Ranchi: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के नागपुरी विभाग में सोमवार को शोध विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ. विषय “शोध : समस्या एवं समाधान” पर मुख्य वक्ता जर्मनी कील यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ नेत्रा पी पौडयाल एवं डोरंडा कालेज के प्राचार्य प्रोफेसर डॉ राजकुमार शर्मा शामिल हुए. नागपुरी विभागाध्यक्ष डॉ उमेश नन्द तिवारी ने अध्यक्षता किया. इस मौक़े पर प्रो नेत्रा ने कहा कि अलग-अलग भाषा के अन्दर फैक्टर हैं जो उन्हें अलग करते हैं. भाषा के डिफरेंस को जानने के लिए शोधकर्ताओं को ग्रासरूट लेबल पर जाना होगा.
नेत्रा ने कहा कि भाषाओं में अन्तर और समानता को ढूंढने की आवश्यकता है. इसके वास्तविकता पर फोकस करना होगा. विद्यार्थियो को रूचि के साथ शोध करना चाहिए. मुख्य अतिथि रांची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि शोधार्थियों को कट, कॉपी और पेस्ट से बचना चाहिए. छात्रों को हरसंभव मदद करने की आवश्यकता है. भाषा का विकास कैसे हो, इस दिशा में मंथन चिंतन करने की आवश्यकता है. सिर्फ कोरम पूरा करना, कट पेस्ट कर आप अपने साथ साथ आने वाली पीढ़ी को बेजुबान बनाने करने की दिशा में लगे हैं. ऐसी शोध करने से हमें बचना है.
शोधार्थियों को ईमानदारीपूर्वक शोध करना चाहिएः डॉ राजकुमार
प्राचार्य डॉ राजकुमार शर्मा ने शोध की गुणवत्ता पर बल देते हुए कहा कि शोधार्थियों को ईमानदारी पूर्वक शोध करना चाहिए. टीआरएल संकाय में हो रहे शोध पर चिंता व्यक्त किया और कहा कि भाषा विभाग होने के बावजूद 90 फीसदी शोध साहित्य पर हो रहा है. भाषा पर शोध करने की आवश्यकता है. तभी पूरी दुनिया में अपनी बातों को पहुंच सकते हैं. भाषा ही एक ऐसा माध्यम है जिसे पूरा विश्व को समझ सकते हैं.
शोधार्थीयो का उद्देश्य भाषा पर केन्द्रित होना चाहिए. भाषा विज्ञान पर अपने को केन्द्रित करना होगा. छात्रों को भाषा विज्ञान पर काम करने की आवश्यकता है. मौलिक शोध से विद्यार्थियों का भविष्य बचा रहेगा और भाषाओं की पहचान वैश्विक स्तर पर होगी. मानविकी व टीआरएल संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो डॉ अर्चना कुमारी दुबे ने कहा कि शोध समाज के लिए अमूल्य धरोहर है. गहन अध्ययन के बल पर पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना सकते हैं. इस मौके पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के नौ विभाग के शिक्षक एवं शोधार्थी शामिल थे.
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