Ranchi : हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी भगवान श्रीजगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से प्रारंभ हो रही है। यह पावन यात्रा 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई तक चलेगी। पुरी (ओडिशा) के विश्वविख्यात श्रीजगन्नाथ मंदिर में इस अवसर पर अत्यंत भव्य आयोजन होता है, जिसे देखने देशभर से लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं. पुरी के बाद देश में दूसरी सबसे भव्य रथ यात्रा राजधानी रांची के ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर, धुर्वा में आयोजित की जाती है. यहां की रथ यात्रा भी श्रद्धा, परंपरा और संस्कृति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है.
शाम 5 बजे निकलेगी रथ यात्रा
आज 27 जून को शाम 5 बजे भगवान श्रीजगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की भव्य रथयात्रा मंदिर परिसर से मौसीबाड़ी (गुंडिचा मंदिर) के लिए रवाना होगी. सुबह से ही मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना, श्रृंगार अनुष्ठान और वैदिक मंत्रोच्चार का आयोजन हो रहा है. तीनों देवताओं के विग्रहों को पारंपरिक विधि-विधान के अनुसार श्रृंगारित कर, लकड़ी से निर्मित भव्य रथों पर विराजमान कराया जायेगा.
नौ दिन मौसीबाड़ी में विश्राम करेंगे भगवान
रथयात्रा मंदिर से लगभग 500 मीटर दूर स्थित मौसीबाड़ी तक जाती है, जिसे भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। यहां भगवान अगले नौ दिनों तक विश्राम करते हैं। परंपरा अनुसार, इन दिनों उन्हें बीमार माना जाता है और विशेष पथ्य भोग अर्पित किया जाता है। नौवें दिन, घुरती रथ के दिन भगवान पुनः अपने निवास मुख्य मंदिर लौटते हैं.
रथयात्रा में शामिल होते हैं तीन प्रमुख रथ
- नंदीघोष : भगवान जगन्नाथ का रथ, जो आकार और महत्व में सबसे बड़ा होता है.
- तालध्वज : बलभद्र जी का रथ
- दर्प दलन : देवी सुभद्रा का रथ
ये रथ पूरी तरह नीम की लकड़ी से बनाए जाते हैं, जिनमें किसी धातु का उपयोग नहीं होता. लगभग 18 टन वजनी इन रथों में आठ विशाल लकड़ी के पहिए होते हैं. रथ निर्माण एवं सजावट का कार्य पुरी से आए विशिष्ट कारीगरों द्वारा किया जाता है. रथों को पारंपरिक कलाकृतियों, रंग-बिरंगे वस्त्रों और फूलों से सजाया जाता है, जो इन्हें श्रद्धा के साथ-साथ सौंदर्य का केंद्र भी बना देता है.
334 वर्षों से चली आ रही परंपरा, रांची की रथ यात्रा की ऐतिहासिक झलक
रांची की यह रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है। इसकी शुरुआत सन 1691 में नागवंशी राजा एनीनाथ शाहदेव द्वारा की गई थी। राजा तीर्थ यात्रा करना चाहते थे लेकिन राजकीय दायित्वों के कारण पुरी नहीं जा सके। तब भगवान जगन्नाथ ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर रांची में ही मंदिर निर्माण का आदेश दिया। उसी प्रेरणा से नीलांचल पर्वत पर यह भव्य मंदिर निर्मित हुआ।
नीलांचल पर्वत : आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र
जगन्नाथपुर मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसे नीलांचल पर्वत कहा जाता है. यह स्थान चारों ओर जल स्रोतों से घिरा है, जिससे पूजा के लिए आवश्यक जल की पूर्ति सहज हो जाती है. स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह पहाड़ी दैवीय ऊर्जा से भरपूर है.
वास्तुकला : कलिंग शैली और झारखंडी आत्मा का संगम
मंदिर का स्थापत्य कलिंग शैली पर आधारित है, जो पूरी तरह लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है. यह पुरी के मंदिर की तरह दिखता जरूर है, लेकिन इसकी आत्मा झारखंड की जनजातीय परंपराओं और स्थानीय संस्कृति से गहराई से जुड़ी हुई है.
रथ यात्रा से जुड़ी मान्यताएं और कहानियां
- भगवान सुभद्रा की इच्छा : कहते हैं, सुभद्रा देवी ने नगर भ्रमण की इच्छा जताई थी. उसी के अनुरूप यह परंपरा शुरू हुई कि भगवान अपने भाई-बहन के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं.
- मौसीबाड़ी की महत्ता : मौसीबाड़ी में भगवान को विश्राम कराया जाता है और वहां उन्हें हल्का व पथ्य भोजन अर्पित किया जाता है,
- लक्ष्मी जी का रुष्ट होना : एक मान्यता अनुसार, रथ यात्रा के दौरान लक्ष्मी जी क्रोधित होकर रथ का पहिया तोड़ देती हैं. बाद में भगवान उन्हें मनाने स्वयं जाते हैं.