Dilip Kumar
Chandil: झारखंड सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा चांडिल डैम से विस्थापितों के हक छीनने के प्रयास का विस्थापित मुक्ति वाहिनी (विमुवा) ने कड़ा विरोध किया है. इसे लेकर चांडिल बांध स्थल पर गुरुवार को विस्थापित मुक्ति वाहिनी की बैठक हुई.
बैठक में कहा गया कि चांडिल बांध में नौका विहार का संचालन अधिकार विस्थापितों की सहकारी समिति के बजाय गिरिडीह की एक निजी एजेंसी को सौंप दिया गया है जो पुनर्वास नीति 2012 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है.
पुनर्वास नीति में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि जलाशय क्षेत्र के मत्स्य उद्योग एवं पर्यटन उद्योग संबंधी संभावनाओं के दोहन में भी विस्थापितों को संबद्ध किया जाएगा तथा जलाशय में मत्स्य पालन के लिए नवसृजित जलधार की बंदोबस्ती विस्थापितों के समूहों के साथ किया जाएगा, जिससे विस्थापित परिवारों के आर्थिक पुनर्वास से इस परिसंपत्ति को संबद्ध किया जा सके.
बैठक में निर्णय लिया गया कि विस्थापितों के अधिकारों पर किसी भी प्रकार के हमले का सड़क से लेकर न्यायालय तक प्रतिबाद किया जाएगा. जयदा शहीद दिवस के अवसर पर 30 अप्रैल को शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद अधिकारियों को विस्थापितों एवं चांडिल क्षेत्र की जनता के अन्य मांगों से अवगत कराया जाएगा, ताकि उसका समुचित समाधान हो सके.
कहा कि चांडिल क्षेत्र में न तो वन अधिकार कानून का सही तरीके से अमल किया जा रहा है और न ही हाथियों द्वारा किए जा रहे उत्पात को वन विभाग रोकने में सक्षम है. जनता दहशत में जीने पर विवश है. इस क्षेत्र को औद्योगिक हब बनाने की कोशिश चल रही थी और अब यह प्रदूषण हब बन कर रह गया है.
कहा कि कंपनियों के प्रदूषण ने तो जीवन को नर्क बना दिया है. विस्थापितों की दुर्गति की गाथा का तो अंत ही नहीं है. विगत दो वर्षों से सारे पुनर्वास कार्य ठप पड़े हैं. आवासीय भूखंडों का न तो मालिकाना दिया गया है और न ही पुनर्वास स्थलों का सीमांकन कार्य पूरा हुआ है. लिफ्ट इरीगेशन द्वारा सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के बारे में तो किसी को चिंता ही नहीं है.
बैठक में श्यामल मार्डी, अंबिका यादव, नारायण गोप, किरण बीर, ईश्वर गोप, पंचानन महतो, देवेन महतो,बासु घुनिया, डोमन बास्के, अरविंद अंजुम आदि शामिल थे.
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