Ranchi : भोगनाडीह प्रकरण पर सियासत तेज हो गई है. सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने हो गए हैं. नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस मसले पर राज्य सरकार को निशाने पर लिया है. उन्होंने कहा है कि हेमंत सरकार खुद को आदिवासियों की हितैषी बताकर अबुआ राज का सपना दिखाती है, लेकिन उसका रवैया अंग्रेजी हुकूमत जैसा होता जा रहा है. यह वही भोगनाडीह है, जहां 1855 में सिद्धो-कान्हू ने अन्याय और शोषण के खिलाफ हूल क्रांति का बिगुल फूंका था. कल उसी धरती पर एक बार फिर आदिवासी समाज के स्वाभिमान को कुचलने की कोशिश की गई.
हूल दिवस जैसे पवित्र अवसर पर, जब आदिवासी समाज के लोग भोगनाडीह में पूजा-अर्चना करने जा रहे थे, तब हेमंत सरकार की पुलिस ने जिस बर्बरता से उन्हें पीटा, वह न केवल अमानवीय है, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी एक गहरा धब्बा है।
— Babulal Marandi (@yourBabulal) July 1, 2025
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लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गहरा धब्बा
बाबूलाल ने सोशल मीडिया पोस्ट पर आगे लिखा कि हूल दिवस जैसे पवित्र अवसर पर, जब आदिवासी समाज के लोग भोगनाडीह में पूजा-अर्चना करने जा रहे थे, तब हेमंत सरकार की पुलिस ने जिस बर्बरता से उन्हें पीटा, वह न केवल अमानवीय है, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी एक गहरा धब्बा है. इस नृशंस लाठीचार्ज में कई निर्दोष लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं. अस्पताल में जिन लोगों का इलाज चल रहा है, उनके घायल शरीर, सूजे हुए अंग और खून से सने कपड़े इस घटना की भयावहता और सरकारी बर्बरता को खुद-ब-खुद बयां कर रहे हैं.
आदिवासियों की रग-रग में बहता है संघर्ष
अगर राज्य सरकार यह सोचती है कि लाठी, आंसू गैस और गोलियों के दम पर वह आदिवासी समाज की भावनाओं और आक्रोश को कुचल देगी, तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी. संघर्ष आदिवासियों की रग-रग में बहता है. भोगनाडीह की इस शर्मनाक घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि हेमंत सरकार अब नैतिक रूप से पूरी तरह दिवालिया हो चुकी है. यह घटना हेमंत सरकार के ताबूत में आखिरी कील भी साबित होगी.