पत्रकारिता के ‘अंधकार कालखंड’ में राजेंद्र माथुर को याद करना ज़रूरी हो गया है

Shravan Garg  पत्रकारिता के एक ऐसे अंधकार भरे कालखंड, जिसमें बड़ी संख्या में अख़बार मालिकों की किडनियाँ हुकूमतों द्वारा विज्ञापनों की एवज़ में निकाल लीं गईं हों ,कई सम्पादकों की रीढ़ की हड्डियाँ अपनी जगहों से खिसक चुकीं हों, अपने को उनका शिष्य या शागिर्द बताने का दम्भ भरने वाले कई पत्रकार भयातुर होकर सत्ता … Continue reading पत्रकारिता के ‘अंधकार कालखंड’ में राजेंद्र माथुर को याद करना ज़रूरी हो गया है