चेहरा देखकर राज्यों को सहायता देने का काम अब बंद होना चाहिए

Anand Kumar

कुछ दिन पहले एक खबर थी कि अमेरिकी प्रशासन और वहां की बहुराष्ट्रीय कंपनियां कोरोना से लड़ने में भारत की पूरी मदद भेज रही हैं. इस खबर में इसका भी जिक्र था कि भारत का प्रधानमंत्री कार्यालय अमेरिका से आनेवाली मदद का समन्वय करने का इच्छुक है. लेकिन अमेरिका भारत स्थित दूसरी एजेंसियों के जरिए इस काम को अंजाम देना चाहता है. अमेरिका का मानना था कि पीएमओ की दखलअंदाजी से इस प्रक्रिया का केंद्रीकरण हो जायेगा और राज्यों तक पर्याप्त मदद नहीं पहुंच पायेगी.

शुक्रवार को इसका प्रमाण सुप्रीम कोर्ट में मिला. कोरोना के लिए नेशनल प्लान से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने झारखंड सरकार द्वारा बांग्लादेश से रेमडेसिविर की खेप मंगाने के मामले पर केंद्र से इस बारे में सवाल किये हैं. झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी कि उसने केंद्र सरकार से लगभग साढ़े तीन लाख से ज्यादा वैक्सीन की डोज मांगी थी, लेकिन 30 अप्रैल तक केंद्र की तरफ से मात्र 21 हज़ार डोज ही उपलब्ध कराये गये. यह भी बताया गया कि ऑक्सीजन के 17 हजार सिलेंडरों की मांग गुजरात से की गयी है, लेकिन अब तक आपूर्ति नहीं हुई है.

यह सिर्फ झारखंड का ही मामला नहीं है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की कमी पर लगातार मुखर रहे हैं. यही हाल देश के अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों का है. जाहिर है, जब कोरोना को लेकर राजनीति भी जारी है, तो अमेरिका की चिंता गैरवाजिब भी नहीं है. प्रधानमंत्री की लॉकडाउन को अंतिम विकल्प बताने के बावजूद गैर भाजपा शासित राज्यों महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, झारखंड, कर्नाटक आदि ने कड़े प्रतिबंधों की घोषणा की है, जबकि भाजपा शासित यूपी तो लॉकडाउन लगाने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. मध्यप्रदेश और हरियाणा की बीजेपी सरकारों ने साफ कह दिया है कि लॉकडाउन नहीं लगाया जायेगा.

दूसरी ओर यही गैर भाजपा शासित राज्य ही देश में मेडिकल ऑक्सीजन आपूर्ति की रीढ़ बने हुए हैं. ओडिशा आठ राज्यों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कर रहा है. झारखंड पांच राज्यों को और छत्तीसगढ़ आधा दर्जन राज्यों को ऑक्सीजन की सप्लाई अपने यहां स्थित प्लांटों से कर रहा है. ये सभी राज्य कोरोना के सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में शामिल हैं, लेकिन वे केंद्र सरकार से तालमेल बनाकर ऑक्सीजन की आपूर्ति कर रहे हैं. मगर जब बात रेमडेसिविर इंजेक्शन, ऑक्सीजन के सिलिंडर या वैक्सीन की होती है, तो इन राज्यों को पिछली कतार में खड़ा कर दिया जाता है.

इसलिए अमेरिका का संदेह वाजिब है. जरूरत इस बात की है कि इस राष्ट्रीय आपदा में राज्यों की जरूरत के हिसाब से उनकी मदद दी जाये. बिना किसी राजनीतिक मानसिकता के हर राज्य में बीमारों के लिए दवा, अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन और वैक्सीन के पर्याप्त इंतजाम किये जायें.

भारत और दुनिया में मोदी की गिरती छवि को संभालने के इंतजाम में केंद्र सरकार और भाजपा के मीडिया मैनेजर जुट गये हैं, लेकिन  अभी मोदी को नहीं, मरीजों को देखभाल की ज्यादा जरूरत है. चेहरा देख कर राज्यों को सहायता देने का काम अब बंद होना चाहिए.