Lagatar Desk : भारत में जातिगत जनगणना अब आधिकारिक रूप से शुरू होने जा रही है. केंद्र सरकार ने इसको लेकर जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. अधिसूचना के मुताबिक, देशभर में जनगणना की यह प्रक्रिया एक मार्च 2027 तक यानी 21 महीनों में पूरी कर ली जाएगी. इसमें जाति आधारित आंकड़ों को भी शामिल किया जाएगा. यह देश की पहली आधिकारिक जातिगत जनगणना होगी, जो जनसंख्या की सामाजिक-आर्थिक तस्वीर को गहराई से सामने लाएगी.
केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि भारत की जनसंख्या की जनगणना वर्ष 2027 के दौरान की जाएगी, राजपत्र अधिसूचना जारी की गई। pic.twitter.com/LmZvFTWfyK
— ANI_HindiNews (@AHindinews) June 16, 2025
दो चरणों में होगी जनगणना
इस जनगणना को दो चरणों में किया जाएगा. पहला हाउसिंग सेंसस (आवास गणना) और दूसरा पॉपुलेशन सेंसस (जनसंख्या और जातिगत गणना). पहला चरण 2026 के अंत तक पूरा किया जाएगा. जबकि दूसरा चरण 2027 की शुरुआत में होगा. जनगणना की संदर्भ तिथि (Reference Date) 1 मार्च 2027 तय की गयी है. वहीं पर्वतीय और सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए 1 अक्टूबर 2026 को ही अंतिम तिथि माना जाएगा. जनगणना का प्राइमरी डेटा मार्च 2027 में जारी हो सकता है, जबकि डिटेल डेटा जारी होने में दिसंबर 2027 तक का वक्त लगेगा. इसके बाद 2028 तक लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी.
पहली बार जुटाए जाएंगे जातिगत आंकड़े
साल 1931 के बाद यह पहला मौका होगा जब भारत में जातिगत जनगणना को आधिकारिक रूप से जनगणना प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया है. इसमें OBC, SC, ST और सामान्य वर्ग की जातियों की भी गिनती की जाएगी. सरकार इस डेटा का इस्तेमाल आरक्षण, सामाजिक योजनाओं और नीति निर्माण में करेगी.
जनगणना होगी पूरी तरह डिजिटल
इस बार की जनगणना पूरी तरह डिजिटल माध्यम से की जाएगी, जिसमें मोबाइल ऐप्स और सेल्फ-एन्यूमरेशन (स्व-गणना) की सुविधा भी दी जाएगी. करीब 34 लाख कर्मचारी इस प्रक्रिया में शामिल होंगे, जिन्हें डिजिटल टूल्स पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा. हाउसिंग सेंसस में संपत्ति, सुविधाएं, घर की स्थिति जैसे सवाल होंगे. जबकि पॉपुलेशन सेंसस में व्यक्ति की उम्र, लिंग, धर्म, जाति, शिक्षा, रोजगार, प्रवास, रिश्तेदारी जैसे लगभग 30 सवाल पूछे जाएंगे.
जनगणना क्यों है अहम?
यह आंकड़े सामाजिक-आर्थिक योजनाओं और वित्त आयोग की सिफारिशों की आधारशिला बनते हैं. आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं के लक्ष्य निर्धारण में इसका खास महत्व है. नीति निर्माण और संसाधन आवंटन इससे प्रभावित होते हैं.