alt="" width="600" height="400" /> खरसावां शहीद स्थल पर शहीदों को पारंपरिक तरीके से याद करते उनके परिजन[/caption]
अबतक गुमनाम हैं शहीद
गोलीकांड के शहीदों के बारे में डेमका सेय कहते है हो समाज के नेग दस्तूर के अनुसार शहीदों की पहचान नहीं होने के कारण अभी तक हजारों गुमनाम वीर शहीदों का ‘रोवा कीयदर’ किया जाता है जो अब तक नहीं हुआ. सरकार को चाहिए कि शहीदों के सम्मान के लिए उनकी पहचान सामने लाई जाये. राज्य बनने के 20 साल हो गये लेकिन इस काम को अभी तक किसी भी सरकार ने पूरा नहीं किया. आखिर कब शहीदों को न्याय और सम्मान सरकार देती है यह बड़ा सवाल आज तक बना हुआ है. सूबे की बगडोर संभालने वाले सभी मुख्यमंत्रियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. दूसरी ओर आम जनों के द्वारा शहीदों को सम्मान देने के लिए हर साल हजारों की संख्या लोग खरसवां शहीद स्थल पर जमा हो कर उन्हे याद करते हैं. देखें वीडियो इसे भी पढ़ें- आजाद">https://lagatar.in/jalianwala-bagh-scandal-date-of-1st-january-1948-read-report-of-independent-india/14182/">आजादभारत का ‘जलियांवाला बाग कांड’ तारीख 1 जनवरी 1948, पढ़ें रिपोर्ट
शहीद पुरखों का लोगों ने अबतक नहीं किया ‘रिचुअल’
सामाजिक कार्यकर्ता ‘रेमुल बाडरा’ कहते है कि खरसावां गोलीकांड के शहीद पुरखों का अब तक रिचुअल पूरा नहीं हुआ है. या फिर कहें की जिस तरह अन्य धर्मों में किसी की मौत के बाद अंतिम क्रियाक्रम किया जाता है. गुमनाम शहीदों का क्रियाक्रम अबतक नहीं किया है. ‘हो समुदाय’ के लोग दूर-दूर से चावल, तेल, हड़िया, रस्सी लेकर खरसवां शहीद स्थल आते हैं और अपने पूर्वजों को अर्पित करते हैं. ‘हो समाज’ के ‘रिचुअल’ के अनुसार ‘रोवा कीयदर’ के द्वारा पूर्वजों को घर बुलाया जाता है. यह रिचुअल अभी भी इन गुमनाम शहीदों का नहीं हुआ है. सरकार को चाहिए वीर शहीदों की पहचान कर उचित सम्मान दे तब ही अबुआः दिशुम का सपना साकार हो सकेगा. चक्रधारपुर के पूर्व विधायक बहादुर उरांव कहते हैं कि आदिवासी ‘नेग-दस्तूर’ के अनुसार आम जन शहीदों के लिए खरसावां में 1 जनवरी को आते हैं. अपने शहीद पूर्वजों को याद करते हैं. सरकार शहीदों के साथ न्याय करें और उनकी पहचान को सामने लाएं. बहादुर उरांव आगे करते हैं कि 20 नवंबर 1947 को तत्कालीन गृह सचिव वीपी मेनन के आवास पर नई दिल्ली में जो बैठक हुई थी जिसमें उड़ीसा के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिकिशन मेहताब और संबलपुर के तत्कालीन क्षेत्रीय आयुक्त भी शामिल हुए थे. क्या इस बैठक में खरसावां-सरायकेला के उड़ीसा में विलय का विरोध में हो रहे आंदोलन से निपटने को लेकर कुछ तय किया गया था. इस संबंध में भी अब तक दस्तावेज सामने नहीं आए हैं. वहीं खरसावां गोलीकांड की तरह ही उड़ीसा के मयूरभंज जिले में भी गुंडुरिया एवं रायरंगपुर में भी विलय के विरोध में आयोजित जनसभा पर उड़ीसा पुलिस द्वारा अंधाधुंध फायरिंग कर दमन किया गया था इन सारे दस्तावेजों को सामाने लाया जाना चाहिए.गोलीकांड के बाद आयोजन नहीं होने देना चाहती थी उड़ीसा और बिहार सरकार
स्थानीय बुजुर्ग के अनुसार तत्कालिक बिहार एवं उड़ीसा सरकार ने 1 जनवरी 1948 में आजाद भारत की जलियांवाला कांड को अंजाम देने के बाद वहां पर किसी भी तरह का आयोजन को रोकने का प्रयास भी किया गया था. शहीद दिवस का आयोजन की शुरुआत ‘जयपाल सिंह मुंडा’ ने किया था और बागुन सुबोरई जो कोल्हान के बड़े नेता रहे थे वे जनमानस में जनचेतना बढ़ने में अहम भूमिका निभाई. इसे भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर">https://lagatar.in/jammu-and-kashmir-grenade-attack-on-security-forces-at-tral-bus-stand-targeted-seven-civilians/14568/">जम्मू-कश्मीर: पुलवामा के त्राल बस स्टैंड पर सुरक्षाबलों पर ग्रेनेड से हमला, निशाना चूका, सात नागरिक घायल