आदिवासी बच्ची को रेस्क्यू के बाद भी नहीं मिला न्याय, CWC व चाइल्ड लाइन पर लापरवाही का आरोप

Ranchi: कांके प्रखंड के सुंदरनगर स्थित सुकुरुहुट्टू निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अर्पणा बाड़ा ने चाइल्ड हेल्पलाइन, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) और स्थानीय प्रशासन पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया है. उन्होंने 8 जून 2025 को चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098 पर एक 12 वर्षीय आदिवासी बच्ची के शोषण की शिकायत दर्ज कराई थी.

 

 

अर्पणा बाड़ा के अनुसार, कांके के ग्राम जयपुर में बबीता देवी (पतिस्वर्गीय गिरीश चंद्र) के घर पर दिसंबर 2024 से बच्ची से घरेलू कार्य करवाया जा रहा था. बच्ची के साथ न केवल बाल श्रम कराया जा रहा था, बल्कि उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था. उसे पर्याप्त भोजन नहीं दिया जा रहा था और जबरन पूरे घर का काम कराया जा रहा था.

 

स्थानीय ग्रामीणों की सूचना पर मामला सामने आया, लेकिन बबीता देवी के पुत्र हर्ष चंद्र, जो कि सीसीएल में होमगार्ड हैं, उनके प्रभाव के कारण कई लोग खुलकर कुछ कहने से बच रहे थे.

 

10 जून की शाम करीब 4 बजे चाइल्ड हेल्पलाइन और गोंदा थाना की संयुक्त टीम ने बच्ची को रेस्क्यू किया. उस समय घर बंद था और बच्ची धूप में भूखी-प्यासी घर की बाउंड्री के भीतर पाई गई. रेस्क्यू के दौरान बच्ची ने रोते हुए अपने साथ हुई मारपीट की जानकारी दी और शरीर पर चोट के निशान दिखाए.

 

11 जून को बच्ची को बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष प्रस्तुत किया गया. लेकिन न तो उसका मेडिकल परीक्षण कराया गया, न ही बयान दर्ज किया गया और न ही किसी प्रकार की FIR दर्ज की गई. 12 जून को भी कोई कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, केवल काउंसलिंग करवाई गई. 13 जून तक भी स्थिति अस्पष्ट बनी रही, क्योंकि CWC और चाइल्डलाइन की ओर से कोई जानकारी साझा नहीं की गई.बाल कल्याण समिति की सदस्य अंशुमाला करण ने यह स्वीकार किया कि बच्ची की काउंसलिंग रिपोर्ट में उसके साथ मारपीट की पुष्टि हुई है.

 

सामाजिक कार्यकर्ता अर्पणा बाड़ा ने पूरी प्रक्रिया को गंभीर कानूनी लापरवाही करार देते हुए निम्नलिखित मांगें की हैं-

 

    बच्ची का तत्काल मेडिकल परीक्षण और मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज कराया जाए.

    बबीता देवी और हर्ष चंद्र के खिलाफ FIR दर्ज हो.

    CWC और चाइल्डलाइन की भूमिका की निष्पक्ष जांच हो.

    बच्ची को मानसिक और शारीरिक सुरक्षा प्रदान की जाए.

    मामले को POCSO एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस (JJ) एक्ट के तहत गंभीरता से लिया जाए.