रहा है. लेकिन चुनाव प्रक्रिया के अंतिम दौर में ट्रंप की बौखलाहट का कारण यह है कि ममदानी डेमोक्रेट हैं और ट्रंप के मुखर आलोचक और आक्रामक हैं!
ट्रंप उन्हें कम्युनिस्ट कहता है, न भी हों, मगर आत्मविश्वास से भरे ममदानी जिस तरह ट्रंप को चुनौती दे रहे हैं. अमेरिका की संघीय व्यवस्था और संविधान के कारण एक मेयर भी अपने शहर में सरकार जैसी हैसियत रखता है. वह कह रहा है, ट्रंप कुछ भी बोलें या करें, चुनाव में उनको जवाब न्यूयार्क की जनता देगी. ऐसे ममदानी का न्यूयार्क के मेयर पद पर रहना निश्चय ही ट्रंप के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है! तो कानून और संविधान ठेंगे पर, उसका कोई उपाय तो करना ही होगा!
आगे जो भी हो, इस पूरे प्रकरण में भारत और अमेरिका (दोनों देशों की सत्तारूढ़ जमातों) के बीच अद्भुत समानता नजर आ रही है! जो राजनीतिक विरोधी है, वह हमारा ‘दुश्मन’ और देश विरोधी है! दोनों जगह सत्ता के शीर्ष पर काबिज लोग चुनावों में भी एक दूसरे के लिए प्रचार कर चुके हैं.
‘अबकी बार, ट्रंप सरकार’ और ‘हाऊ डू मोदी’ जैसे नारे लगा चुके हैं. यह और बात है कि लगता है, ट्रंप पिछली बातें भूल कर भारत के पीछे पड़ गया है! फिर भी जो ट्रंप का विरोधी है, वह हमारा दोस्त कैसे हो सकता है? वैसे देशविरोधी को सबक सिखाना तो सरकार का दायित्व होता है, तो ट्रंप को जो उचित लगे!
‘हम’ चूंकि इस ‘सिद्धांत’ को मानते हैं, इसलिए ममदानी के साथ ट्रंप कुछ भी करे, उससे हमें कोई मतलब नहीं है! यह तो खैर ममदानी है, इसके पहले ट्रंप सैकड़ों ‘भरतवंशियों’ को हथकड़ी-बेड़ी में जकड़ कर अपराधियों की तरह भेज चुका है! हमने कोई विरोध नहीं किया!
वैसे भी कम्युनिस्ट और वामपंथी तो मानवता के ही दुश्मन होते हैं! ऊपर से इसके बाप ने एक हिन्दू महिला के साथ ‘लव मैरेज’ किया था, तो ‘भरतवंशी’ होते हुए भी इसे ‘शुद्ध भारतीय’ कैसे माना जा सकता है? ट्रंप से अच्छे अच्छे लोग पंगा लेने से घबराते हैं, तुमने लिया है तो भुगतो!
‘नाम में क्या रखा है’, यह चर्चित पंक्ति शायद शेक्सपीयर की है. भाव यह रहा होगा कि नाम कुछ भी हो, क्या फर्क पड़ता है. किसी वस्तु या व्यक्ति का गुण मायने रखता है. मगर भारत के संदर्भ में तो सच यही है कि ’नाम’ में बहुत कुछ रखा है!