NewDelhi : सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को लोकपाल के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट जजों के खिलाफ शिकायतों की जांच करना लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आता है. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अभय एस ओका की बेंच ने आज इस मामले में सुनवाई करते हुए नाराजगी जताई, कहा कि यह परेशान करने जैसा है. इस क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, लोकपाल रजिस्ट्रार, शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया.
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में 18 मार्च को अगली सुनवाई करेंगे
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में 18 मार्च को अगली सुनवाई करेंगे. जजों के नाम और शिकायत का खुलासा नहीं करने का आदेश भी जारी किया. आरोप है कि एक जज ने कंपनी के पक्ष में फैसले के लिए जजों से सिफारिश की. बता दें कि लोकपाल ने इस मामले में 27 फरवरी को आदेश जारी कर हाईकोर्ट के एक मौजूदा एडिशनल जज के खिलाफ दो शिकायतों पर कार्रवाई करने की बात कही थी. लोकपाल ने कहा थी कि हाई कोर्ट का जज लोकपाल अधिनियम की धारा 14 (1) (f) के दायरे में एक व्यक्ति के रूप में माना जायेगा.
निजी कंपनी के पक्ष में फैसला लेने के लिए हाईकोर्ट के एक अन्य जज से सिफारिश की
लोकपाल के समक्ष आयी इन शिकायतों में आरोप लगाया गया था कि संबंधित जज ने एक निजी कंपनी के पक्ष में फैसला लेने के लिए हाईकोर्ट के एक अन्य जज और एक एडिशनल जिला जज से सिफारिश की. जिस जज के खिलाफ फैसले को प्रभावित करने का आरोप लगा है, वह कभी इसी निजी कंपनी के लिए वकालत कर चुके हैं. सुनवाई के क्रम में जस्टिस गवई ने कहा, यह परेशान करने वाली बात है .
हाई कोर्ट के जज संवैधानिक प्रहरी के रूप में काम करते रहे हैं
जस्टिस गवई और जस्टिस ओका का रहना थ कि देश में संविधान लागू होने के बाद भी हाई कोर्ट के जज संवैधानिक प्रहरी के रूप में काम करते रहे हैं. उन्हें एक वैधानिक पदाधिकारी नहीं माना जा सकता. इस क्रम में केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी, हाईकोर्ट के जज कभी भी लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के दायरे में नहीं आ सकते.
कपिल सिब्बल ने कहा, इससे संबंधित एक कानून बनाना चाहिए . सिब्बल ने अदालत की सहायता करने की पेशकश की. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी. सिब्बल के अनुसार यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित बहुत महत्वपूर्ण है.
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